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Friday, August 14, 2015

मेळा-खौळा अर लोक थाती थैं बिसरदु समाज
दिने”ा ध्यानी
हमरा लोक की थाती भौत वि”ाद अर विस्तृत छ। लोक गीत से ल्हेकि लोक कथाओं अर लोकोक्तियों को अपणु संसार छ। पैल्या जमन म घर गौं म यों समेत सब्बि विधा जो बि लोक म विद्यमान छाया, वों थैं बुन बच्याण अर छ~वीं बत्थों का माध्यम से एक पीढ़ि बिटे हैंकि पीढि तक सराणा काम हम्हर पुरण्यों न बाखूबि कै। यनु बुले जा कि हमरि लोक विधाओं को सम्प्रे’ाण का माध्यम से संज्वैकि रखे गै छौ त अतिसयोक्ति नि होलि। वै जमन म यों बिधाओं थैं पांडुलिपियों को रूपम य त संगzह नि करे गे अर अगर कैन कैरि बि होलु त भौत कम। हम्हरा समाज अर पारिवारिक पृ’ठ भूमि जन्नि-जन्नि बदलेणीं छन तन्नि योंं बिधाओं परैं संकट को बादळ मंडराणा छन। 
असल म पैल्या जमन म हम्हरा घर गौं म ददि, दाजी, बूबु अर बुढ~या लोग कथा कहानि सुणौंदा छाया। वौं कथा कहान्यों अर लोक गाथाओं थैं सूणि कि हम याद रखदा छाया अर औंण वळि पीढि थैं सुणैकि वों कु सम्प्रे’ाण अफ~वीं ह~वै जांदु छौ। पण अमणि पारिवारिक परिवे”ा बदलि गे। एक त पहाडौं बिटै पलायन होंण से पहाड़ से भैर रैंण वळा लोग अपणि लोक की थाति से कटै गैंन। एकल परिवारों को जो चलण हमुन अपनै वां से ददि दादा त पहाड़ म रैंगिन अर नाति नतिणां सैर वळ ह~वैगैंन यां से कथा अर कहान्यों सुणण अर सुणौण रिवाज खतम सि ह~वै गे। दुसरा कारण छन गौं म जो हम्हरा परिवार छैं बि छन वों कि जीवन चर्या यन्नि ह~वै गे कि टेलीविजन अर मोबाईल अर इण्टरनेट औंण से कथा कहान्यों थैं सुणण वळा नि रैगिन। यां से विगत दस-बीस साल का दौरान उक्त विधाओं थैं भौत नुकसान ह~वै। भौत सारि कहानि, लोकगीत अर लोकगाथा बिलुप्त सि ह~वैगिन। जां की क्षति पूर्ति होणु भौत मु”िकिल छ। उत्तराखण्ड बणणां बाद सोचि छौ कि यखा कि सरकार लोक की थाती थैं समळणां खातिर कुछ जतन कारलि पण जो बि सरकार एै तौंन अपणि कुर्सि बचौंण से अगनैं कुछ नि सोचि, कुछ नि कैरि।
गढवळि क सबसे पुरणा लोकगायक अर गीतकार श्री जीत सिंह नेगी जी जो अमणि उमर का बृद्धावस्था म चलणां छन वों क मन म यां बात की भौत टीस छ। नेगी जी लोकगीतौं का वै जमना का गायक छन जबरि गzामोफोन होंदा छाय, साठ को द”ाक म जीत सिंह नेगी जी लोक की थाती की समाळ कैरि पण अमण्या का हाल देखिकि वो बि बुल्दन कि हम्हरू लोक बिटे भौत कुछ हर्चणू छ अर भिण्डया यन्नु छ जो अगर समळे नि जौ त भौळ कुछ नि बचणु। इलै यां की सत समाळ होण चयेणीं छ।
हम्हर घर गौं म मेळा खौळा हम्हरू लोक की थाती का मिलन स्थल होंदा छाया। वख हम अपणि संस्कृति सभ्यता अर लोक से जुडीं बिण्डया बिधाओं से परिचित होंदा छाया। गीत से ल्हेकि नगर, दमौ, निसाण से ल्हेकि ठड~या, चौफळा, बौ अर कै बिधा यन्नि छै जौं को साक्षात दर्”ान यों मेळा खौळाों म ह~वै जांद छया पण जन्नि-जन्नि यि मेळा-खौळ उरेणां बंद सि ह~वैगैंन तन्नि हम्हरि लोक की थाती बि बिसरेणी जांणी छ। गौं म बै”ााख मैना द्वी गति बिटे उरेण वळा मेळों खातिर घर गौं म वसंत पंचमी बिटे गीत लगणा “ाुरू ह~वै जांद छाया। नंगर दमौं की घमघ्याट व्यखुनि दौं बिटे अध रात्यों तक होणौं रैंदु छौ। लोक बाग अपणां खेती पाती को काज काम निपटेकि रात-रात भर सरां ख्यलदा छाया अर गीत लगौंदा छाया। द्वी गति बै”ााख बिटे उरेण वळा मेळा सैरा गढवाळ कुमौ म जेठ का मैन तक चलदा छाया। यों मेळों म चीज बस्त खरीदणु हो चा मेल मिलाप हो यि गौं को लोखों की जिन्दगी का अहम हिस्सा होंदा छाया। परदे”ा रैंण वळ लोग अपणां-अपणां गौं म मेळाों का खातिर जरूर पौंछदा छया। सैसर वळि बेटि अपणां मैत औंदि छै। घर गौं ये टैम परैं खूब रंगत अर उल्यार सि रैंदु छौ। छ~वटा बच्चा सार लग्यां रैंछा छया कि हौरि बगत हो न हो पण मेळाों का बखत परैं वों का वास्ता नै-नै कपडा जरूर औणन। मेळों म खटे, मिठे, पुयांबाज अर चरखि आदि को कनु समौ रैंदु छौ। पण अमणि जनि-जन्नि समाज म पैंसा को प्रचलन ह~वै, रोटी-रोजगार का खातिर जन्नि मनखि अपणं घर गौं से दूर ह~वै तन्नि यखा रीति रिवाज अर मेळा खौंलों का दगड~या-दगड़ि यखा की लोक संस्कृति को बि हृास सि ह~वै गे जो कि भौत सोचनीय बात छ।
अमणि जर~र्वत यां कि छ कि हमुथैं अपणि लोक संस्कृति बचौण चयेणी छ। यांका वास्ता बिसरिगयां मेळा-खौंळौं थैं फिर से उरये जौ, यां का वास्ता कुछ लोग प्रयास बि कनां छन। पिछला मैना मई म संगळाकोटी म कोटे”वर महादेव का थान म अर सीकू गौं पौडी++ म छुयाळ समाचार पत्र द्वारा तीन-चार दिन कु मेळा अर विभिन्न विधाओं की प्रतियोगिता, गढ़वळि कवि सम्मेलन उरये गै। यखौ मेळा अर लोखों की रूचि देखिकि लग कि औंण वळा समय म बिसर्रदी परंपरा अर लोक की थाती कि समाळ ह~वैली। यै मेळा म लोकगीत, ठड~या, झुमैलो अर बौ आदि लोक विधाओं की गzाम स्तर परैं करे गे प्रतियोगिता खुब भल्लि छै अर नै पीढि का वास्ता एक संगzहणीय प्रयास छौ। हम्हरा ल्यख्वार, गितार अर लोक का प्रति सजग मनख्यों थैं अमणि अपणि लोक की थाती कि समाळ करण पोडलि जां से औंण वळि पीढि थैं हम अपण रीति-रिवाज, कला, संस्कृति अर लोकगीत, लोक कथा अर लोकोक्तियों थैं अगनै सर~यां सकां। लोक का प्रति सजग रैंण परैं हि हर्चदु लोक की विधाओं थैं बचये सकेंद जो कि अमणि भौज जरूरी छ। उम्मीद कर्दां कि हम अपणु लोक थैं समाळि कि रखला अर औंण वळि पीढि यों विधाओं से न सिर्फ परिचित होलि बल्कि वों थैं अपणां लोक परैं गर्व बि होलु।। 
दिने”ा ध्यानी

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