उदास क्यों होती हो
धीरज क्यों खोती हो
बड़े-बड़ों ने दुख झेले
तुम क्या अलबेली हो?
तुम इक बंूद नीर की
मैं भी तो अश्क ही हूं
तुम बहती नदिया में
मैं कपोलों में लुढ़कती हूं।
पल का ही जीवन है
फिर भी तो अच्छा है
भावों को प्रकटाते
जो भी है सच्चा है।
नदिया या सागर हो
हमसे ही तो वे हैं
हम है तो जीवन है
अवनि बिन सब सूना है।। ध्यानी 12 जून 2011
धीरज क्यों खोती हो
बड़े-बड़ों ने दुख झेले
तुम क्या अलबेली हो?
तुम इक बंूद नीर की
मैं भी तो अश्क ही हूं
तुम बहती नदिया में
मैं कपोलों में लुढ़कती हूं।
पल का ही जीवन है
फिर भी तो अच्छा है
भावों को प्रकटाते
जो भी है सच्चा है।
नदिया या सागर हो
हमसे ही तो वे हैं
हम है तो जीवन है
अवनि बिन सब सूना है।। ध्यानी 12 जून 2011
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