गाती है अमिया की ड़ाली
बैठी कोयल गीत निराली
आती है भुट~टे पर बाली
फैली धरती में हरियाली।
उमड़-घुमड़ घन आ जाते हैं
थोड़ा सा जल बरसाते हैं
पहले जैसी बात नही है
सावन भादो रात नही है।
सर्दी, ठिठुरन, वर्षा, कोहरा
नदियाWं, नाले ताल तलैया
रिमझिम-रिमझिम दसियों दिन की
पहली सी बरसात नही है।
बदल रहा है अब मौसम भी
मानव बदला भाव है बदले
पहले जैसी बात नही है
सावन भादो रात नही है
सच अब वह बरसात नही है।।
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
ReplyDeleteprakirti ka sundar varnan.....aur haan sach kaha aab aise baat nahi......bahut acchi rachna
ReplyDeleteबदल रहा है अब मौसम भी
ReplyDeleteमानव बदला भाव है बदले
पहले जैसी बात नही है
सावन भादो रात नही है
सच अब वह बरसात नही है।।
badlaw ka ye saleeka bahut achcha hai