तुम......
तुम को पाने के बाद
मुझे खुद की पहचान मिली
तुम आई जीवन में
भावों की बछियाँ खिली.
तुमने रचा, बसाया
मेरे भावों के आँगन को
अपने स्पंदन जी से
आकार दिया मेरे जीवन को.
तुम क्यों नाराज हो अवनि!
क्या तुम्हें बिश्वास नहीं मुझपर
मेरे नेह पर और सबसे
अहम खुद पर....?
तुम से मिलकर कुछ
बाकि क्या रहा जीवन में
जीने को, पाने को बाकी
क्या बचा सच सच
बतलाना ?
मैं अनगढ़ हूँ फिर भी मुझे
नहीं समझ पाई अभी तक लाटी?
माफ करो जीवन में बहुत कुछ
है पाने को
इसलिए मुझे माफ करो....ध्यानी..३०/४/१३.
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