कशमकश मे
दिन बीत रहे
अनिश्चित राहो में
सपने छीज रहे.
बात-बे बात पर
अपने रूठ रहे
अधिक की चाह
ये पल छूट रहे.
अवनि! तुम ही कहो
कैसे हिय को
जिय को और
भावों को समझायें?
3 May, 2011.
दिन बीत रहे
अनिश्चित राहो में
सपने छीज रहे.
बात-बे बात पर
अपने रूठ रहे
अधिक की चाह
ये पल छूट रहे.
अवनि! तुम ही कहो
कैसे हिय को
जिय को और
भावों को समझायें?
3 May, 2011.
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