तन की खातिर बसन नहीं हैं
तन की खातिर बसन नहीं हैं
उदर की खातिर रसन नहीं
बीमारी, महरूम औखद से
अपनी वेदना किसे कहैं?
सरकारी कागज जो कहते
रत्ती भर भी सही नहीं
हम अभाव में मर जायेंगे
अपनों का दुःख किसे कहें?
दारू में है वोट बिक रहा
दीन ईमान की गरज किसे?
सुखी डाली लोकतंत्र की
न्याय की किससे आस करें...ध्यानी.. ११.५.११.
तन की खातिर बसन नहीं हैं
उदर की खातिर रसन नहीं
बीमारी, महरूम औखद से
अपनी वेदना किसे कहैं?
सरकारी कागज जो कहते
रत्ती भर भी सही नहीं
हम अभाव में मर जायेंगे
अपनों का दुःख किसे कहें?
दारू में है वोट बिक रहा
दीन ईमान की गरज किसे?
सुखी डाली लोकतंत्र की
न्याय की किससे आस करें...ध्यानी.. ११.५.११.
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