चिन्ह ही बाकी सफर के
शेष हैं कुछ पल डगर के
पंथ जो तय कर चले तुम
राह पर चलते रहे हम.
देव तुम मानव के तन में
जिंदगीभर सादगी में
जी चले जीवन सुहाना
हमको सदा आशीष देना.
दरश की दरकार तो थी
मार्ग दर्शन था कराना
थी बिधाता की ये मर्जी
बिन मिले यूँ ही था जाना.
भाव अपनों में सदा हैं
जिंदगी में जस उन्हीं से
आप की छाया है उनमे
अब ये जीवन जुड़ा उनसे.
दिनेश ध्यानी.....२५/१०/१३.
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