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Friday, March 26, 2010

कहां जा रहे हैं हम........?
दिनेश ध्यानी
पिछलेसप्ताह पहाड़ से लौटा हूं। काफी अरसे के बाद पहाड़ घूमने गया अच्छा लगा। असल में एक बैठक में आमंत्रण था विश्व वानकी दिवस के उपलक्ष में। उक्त बैठक का आयोजन एक पत्रकार बंधु ने किया था। बैठक में सरकारी अमला एवं राजनैतिक भागीदारी अच्छी थी। स्थानीय स्तर पर बहुधा लोग अपने काम निकालने के लिए स्थानीय प्रशासन से मिलकर चलते हैं और कुछ उनकी तारीफ और कुछ अपनी व्यवस्था के मध्यनजर एक प्रकार का दबाव एवं दिखावा के साथ सबकुछ चलता है जिससे उनको फायदा हो। उक्त समाचार संपादक महोदय के साथ सुबह से ही एक कन्या घूम रही थी। पता चला कि वह कन्या इनके समाचार परिवार की सदस्या है। सुबह तो सब ठीक था किसी को भी किसी पर शक या किसी प्रकार की श्ंाका होने की गुंजाईश नही थी। थोड़ा सा ध्यान तब गया जब वह कन्या उससे अधिक ही नजदीकी दिखा रही थी और उस संपादक महोदय की पत्नी ने उसे अपने घर में अजीब से संबोधन से बुलाया मानो वह महिला इस लड़की से खुश न हो। लेकिन फिर भी हमें शक करने की कोई ठोस वजह नही दिखा। लगा कि इतने छोटे शहर में कैसे ऐसा हो सकता है। यहां सब आपस में एक दूसरे को जानते हैं, पहचानते हैं। फिर एक सामाजिक मान्यता एवं आपसी मान्यता को भी तो कायम रखना होता है।हां तो मैं कह रहा था जो रात में मैंने देखा और महसूस किया उस बात ने सच कहूं पूरी रात मुझे सोने नही दिया। असल में उक्त गोष्ठी के समाप्त होने के बाद हम दोस्त जो दिल्ली से गये थे जंगल में हाथी देखने चले गये। शाम होते वापस शहर में आ गये तो पता चला कि हमारे ठहरने की व्यवस्था वन विभाग के बंगले में की गई है। हम लोग शहर में घूमते हुए रात करीबन आठ बजकर पचास मिनट पर उक्त बंगले पह पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर हैरान हो गये, कम से कम मैं तो इस प्रकार की उम्मीद उन संपादक महोदय से नही कर सकता था। जब हम बंगले पर पहंुचे तो देखा कि बंगले के पीछे की तरफ उक्त संपादक, वह कन्या एवं उस रेंज का रेंजर एक पेड़ के नीचे बैठे हैं। इतनी रात उस लड़की को इनके साथ देखकर हमें काफी हैरानी हुई लेकिन उन पर किसी प्रकार का असर नही दिखा। असल में उन लोगों ने हमारे समक्ष उस कन्या से किसी प्रकार की अश्लीलता नही की लेकिन हमारा दिमाग जो ठनका वह इस बात पर कि इतनी रात यह लड़की इनके साथ क्या कर रही है? इस समय तो इसे अपने घर होना चाहिए था लेकिन इस जंगल में और वह भी दो पुरूषों के साथ? शक तो लाजमी था। हमारे आने के बाद सब लान में आ गये और वह सज्जन करीबन आधे घंटे और बैठे रहे। काफी बातें करते रहे लेकिन किसी ने भी उनसे कुछ नही पूछा। असल में यह एक आम बात नही है। हो सकता है कि उन लोगों के बीच कुछ ऐसा वेसा न हो लेकिन जो हालात थे उसे देखकर तो लग ही रहा था कि किसी अच्छे घर की लड़की इतनी रात किसी के साथ इस वीराने में क्या करेगी। वह भी जब इसी शहर में रहती है। छोटे शहर में तकरीबन सब आपस में जानते हैं और उसे यह भी ध्यान होगा कि अगर बात उठेगी तो आने वाले समय में रिश्ता आदि होने व उंगली उठने से पेरशानी होगी। फिर इतनी रात क्या काम है इस प्रकार से बाहर रहने का? लेकिन उस लड़की को शायद या तो कुछ पता नही था या वह इनके साथ रम गई है लेकिन उस व्यक्ति को तो शर्म आनी चाहिए माना कि अगर वह किसी प्रकार गलत नही था लेकिन फिर भी इतनी रात गये अपनी बेटी की उमz की लड़की को इस तरह से सूनसान स्थान में अकेले लेकर जाना क्या अच्छा है? रात को वह संपादक उस लड़की को लेकर जब बंगले से गया तो उसके बाद काफी देर तक हम लोग उनके बारे मे बातें करते रहें। तो लब्बोलुआब यह रहा कि हमें क्या करना है हर आदमी की अपनी जिन्दगी है। लेकिन एक बात जो सबको लगी की उस व्यक्ति को इस प्रकार की हरकत नही करनी चाहिए थी। सब को लगा कि इस तरह से तो किसी को भी शक हो सकता है। फिर जिस तरक से उस व्यक्ति का मोबाईल, पर्स उस कन्या के बैग में थे तथा जिस प्रकार से वे आपस में बिल्कुल सटकर बैठे हुए थे तो लग रहा था कि शायद कुछ गलत है।
उक्त तथ्य से आपको कुछ असुविधा भी हो रही होगी कि शक करना आदमी की फिदरत हैं लेकिन जहां शक की गुंजाईश हो वहीं शक होगा। उक्त तथ्य में जो लगा वह यह कि समाज में या तो स्वच्छन्दता बढ़ रही है या फिर किसी प्रकार की बंदिशे नही रही लोगों पर बड़ा शहर हो या छोटा कस्बानुमा शहर सब जगह लोगों को अपनी-अपनी जिन्दगी को अपने ढंग से चलाने की छूट चाहिए। लेकिन इतना तो तय है कि हमें सामाजिक मान्यताआंे एंव सरोकारों को ईमानदारी से बरतना होगा। इस प्रकार से स्वच्छन्दता एवं मनमानी का गलत संदेश जाता है जो कि उचित नही है। आशा की जानी चाहिए कि हमारी भावी पीढी इस प्रकार की स्वच्छता एवं मनमानी से बचेगी।

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