Pages

Monday, December 31, 2012


आओ नये साल
हर साल कि तरह
इस साल भी करेंगे
तुम्हारा इस्तग्बाल.
जो बीता उसका
दिल में है कुछ मलाल
दामिनी के संग हुवा
बहुत बुरा आत्याचार....
इसलिए सुनो नये साल!
इसबार घर आँगन को
ना तो बुहार पायेंगे
ना ही बंदन बार गा पायेंगे.
सुनो! आने वाले
नये साल !
रखना सभी का खयाल.
अवनि से अम्बर तक
तुम्हारी धूम हो
सारे जहाँ में तुम्हारी
गूंज हो.
देश और समाज में
किसी पर आन्याय न हो
निरीह लोगों पर
ना ही अत्याचार हो.
शान्ति और अमन कि बयार
सब ओर बहे
आदमी,  इंसान बना रहे
जग जीवन में
आरोग्य और खुशहाली रहे
सब में हो  प्रेम और प्यार
ऐसी बहे मेरे देश में
नये साल में बयार
सुन रहे हो नये साल...?..........ध्यानी..३१/१२/१२/
     

Monday, August 6, 2012


पहाड़ में गांव




पहाड़ के गांव
देखकर लगता है
कैसे लोग रहे होंगे वे?
बेहद जिद~दी और
अपनी धुन के पक्के
तभी तो इन जिददी पहाड़ों में
आकर बसे होंगे वे।
उतुंग शिखरों पर
अगास की धार पर
जिसको जहां मिला
वहीं रच ड़ाला जीवन
बसा दी अपनी बस्ती।
वे लोग नही जानते थे
शायद कि जिन सूने 
पहाड़ों को वै आबाद कर हैं
उनकी पुस्तें एक दिन
इन्हें बंजर बना देगे
गर वे जानते तो शायद
इतनी सिददत से
इन पहाड़ों पर गांव, घर 
और इतने सुन्दर खेत खलिहान
न बनाते।
वे तो आजीवन रचते रहे
अपनों की खातिर लड़ते रहे
इन पहाड़ों से
वे सोचते होंगे कि 
हमारी पुस्तें भी इन पहाड़ों में
मंडुवा, झंगोरा, धान, मुगरी और
कखड़ी, मिर्च, करैला, और भट~ट
गहद उगाकर अपने जीवन में
आगे बढ़ते रहेंगे।
उन्हें क्या पता था कि ये
इतने आगे बढ़ जायेंगे कि
फिर इन पहाड़ों पर न चढ़ पायेंगे
इन्हें पहाड़ नही भायेंगे और
गर भायेंगे भी तो टेलीविजन में और
सैर सपाटे की खातिरभर।
आज उन पुरखों के बसाये घर गांव
वीरान होने लगे हैं और हम
विकास की गाथा लिख-लिखकर
अपने फ~लैट के कोने में, छत के टुकडे में
अपना घर, गांव और पहाड़ बसा रहे हैं।
काश हम दिल्ली, मुम्बई और देहरादून
अपने गावं में बसा पाते 
काश हम अपने गांवों का विकास कर पाते।।. ध्यानी. 16, जुलाई, 2012. सांय: 3-28. बजे।





    हे! गंगे मां ये रौदz रूप
    हे! भोले तांड़व करो शांत
    मानव की करनी भोग रहे
    काशी के वासी कुपित क्लान्त।
    मां गंगे तुम माता हो
    किस कारण है ये कzोध भरा
    तुमसे ही जीवन पाया है
    तुमसे ही उपजी ये मनुज धरा।
    तुम भोले बाबा कृपा करो
    तटबंधों पर हैं बसे लोग
    उनकी रक्षा की खातिर अब
    मां गंगा का रोको प्रकोप।..... ध्यानी. 6, अगस्त, 2012.

Monday, June 11, 2012


लौट आया हंंू.........

1.

अल्प प्रवास के बाद
लौट आया हूं पहाड़ से
पहाड़ की हसीन वादियां
गंगा की कलकल करती
धारा और पंछियों की चहक
अहा! कितना भला वातावरण
है हमारे पहाड़ में।

2.

सुदूर कहीं-कहीं आग के
हवाले कर दिये जंगलों की वेदना
मन को टीस जाती है
गांवों के सामने, घरों के पास
धू-धूकर जल रहे जंगल
और आदमियों को तनिक भी
परवाह नही, क्यों? आखिर
क्यों नहीं समझ रहा है
आज का आदमी
जल, जंगल और जमीन 
के महत्व को संजीदगी से?

3.

गंगा के किनारे बसा 
तुम्हारा ये शहर
अहा कितना भला
लग रहा है यहां का
हर पहर।
मन करता है काश यहीं कहीं
रच बस पाता मैं भी 
तुम्हारी तरह
इन पहाड़ों में रह जाता...।



4.

अपने घर-गांव से दूर
शहरों की चकाचौंध में
रोटी की चिन्ता से 
सच में अवनि! हमारी
जीवन संजीवनी को
हमारे स्वच्छन्दपन को
न जाने कहां गायब कर दिया
और हम इस महानगर में
ठूंठ के ठूंठ, निरीह
मशीन मानव बनकर
यंत्रवत घिसड़ रहे हैं
कौन कहता है कि 
हम जी रहे हैं?

5.

हिमालय की गोद में
ग्ंागा के किनारे बसे
तुम्हारे शहर की
छटा ही निराली है।
कलकल बहती गंगा
वरूणावत में बाबा
भोलेनाथ की मौजूदगी
और बाबा विश्वनाथ 
मां गंगा के मंदिरों से
गूंजती शंख ध्वनि
मन को आलोकित कर गई।


Tuesday, February 14, 2012

तुम
तुम्हारा मुखमंड़ल
मेरे भावों की परधि
तुम्हारे दो नयन
मेरे सपनों की गहराई
तुम्हारी प्यारी सूरत
मेरे उर की परछाई
तुम्हारी सुन्दर दन्तपंक्ति
अवनि! मेरे हिय की अंगड़ाई।
तुम्हारे दो सुकोमल होंठ
मेरे भावों की निशानी
तुम ही तो हो
मेरे हिय में
मेरे जिय में
मेरे उर में
मेरे भावों में
और सबसे अहम
सबसे खास
सबसे खास
तुम्हें वैलेनटाईन
शब्द से क्यों नवाजूं?
तुम तो मेरी
आत्मा हो
जीवन की
परिभाषा हो
सब भावों में
तुम ही तुम हो।
फिर तुम ही कहो
सिर्फ एक
संबोधन से
तुम्हें क्यों बुलाउूं
सिर्फ एक दि नही
तुमसे प्यार कयों
जताउूं?
तुम मेरी अवनि!
हमेशा से ही
मेरी आत्मा हो
सदा सदा के लिए
जन्म जन्मांतर और
सदियों के लिए सदियों से।। ..... ध्यानी 14 फरवरी, 2012.
विधाता तेरा
शुकिzया मैं
किस तरह से करूं?
मैं तेरे अहसान को
किस तरह से
व्यक्त करूं?
तूने मुझे मेरी
अवनि! देकर
मेरे जीवन को
सार्थक कर दिया।
धन्य है तेरे
मेरे विधाता
जन्मजन्मांतर
बस मेरी अवनि!
का ही संग मिले
बस इस दुवा को
कुबूल करना। 14 फरवरी. 2012.
तुम




तुम्हारा मुखमंड़ल

मेरे भावों की परधि

तुम्हारे दो नयन

मेरे सपनों की गहराई

तुम्हारी प्यारी सूरत

मेरे उर की परछाई

तुम्हारी सुन्दर दन्तपंक्ति

अवनि! मेरे हिय की अंगड़ाई।

तुम्हारे दो सुकोमल होंठ

मेरे भावों की निशानी

तुम ही तो हो

मेरे हिय में

मेरे जिय में

मेरे उर में

मेरे भावों में

और सबसे अहम

सबसे खास

सबसे खास

तुम्हें वैलेनटाईन

शब्द से क्यों नवाजूं?

तुम तो मेरी

आत्मा हो

जीवन की

परिभाषा हो

सब भावों में

तुम ही तुम हो।

फिर तुम ही कहो

सिर्फ एक

संबोधन से

तुम्हें क्यों बुलाउूं

सिर्फ एक दि नही

तुमसे प्यार कयों

जताउूं?

तुम मेरी अवनि!

हमेशा से ही

मेरी आत्मा हो

सदा सदा के लिए

जन्म जन्मांतर और

सदियों के लिए सदियों से।। ..... ध्यानी 14 फरवरी, 2012.