Pages

Wednesday, June 22, 2011

रात का सन्नाटा
डल का किनारा
बहुत मन्दम था
लहरों में शिकारा.
गगन में मेघ बहुत
उमड़ घुमड़ जाते
घनघोर घटा में
"अवनि"...! याद आती.
बहुत दूर तन से
मन से पास ही था
सच मानो तुम बिन
बहुत ही उदास था....ध्यानी २२ जून. २०११.

No comments:

Post a Comment