रास्ते का पत्थर
मैं रास्ते का
एक पत्थर हूं
कोई ठोकर मारता
कोई इधर कोई
उठाकर
उधर फेंकता।
जब जिसका
जी करता मेरे
आत्म सम्मान से
खेलता।
मैं चुपचाप
अपने भाग पर
आंसू बहाता
और कभी कभी
न चाहते हुए भी
यह सोचकर
मुस्कराता
कि चलो में राह में
पड़ा तो हूं
मुझे लोग
पटकते
उठाते हैं
और मेरे भावों से
खेलते हैं तो क्या
मैं उन पत्थरों से
बेहतर जो
दीवारों में चिने हैं
जो नींव में बुने हैं
और जो खुद को
खपाकर कितना
बोझ सहे हैं।
दुनियां की नजर में
मेरी कोई कीमत न हो
मेरा कोई मान न हो
लेकिन मैं जानता हूं
मैं दीवार से लेकर
ढ़ोर ड़ंगरों
और इधर उधर हांक
लगाने के लिए दुzत
गति से गोली की मांनिद
लपक जाता हूं
यह बात अलग है
कि मेरी भावना
और मेरे मान को
कभी मान नही मिला
जिसको जैसा
मौका मिला
सबने मेरा
उसी प्रकार से
प्रयोग किया।।....ध्यानी... 30 अगस्त. 2011
bahut hi sartak bhav ............
ReplyDeleteयह बात अलग है
ReplyDeleteकि मेरी भावना
और मेरे मान को
कभी मान नही मिला
जिसको जैसा
मौका मिला
सबने मेरा
उसी प्रकार से
प्रयोग किया।।....
sundr bhaav mn ko chhoo lene vale
nvratri kee shubh kaamnaayen
uff aant tak padhte padhte tis uthti hai...bahut umda likha hai...shubhkamnayein apko
ReplyDeleteआत्म सम्मान से
ReplyDeleteखेलता।
मैं चुपचाप
अपने भाग पर
आंसू बहाता
और कभी कभी
न चाहते हुए भी
यह सोचकर
(पत्थर मारने वालों की दीवारें कच्चे मिटटी के घरंधो से भी कच्ची हैं )