बस्ती में अब बीराने हैं
गलियों में हैं सूनापन
रिश्तों में है बहुत छलावा
अपनों में बेगानापन।
उनको हमने अपना समझा
पाया भी तो था बढ़कर
लेकिन उनकी बस्ती में भी
गैरों के ही हैं रहबर।
कितने ताले कितने परचम
दर्द का तुम अब फहराओगी
किसी ठिकाने तो अब हमको
ठौर बिठाओ ऐ..! जीवन।
तोहरे ताल मिले नदी के जल में
ReplyDeleteफिर भी प्यास अधूरी
यही निष्कर्ष