सम्मोहन
कभी जीवन का, कभी जीने का
कभी प्रेम का, कभी प्यार का
कभी लोकाचार का, कभी संसार का
कभी अपनों का, कभी सपनो का
कभी धन का, कभी मान का
कभी नाम का, कभी काम का
कभी राग का, कभी द्वेष का
कभी आज का, कभी कल का
कभी सदियों का, कभी पल का
जानते हुए भी कि सब छूटना
सब टूटना और बिखरना है
फिर भी जीब का, जगत का
सम्मोहन नहीं छूट रहा?...ध्यानी ०१ जून, २०११
कभी जीवन का, कभी जीने का
कभी प्रेम का, कभी प्यार का
कभी लोकाचार का, कभी संसार का
कभी अपनों का, कभी सपनो का
कभी धन का, कभी मान का
कभी नाम का, कभी काम का
कभी राग का, कभी द्वेष का
कभी आज का, कभी कल का
कभी सदियों का, कभी पल का
जानते हुए भी कि सब छूटना
सब टूटना और बिखरना है
फिर भी जीब का, जगत का
सम्मोहन नहीं छूट रहा?...ध्यानी ०१ जून, २०११
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