स्वभावगत कुछ कमजोरियां हैं
जिन्हें हम सिद्दत से स्वीकारते हैं.
कुछ गलतियाँ होजाती हैं अक्षर
सुधरने की कोशिश भी करते हैं.
आपसे छुपा है जो झूट बोलेंगे?
समय की कसोटी पे हमे तोलेंगे
इंशान हूँ गलतियों का पुतला हूँ
माफ़ी की गुजारिश भी करता हूँ.
अवनि! अनुपम तुम अतुलनीय हो
हो सके तो हमे माफ़ तुम कर दो...... ध्यानी. १९/५/११.
जिन्हें हम सिद्दत से स्वीकारते हैं.
कुछ गलतियाँ होजाती हैं अक्षर
सुधरने की कोशिश भी करते हैं.
आपसे छुपा है जो झूट बोलेंगे?
समय की कसोटी पे हमे तोलेंगे
इंशान हूँ गलतियों का पुतला हूँ
माफ़ी की गुजारिश भी करता हूँ.
अवनि! अनुपम तुम अतुलनीय हो
हो सके तो हमे माफ़ तुम कर दो...... ध्यानी. १९/५/११.
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