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Tuesday, June 8, 2010

सांसों का स्पदन: प्रेम!दिनेश ध्यानी8@6@10सांसों का स्पदन जीवन मेंअपनों सा अपनापन सच मेंरिश्तों की देहरी उठकरमिले तो फिर सफल है जीवन।
जिनको मिलता खुश नसीब हैंसमझ सकें तो बड़ी बात हैवरना समय और आगत कीकहां किसे है खैर-खबर भी।
किसलय कोमल अरू स्पन्दितबहुत लचीली ड़ोर प्रेम कीबहुत संजीदगी मांग करे योंजोर नही ना मांग मिले यों।प्रेम न जाने कब हो जाएकिस क्षण कैसे अंकुर फूटेनही किसी के बस में सचकिससे हो जाये पल में ही।
नही जरूरी नाते-रिश्तेनही जरूरी अपनों से हीकभी अचानक हो जाता हैसच! नसीब हो तो ही मिलता है।
प्रेम शब्द है बहुत गूढ़ जीजिसकी ब्याख्या नही सरल हैजो समझे वो है बड़ ज्ञानीनही समझ सके तो हैं अज्ञानी।
जीवन में सब मिल जाता हैसच्चा प्यार बहुत कम मिलतानिभा रहे या निभ जाना हीनही प्यार की परिभाषा है।
प्रेम मनुज से या जीवन सेभांति-भांति अनुभूति दिलातासमवय प्रेमी से गर पाओधन्य मनुज जीवन हो जाता।
सुनो! तुम्हारा प्रेम मिला जोमेरा जीवन धन्य हुआ जीसच तुमसे जो वरधि प्यार कीपाई है वो है अमूल्य निधि।।