गजल
गहराती है देखो रात
जरा आहिस्ता कीजिए बात
गहराती है देखो रात।
समेटो चन्द अल्फाजों में अपनी बात
गहराती है देखो रात।
हमें भी कहनी अपनी बात
जरा समझो मेरे जज्बात।
रटन यों मत लगाओ आप
गहराती है देखो रात।
जरा सरको करीने से
ये कैसी जल्दबाजी यार।
सलीके से रखो जज्बात
गहराती है देखो रात।
तुम्हारी सुर्ख आंखों में
जो डूबे...., भूले अपनी बात
गहराती है देखो रात।
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