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Tuesday, April 30, 2013


याद है तुम्हें
आज १ मई है
सोचा न था कभी
ये दिन आयेगा
इतनी जल्दी मेरा
जीवन बिखर जायेगा.
कल के भाव
कल की  बातें
सबकुछ पल में छितर जायेगा....
समेट लो अवनि
मेरे बिखरे जीवन को फिर से
कहीं तुम बिन ये
टूट ना जाए.....ध्यानी....१/५/१३................. १०-४२.



१.
जरा सी बात पर लोग
रिश्ते तोड़ देते हैं
जरा सी बात पर लोग
अपनों को छोड़ देते हैं.
ये कैसी हवा बहा चली
जरा सी बात पर लोग
अपना अक्ष तोड़ देते हैं......ध्यानी......१/५/१३.
२.
चलो नियति को मान लेते हैं
जरा वक्त का संज्ञान लेते हैं
अभी धुँधलका है द्वन्द का
पौ फटने तलक ही सही
हाथ थामे रखते हैं.....ध्यानी...१/५/१३..
३.

आओ बिवादों का
मकडजाल साफ़ करते हैं
रिश्तों को नया आयाम देते हैं
शंका वाजिब है तुम्हारी अवनि
आओ बिश्वास कि फिर शुरवात करते हैं.....ध्यानी.....१/५/१३.

४.
तुम भी जागी थी
मैं भी नहीं सोया था
अचानक अवनि
ये क्या हुआ....ध्यानी.....१/५/१३.
५.
देर न करो अब लौट आओ
कहीं ऐसा न हो जब तुम आओ
अवनि! तब तुम हमे ना पाओ.
मेरी खता पर रूठना
तुम्हार हक है बेशक
लेकिन इतनी देर तक रूठना
अच्छी बात तो नहीं.....ध्यानी......१/५/१३.






1 comment:

  1. वाह बहुत सुंदर कविताएँ....

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