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Monday, February 28, 2011

समय मिले तो....




सुनो अवनि!
समय मिले तो जरा सोचना
मैं ऐसा क्यों हो जाता हूं?
गैरों से जब बतियाती हो
अन्दर से क्यों हिल जाता हूं?
तुम मेरे मन के भावों को
समझ सकोगी यकीं है मुझे
तुम से सच मैं क्या चाहता हूं..?
तुम मेरे जीवन की निधि हो
मेरे उर में तुम हर विधि हो
अन्तस में नदिया की धारा
तुम्हीं हमारी जिज्ञासा हो।
तुमको पाकर हमने जाना
जीवन ऐसा भी होता है
नेह थाप जब पड़ जाती है
पत्थर भी जीवन पाता है।
तुम गंगा की पावन धारा
यमुना की तुम प्रतिछाया हो
मेरे उर मेरे अन्तस में
तुम प्राणों की परिभाषा हो।
सच मानो तुम प्रथम नेह हो
तुम भावों की तुम पुंज धरा हो
’अवनि’ हमारी सबसे प्रिय हो
बस तुम मेरी परिभाषा हो।।
दिनेश ध्यानी
28,फरवरी, 2011













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