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Friday, August 4, 2017

सतपुली के शैतान
दिनेश ध्यानी
4/8/2017

उत्तराखण्ड की शान्त वादियों को भी लगता है किसी शैतानी ताकत की बुरी नजर लग गई है। अगर ऐसा न हुआ होता तो चन्द दिनों के अन्तराल के बाद फिर से सतपुली में शैतान अपनी घिनौनी हरकत से देवभूमि को नापाक करने की हिमाकत कदापि नही करते। पहले हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ अभद्रता और फिर गौवंश के साथ कुकृत्य लगता है कुछ शैतानों द्वारा सोची समझी शाजिस के तहत ये सब किया जा रहा है। इन्हें पता है कि कोई कहने सुनने वाला है नही इसलिए जो जी में आये करें। पिछले साल कोटद्वार के दंगे तो लोगों को याद ही होंगे। अब ये आग शहर से होते हुए शान्त पहाड़ की वादियों को भी अपनी चपेट में लेने लगी है।
भले ही कुछ राजनेता और स्थानीय प्रशासन भी इसे आम घटना कहकर इस शाजिस को टाल दें, कुछ राजनैतिक दल इस वीभत्स घटना की आड़ में अपना वोट बैंक भी साधने का काम कर सकते हैं जैसा कि पूर्व में भी उत्तराखण्ड में ऐसे षडयन्त्र सामने आ चुके हैं कि कुछ दल और नेता वोट और कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। अगर ऐसा न हुआ होता तो उत्तराखण्ड के सुदूर गांवों, कस्बों में इस प्रकार के अपराधी तत्व हाबी न हुए होते।
पिछले वर्षों में एक बहुत बड़ी शाजिस के तहत लोगों को बहताफुसलाकर और भय दिखाकर भ्रमित किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण उत्तराखण्ड के गांवों में शाजिसन मजार बनवाकर आने वाले कल के लिए जमीन तैयार की जा रही है। एक वाकया नैनीडांडा विकासखण्ड के डंुगरी गांव का है लगभब दसेक साल पहले यहां के एक युवा को रामनगर में किसी झाड़फूंक वाले मौलवी ने बताया कि तुम पर शैतानी ताकत है इसलिए तुम्हें रोज सुबह शाम मजार पर अगरबत्ती जलानी होगी। जब उस युवक ने कहा कि मैं गांव मेें रहता हूं तो मौलवी ने कहा कि तुम रामनगर तो रोज आ नही सकते इसलिए अपने घर के पास एक मजार बनवा लो और उसमें सुबह शाम अगरबत्ती जलाते रहो। इसी प्रकार हाल ही में बीरोखाल विकासखण्ड अन्तर्गत भी बीरोंखाल बाजार के समीप एक मजार बनावाई गई और देहरादून के विरसणी क्षेत्र जो कि विकासनगर के अन्तर्गत आता है वहां भी एक किसान को अपने खेत में मजार बनवाकर सुबर शाम अगरबत्ती दिखाने की हिदायत दी गई। इन सब बातों से साबित होता है कि किसी सोची समझी शाजिस के तहत ये सब हो रहा है। लेकिन हमारे नेता और प्रशासन सोया हुआ है या सोने का नाटक कर रहा है।
देश का आम नागरिक किसी भी जाति, धर्म और सम्प्रदाय से हो कहीं भी अपनी आजीविका कमा सकता है कहीं भी रह सकता है। लेकिन जब शाजिसन किसी समाज को या समुदाय को निशाना बनाया जाता है, अपनी शाजिसों से दूसरे समाज को नीचा दिखाने के कुकृत्य रचें जाते हों तो फिर जागरूक समाज को सोचना पड़ता है और अगर समाज जागरूक न हो और वो इन शािजसों को न समझे तो उसे तथा उसकी आने वाली नस्लों को इन षड़यन्त्रों को दंश झेलना लाजमी हो जाता है।
उत्तराखण्ड के शहरों, बाजारों और कस्बों के अतिरिक्त गांवों से लेकर हिन्दू धर्म के उत्तराखण्ड में महत्वपूर्ण तीर्थों तक सब जगह हर धर्म सम्प्रदाय के लोग देश के कोने-कोने से आकर अपनी जीविका उर्पाजन करते रहते हैं। इस हेतु किसी को कभी कोई द्वेष परिलक्षित नही हुआ। यह उत्तराखण्ड समाज और इस क्षेत्र की सहिष्णुता ही है कि अपने लोग खुद असुविधा में हों लेकिन बाहर से आये लोगों की सुविधा का ख्याल पहले रखते हैं। यही कारण है कि देश समाज में जहां आज कोई अजनवी लोगों से बात तक नही करते वहीं पहाड़ में आज भी बाहर व्यक्ति चाहे वह राहगीर हो, व्यापारी हो उसे बिना नाम, जाति, धर्म पूछे लोग अपने घरों में जगह देते हैं, भोजन से लेकर उसके रहने की पूरी सुविधा बिना कुछ लिये करते हैं। लेकिन बाहर से आने वाले कुछ व्यक्ति पहाड़ के लोगों के इसी सीधेपन का गलत फायदा उठाकर कर अपराध करते हैं और अपनी शाजिसों में कुछ लोगों को फंसा देते हैं। यह आज से नही दशकों से होता आ रहा है लेकिन पहाड़ का जनमानस थोड़े समय के लिए उद्वेलित होकर फिर अपने उसी स्वभाव में लौट जाता है और कुछ बाहरी तत्व अपनी शाजिसों में सक्रिय होकर जनधन की हानि इन लोगों को पहुंचाते रहते हैं। लेकिन पहाड़ के लोगों द्वारा सबकुछ जान समझ कर भी इनका कठोरता से प्रतिकार न किये जाने के कारण ये सक्रिय हैं और अपनी शाजिसों को अंजाम देते रहते हैं। सब लोग जानते हैं कि कौन-कौन लोग हैं जो पहाड़ के गांवों में शाजिसन अपराध कर रहे हैं। लेकिन कभी किसी ने चाहे शासन हो या प्रशासन कभी कठोर कदम नही उठाया और इसी का प्रतिफल है सतपुली में घटित हो रहे कुकृत्य।
लेकिन अब शायद सीमा पार होने लगी है। यदि अब भी उत्तराखण्ड का जनमानस नही जागा तो आने वाले समय में उनको जागने को मौका भी नही मिलेगा। यह बात सौ आने सच और खरी है कि जिस प्रकार से शाजिसन उत्तराखण्ड को घेरा जा रहा है, जिस प्रकार से कुछ नेता इस सबको हवा दे रहे हैं उससे आने वाले दिनों में पहाड़ की शान्त वादियों में शान्ति नही रहेगी। जिसका मुख्य कारण यहां के रैवासी दिनों दिन बाहर बस रहे हैं और बिना जांच परख के बाहरी तत्व पहाड़ के गांवों तक पहुंच चुके हैं। सभी आने वाले अपराधी नही होगे, सभी शाजिसन नही घुस रहे होंगे लेकिन अधिकांश तो इसी मानसिकता के हैं और जो नही हैं वे यहां के लोगों के शान्त स्वभाव और आसान शिकार होने के कारण अपराधी बन जाते हैं।
स्थानीय पुलिस प्रशासन भी स्थानीय लोगों पर ही अपना डंडा चलाता आया है। बाहरी अपराधियों से ये भी डरते हैं और कुछ राजनैतिक संरक्षण के कारण कुछ कर नही पाते। लेकिन अभी भी समय है समझने का और होशियार होने का। सतपुली से लेकर पौड़ी तक या उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक सब जगह अपराधी तत्व हाजिर हैं।
कहा जाता है कि उत्तरकाशी में तो एक जमाने में नगरपालिका के किसी तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने वोट बैंक का मजबूत बनाने के लिए बाहरी लोगों को बसाया और उसके बाद किसी जिलाधिकारी ने इन बाहरी लोगों को जो जहां बसा था उसे वहीं जमीन का मालिकाना हक दिलवादिया और यही कारण है उत्तरकाशी बस अड्डे के पास बरूणावत पर्वत की तलहटी में सैकड़ों परिवार बसे हैं उनकी पूरी बस्ती है। उत्तरकाशी के दशहरा ग्राउंड में अवैध कब्जा आज भी है और कोई प्रशासनिक नुमाईंदा इनको हटाने का साहस नही कर सकता। बल्कि दिनों दिन और अधिक जमीन कब्जाई जा रही है। उत्तराखण्ड के तमाम शहरों और कस्बों में यही हाल है। गौ तस्करी से लेकर मानव तस्करी और चोरी सहित अन्य अपराध दिनोंदिन बढते जा रहे हैं। लेकिन कोई संज्ञान नही ले रहा है।
उत्तराखण्ड के जो लोग उत्तराखण्ड से बाहर बस गये हैं उनको भी मौके की नजाकत को समझना होगा। अपने घरगांव की सुध लेनी होगी। राजी-रोजगार के लिए बाहर जाना लाजमी है लेकिन अपनी पितृभूमि की अवहेलना किसी गंभीर संकट में डाल सकती है। इसलिए कोई कहीं भी रहे लेकिन पहाड़ हो आ रहे इस बदलाव और सामाजिक तानेबाने मे ंहो रहे बदलाव को समझना होगा। अपराधियों को किस कारण शह मिल रही है इसे समझना होगा और एकजुट होकर पहाड़ की वादियों को अशान्त होने से बचाना होगा।
अगर कोई ये सोचात है कि सतपुली में सुलग रही शाजिस की आग सिर्फ सतपुली को ही अपनी चपेट में लेगी यह मूर्खता के सिवा कुछ नही। उत्तराखण्ड में तमाम जगहों पर इस प्रकार की शाजिसें हो रही हैं लेकिन जनता से लेकर सरकार और शासन प्रशासन मौन है। सतपुली के बारे में तो यहां तक सुनने में आ रहा है कि स्थनीय पुलिस प्रशासन के दिग्गज अधिकारी अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने में तो कोताही बरत रहे थे और स्थानीय लोगों को धमकाकर और लाठी चार्ज करते जबरन चुप कराने कोशिश कर रहे थे।
अभी भी समय है उत्तराखण्ड की शान्त वादियों को शाजिसों से महफूज रखा जाये अगर यह आग यों ही बढती रही तो फिर इसमें कौन-कौन जलेगा और कहां तक यह शाजिस की आग फैलेगी इसका आकलन करना आसान नही होगा। इसलिए अपराधियों को अपराध करने का इन्तजार न करके उसके फन को उठने से पहले ही कुचल दिया जाये तो अच्छा होगा। सतपुली के शैतानों को कानून तो सजा दे ही, सतपुली से ऐसे अपराधियों को बाहर निकाल फंेकना हेागा। अगर इन शैतानों पर यों ही हील हवाल होती रही तो फिर कल समझने और संभलने का मौका किसी को भी नही मिलेगा।

Monday, September 26, 2016

शहीदों की कुर्वानी

शहीदों की कुर्वानी
दिनेश ध्यानी
पठान कोट के बाद उरी के
शहीदों की कुर्वानी पर
कुछ दिनों तक
लोग तिलमिलायेंगे,
जलेंगे-भुन्नायेंगे
पाकिस्तान को दुत्कारेंगे
श्रृद्धांजलियों का दौर चलायेंगे
शोक मनायेंगे
और फिर सब कुछ भूल
सामान्य होजायेंगे।
टीवी चैनलों पर
चेहरा पोते कुछ सेकुलर प्रजाति के
टीवी पत्रकार
आज की बड़ी बहस जुटायेंगे
मुस्कराते हुए
अपने खास मेहमानों का
रूबरू करायेंगे।
विभिन्न दलों के चुनिंदा वार्ताकार
सेकुलर गैंग के ठेकेदार
अपने-अपने
वोट बैंक और स्वार्थ को लेकर
अपने वक्तव्य सुनायेंगे
छद्म सेक्युलरिजम का
पाठ पढ़ायेंगे
सरकार को दुत्कारेंगे,
आतंकियों पुचकारेंगे
कश्मीर में पैलेटगन का विरोध कर
जिम्मेदारी से मुक्त हो
अपने घर को जायेंगे।
सरकारी खर्च पर
बडे़-बडे़ विश्वविद्यालयों में
मौज मना रहे देश विरोधी लम्पट
सोच के कुकर मुत्ते
देश के जवानों की
कुर्वानी को अपनी घिनौनी
वीभत्स सोच से हंसी में उड़ायेंगे।
देश समाज में
जब सब कुछ फिर से
सामान्य हो जायेगा
तब कहीं दूर किसी गांव में
शहीद के घर
चूल्हा-चैका चलाने का
अबोध बच्चों को पढाने का
बूढे सास-ससुर को ढांढस
बंधाने का
साहस उस विधवा के पास
कहां से आयेगा?
उसके जीवन की खुशियां
बच्चोें के सपनों की बगियां
कौन लौटायेगा?
संवेदना शून्य हो चुके
निष्ठुर समाज में
उसके जीवन विकट
वैधव्य कैसे कट पायेगा?
देश की सरहद पर
जवान अपनी जान की बाजी
कब तक लगाता रहेगा?
दशकों पूर्व की भयंकर राजनैतिक भूल
का खामियाजा जवानों का लहू
कब तक चुकाता रहेगा?

Tuesday, August 18, 2015

गढवाली का युवा कविकथाकार दिनेश ध्यानी जी दगड भीष्म कुकरेती कींलिखाभेंट.  


भीष्म कुकरेती: अपण कथगा कविता लेखी आलीन अर कथगा छपी गेन पर जरा प्रकाश डाळी.
दिनेश ध्यानी. नमस्कार कुकरेती जी. कना चा आप? मेरु लेखन का फिल्ड मा
अज्यों तक मीन लगभग द्वो सो गढ़वाली कविता लिखी यालिन. एक कविता संग्रह "गंगा जी का जो छन भैजी" का नौ से छपे गे अभी.  गर्हाली कहानी संग्रह  गंगा की बेटी छपना खुनी ज्यों चा. अर् एक कविता संग्रह अज्यों तैयार चा. मी थाई लोक जीवन अर् समस्याओं से आधारित कविता लेखुनु अच्छू लगदा. हिंदी की के कविता संग्रह मुझे मात मारो, छापना का वास्ता तयार च अर् एक लघु उपन्याश बांजाधार भी छापना का वास्ता तयार चा, हिंदी की कई कहानी अर् छुट पुट कविता कई लेखिन. अर् अज्यों भी जब मौका मिलदा कुछ ना कुछ लेखनु रैंदु.

भीष्म कुकरेतीकथाओं बारा मा बि जरा बथाव्दी की कै तरं क कथा लिखदआ.
दिनेश ध्यानी. मेरु एक कविता संग्रह गढ़वाली भाषा की छापना का वास्ता जायीं च. मी कहानी भी लोक जीवन अर् परिवेश की सची घटनाओं से सम्बंधित लेखादु. यो मेरी पैलू कहानी संग्रह चा. अज्यों तक जो भी लिखी खासकर कहानी अर् उपन्यास आदि वो सभी अपरू परिवेश अर् लोक जीवन से ही लियोन चा. कहानी हम्रू भुग्त्यों याँ जन्यों, सम्ज्यों जीवन की या सुन्यों कथा कहानियों माँ बीटी की ही अधिक होंद. बनावट अर् खलिश कल्पना से खी भी कहानी या रचनाओं की आत्मा मोरी जानद. इले हकीकत से वास्ता हो ता अचू रैंदु. यो मेरु मनाणु चा.

भीष्म कुकरेती आप कविता क्षेत्र मा किलै आएं.
दिनेश ध्यानी. जब मिल पैली कुछ लिखी ता वा कविता ही छाई. १९८४ की बात चा, मिन वी को इम्तन दीयों छो. बस वाबरी एक कविता लिखी. असल में व गज़ल लिखी छाई. बस लेखन को शौक राई अर् लेखन बैठू जो भी मन माँ बिचार आयें. ये फिल्ड माँ किले आऊं मी थें भी पता नि चा.
भीष्म कुकरेतीआपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
दिनेश ध्यानी. प्रभाव? मीथे ता अपरू ही प्रभाव देखेनु च बाकि पाठक ब्वालाला मी कुछु नि बोली सकदु ये बार मा.
भीष्म कुकरेती : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबलखुर्सी,पेनइकुलासआदि को कथगा महत्व च ?
दिनेश ध्यानी.. जथागा दाल का डगरी भात अर् खूटों का दगडी हाथ. यानी की सौब कुछ चयेंदु. रात सिन्दाओ भी अपरा खल्ला का समणी कागज, पेन अर् मोबाइल रख्दु... रात अचन्चक कभी बर्र नींद खुली जानद अर् तबरी अगर बिचार टीपी दे था भलू निथर गई ता फिर हाथ नि अओनु. एक लहर चा लेख्न भी, वे खुनी बातावरण भी चयेंदु अर् माहोल भी, बाकि बिचार च कबर आजो, कनु आजो कुछ नि बोल्येंदु. परीवश कु यकुलाश नि भी हो ता बिचारों कु यकुलाश जरुई च... तभी आप अच्छी कल्पना अर् रचना करी सक्दो.
भीष्म कुकरेतीआप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता
लिखण मा माफिक ओंदन?
 दिनेश ध्यानी. मी कागज में लेख्दु अर् टाइप भी करदू कंप्यूटर फरै.
भीष्म कुकरेती: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
दिनेश ध्यानी. याँ का वास्ता हमेशा अपर दगडी कागज अर् कलम रख्दु. रात सिन्दोव भी सिर्वान का समानी कागज कमाल रैन्द्द.
भीष्म कुकरेतीमाना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ?अर फिर क्या करदा ?
दिनेश ध्यानी. वे बगत मी कोसिस करदू की कुछ लिखू च कुछ भी हो पर अगर आपन बिचार कागज मा उकरी दिन ता ठेक नथार समुद्र की लहर की तारों कुछ नि रंदु. बिचार ऐया अर् अगर नि संभाली ता गई.
भीष्म कुकरेतीआप अपण कविता तैं कथगा दें रिवीज करदां ?
दिनेश ध्यानी. जानू टाइम मिलदा उठ्गा दफा देख्दु अर् हर बार कुछ ना कुछ देखि जानद.
भीष्म कुकरेतीक्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाचनई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /
आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
दिनेश ध्यानी. कविता या लेख लिखना का वास्ता क्वी ट्रेनिंग नि ले. बस मन मा बिचार आओना रैन अर् लेखनु रों.
भीष्म कुकरेतीहिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?
दिनेश ध्यानी. देश अर् काल को प्रभाव ता होन्दु चा. बाकी मेरी रचनों का बारम ता पाठक ही बता सक्दिन.
भीष्म कुकरेतीआप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सुखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?
दिनेश ध्यानी. मन की बात चा, कभी कुछ कभी कुछ चल्नु रेंदा, कोशिश करदू की हर भाव माँ कुछ ना कुछ लेखनु राउं. कभी कभी लगी की केखुनी लेखन, पर फिरभी यो हमारू धर्म च अर् जब भगवान ला कुछ बिचार दीयों चा ता वे थें कागज माँ लेखनु रैंदु.
भीष्म कुकरेतीकविता घड़याण मागंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
दिनेश ध्यानी. इकुलास की जरुरत होंदी च पर बिचार जबर आई तबरी लिखी दे, कोसिस करी की कागज अर् कलम हमेशा डागदरी रो, फिर चुप से कागज मा मन का बिचार उतारी दे.पर कभी कभी लगदु च जबर आप कुछ लेखन चा, कुछ सोचना चा ता वेबरि कैन कुछ बोली दे, या कुछ करिदे तब कुछ परेशानी होंदी च, बिचारों को तारतम्य टूटी जा ता भुरु लगदु.
भीष्म कुकरेतीइकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ?
इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद .
दिनेश ध्यानी. फरक ता जरुर पोडद, कबरी जरुरी काम या टाइम घर वोलों थें नि दे सकदु. तबरी भुरु लगदा. ऑफिस कु कम कभी नि रोक्दु. मेरु मन्नू चा की हमारू काम ही हमारू भगवन च. ये वास्ता अपरू काम थाई कभी नि रोक्दु या कभी कभी बिचार ओंद ता वेबरि कागज माँ उतारी देन्दु, बादम टाइम मिली ता पूरी रचना लिखी दे. हाँ पारिवारिक अर् सामाजिक जीवन जरुर प्रभावित होंद. सबसे भिन्डी परिवार थें परेशानी होंदी...

भीष्म कुकरेतीकबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि
करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
दिनेश ध्यानी. मेरी पंक्ति जो भी होंदी ना शुरू की वों से ही मी अग्नि चल्दु, मेरी रचना माँ कभी भी इनु नि हवे की पैली लिखी पंक्ति थें छोड़ी का नई रचना लिखू. कोशिश करदू की जो मन माँ बिचार आई वे से अग्ने बढे जा. फिर भी कभी कभी एक रचना की द्वि लेन्यों बीटी द्वि अलग अलग रचना निकली जनिदी, खासकर कविता का मामला माँ एनो होन्दा.
भीष्म कुकरेतीजब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
दिनेश ध्यानी. मेरी कलम अर् कागज हमेशा मी दगरी रैद, रात, बेरात जबरी भी बिचार औ, वे थें उतारी देन्दु, बिचार कबरी ऐ जाऊ कुछ बोली नि सकदा.
भीष्म कुकरेतीआप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
दिनेश ध्यानी. ना कभी मिन कई सब्द्कोश की मदद ने ले.  मेरु मन मा जो सबद आगे वे से ही अगने चल्दु.
:भीष्म कुकरेती हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
दिनेश ध्यानी. ना. कभी कबर टाइम मिली ता बांची देन्दु.
भीष्म कुकरेतीगढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
दिनेश ध्यानी. ह्वे सकदा, मिन बोली ना की देश अर् काल कु प्रभाव से कवी भी लिखवार कब तक बाचु रोलु? बाकि पाठक बताई सक्दिन. मिन क्या बोलण...?
भीष्म कुकरेती : भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां याआप यां से बेफिक्र रौंदवां
दिनेश ध्यानी. फिकर ता के बी चीज अर् कामा की कभी नि करदू. जो ह्वेजो भलु, जो नि ह्वे वो करणकी कोशिश करदू...कर्म कनु हमारू फराज च. खासकर अपनी बोली भाषा का वास्ता कुछ ह्वे सकू ता वे थें अपरू फर्ज मनिकी चल्दु.
भीष्म कुकरेती : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
दिनेश ध्यानी. कुछ खास नि जब भी मौका मिली ता वे कु साहित्य पढ़ी देनु.
भीष्म कुकरेतीभैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
दिनेश ध्यानी. छुटपुट जब लगा लगी तब कुछ पढ़ी दे....बस खास कुछ नि कद्रू.
भीष्म कुकरेती : आप हिंदीअंग्रेजीया हौरी भाषाओं क क्वा क्वा कविता कथा तैं गढवाली मा अनुवाद करण चैल्या ?
दिनेश ध्यानी. हां. अगर मौका मिली ता जरुर कनु चंदू. खासकर गढ़वाली की रचनों कु अनुवाद होर्यों की भाषा माँ होलू ता हमारी भाषा समृद्ध होली...
भीष्म कुकरेतीआपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?

दिनेश ध्यानी. बालपन मा दुन्गों बजे की सारयाँ बजा बाजा सिकी, मेला खौलों म हुडुकी, डोंर बजे, ब्यो बारातों अर् गमत का बाना हारमोनियम, बसूली, तबला, अर् नगर दमो बजे. बचपन मा अपर गांव माँ ब्यों बरत्यों माँ रामलीला खेली तबरी संगीत अर् साज की सोहबत मिली. पण रोटी का चक्कर माँ सभी कुछ छुटी गे. अब ता खलिश लालसा रेगे. मन करदू की कुछ माहोल मिलु ता कुछ खुद बिसरों पर अब ता रोटी की राकरोड़ अर् वाँ का बाद लेखन से फुर्सत नि मिलदी.
धन्यबाद कुकरेती जी. आप जाना विद्वत मन्ख्यों का दगडी बात कनु भलु लगी. आप गढ़वाली साहित्य अर लिख्वारों का वास्ता खार्यों काम कना छा. समाज अर् कलमकार सदन्नी आपका आभारी राला.



Friday, August 14, 2015

मेळा-खौळा अर लोक थाती थैं बिसरदु समाज
दिने”ा ध्यानी
हमरा लोक की थाती भौत वि”ाद अर विस्तृत छ। लोक गीत से ल्हेकि लोक कथाओं अर लोकोक्तियों को अपणु संसार छ। पैल्या जमन म घर गौं म यों समेत सब्बि विधा जो बि लोक म विद्यमान छाया, वों थैं बुन बच्याण अर छ~वीं बत्थों का माध्यम से एक पीढ़ि बिटे हैंकि पीढि तक सराणा काम हम्हर पुरण्यों न बाखूबि कै। यनु बुले जा कि हमरि लोक विधाओं को सम्प्रे’ाण का माध्यम से संज्वैकि रखे गै छौ त अतिसयोक्ति नि होलि। वै जमन म यों बिधाओं थैं पांडुलिपियों को रूपम य त संगzह नि करे गे अर अगर कैन कैरि बि होलु त भौत कम। हम्हरा समाज अर पारिवारिक पृ’ठ भूमि जन्नि-जन्नि बदलेणीं छन तन्नि योंं बिधाओं परैं संकट को बादळ मंडराणा छन। 
असल म पैल्या जमन म हम्हरा घर गौं म ददि, दाजी, बूबु अर बुढ~या लोग कथा कहानि सुणौंदा छाया। वौं कथा कहान्यों अर लोक गाथाओं थैं सूणि कि हम याद रखदा छाया अर औंण वळि पीढि थैं सुणैकि वों कु सम्प्रे’ाण अफ~वीं ह~वै जांदु छौ। पण अमणि पारिवारिक परिवे”ा बदलि गे। एक त पहाडौं बिटै पलायन होंण से पहाड़ से भैर रैंण वळा लोग अपणि लोक की थाति से कटै गैंन। एकल परिवारों को जो चलण हमुन अपनै वां से ददि दादा त पहाड़ म रैंगिन अर नाति नतिणां सैर वळ ह~वैगैंन यां से कथा अर कहान्यों सुणण अर सुणौण रिवाज खतम सि ह~वै गे। दुसरा कारण छन गौं म जो हम्हरा परिवार छैं बि छन वों कि जीवन चर्या यन्नि ह~वै गे कि टेलीविजन अर मोबाईल अर इण्टरनेट औंण से कथा कहान्यों थैं सुणण वळा नि रैगिन। यां से विगत दस-बीस साल का दौरान उक्त विधाओं थैं भौत नुकसान ह~वै। भौत सारि कहानि, लोकगीत अर लोकगाथा बिलुप्त सि ह~वैगिन। जां की क्षति पूर्ति होणु भौत मु”िकिल छ। उत्तराखण्ड बणणां बाद सोचि छौ कि यखा कि सरकार लोक की थाती थैं समळणां खातिर कुछ जतन कारलि पण जो बि सरकार एै तौंन अपणि कुर्सि बचौंण से अगनैं कुछ नि सोचि, कुछ नि कैरि।
गढवळि क सबसे पुरणा लोकगायक अर गीतकार श्री जीत सिंह नेगी जी जो अमणि उमर का बृद्धावस्था म चलणां छन वों क मन म यां बात की भौत टीस छ। नेगी जी लोकगीतौं का वै जमना का गायक छन जबरि गzामोफोन होंदा छाय, साठ को द”ाक म जीत सिंह नेगी जी लोक की थाती की समाळ कैरि पण अमण्या का हाल देखिकि वो बि बुल्दन कि हम्हरू लोक बिटे भौत कुछ हर्चणू छ अर भिण्डया यन्नु छ जो अगर समळे नि जौ त भौळ कुछ नि बचणु। इलै यां की सत समाळ होण चयेणीं छ।
हम्हर घर गौं म मेळा खौळा हम्हरू लोक की थाती का मिलन स्थल होंदा छाया। वख हम अपणि संस्कृति सभ्यता अर लोक से जुडीं बिण्डया बिधाओं से परिचित होंदा छाया। गीत से ल्हेकि नगर, दमौ, निसाण से ल्हेकि ठड~या, चौफळा, बौ अर कै बिधा यन्नि छै जौं को साक्षात दर्”ान यों मेळा खौळाों म ह~वै जांद छया पण जन्नि-जन्नि यि मेळा-खौळ उरेणां बंद सि ह~वैगैंन तन्नि हम्हरि लोक की थाती बि बिसरेणी जांणी छ। गौं म बै”ााख मैना द्वी गति बिटे उरेण वळा मेळों खातिर घर गौं म वसंत पंचमी बिटे गीत लगणा “ाुरू ह~वै जांद छाया। नंगर दमौं की घमघ्याट व्यखुनि दौं बिटे अध रात्यों तक होणौं रैंदु छौ। लोक बाग अपणां खेती पाती को काज काम निपटेकि रात-रात भर सरां ख्यलदा छाया अर गीत लगौंदा छाया। द्वी गति बै”ााख बिटे उरेण वळा मेळा सैरा गढवाळ कुमौ म जेठ का मैन तक चलदा छाया। यों मेळों म चीज बस्त खरीदणु हो चा मेल मिलाप हो यि गौं को लोखों की जिन्दगी का अहम हिस्सा होंदा छाया। परदे”ा रैंण वळ लोग अपणां-अपणां गौं म मेळाों का खातिर जरूर पौंछदा छया। सैसर वळि बेटि अपणां मैत औंदि छै। घर गौं ये टैम परैं खूब रंगत अर उल्यार सि रैंदु छौ। छ~वटा बच्चा सार लग्यां रैंछा छया कि हौरि बगत हो न हो पण मेळाों का बखत परैं वों का वास्ता नै-नै कपडा जरूर औणन। मेळों म खटे, मिठे, पुयांबाज अर चरखि आदि को कनु समौ रैंदु छौ। पण अमणि जनि-जन्नि समाज म पैंसा को प्रचलन ह~वै, रोटी-रोजगार का खातिर जन्नि मनखि अपणं घर गौं से दूर ह~वै तन्नि यखा रीति रिवाज अर मेळा खौंलों का दगड~या-दगड़ि यखा की लोक संस्कृति को बि हृास सि ह~वै गे जो कि भौत सोचनीय बात छ।
अमणि जर~र्वत यां कि छ कि हमुथैं अपणि लोक संस्कृति बचौण चयेणी छ। यांका वास्ता बिसरिगयां मेळा-खौंळौं थैं फिर से उरये जौ, यां का वास्ता कुछ लोग प्रयास बि कनां छन। पिछला मैना मई म संगळाकोटी म कोटे”वर महादेव का थान म अर सीकू गौं पौडी++ म छुयाळ समाचार पत्र द्वारा तीन-चार दिन कु मेळा अर विभिन्न विधाओं की प्रतियोगिता, गढ़वळि कवि सम्मेलन उरये गै। यखौ मेळा अर लोखों की रूचि देखिकि लग कि औंण वळा समय म बिसर्रदी परंपरा अर लोक की थाती कि समाळ ह~वैली। यै मेळा म लोकगीत, ठड~या, झुमैलो अर बौ आदि लोक विधाओं की गzाम स्तर परैं करे गे प्रतियोगिता खुब भल्लि छै अर नै पीढि का वास्ता एक संगzहणीय प्रयास छौ। हम्हरा ल्यख्वार, गितार अर लोक का प्रति सजग मनख्यों थैं अमणि अपणि लोक की थाती कि समाळ करण पोडलि जां से औंण वळि पीढि थैं हम अपण रीति-रिवाज, कला, संस्कृति अर लोकगीत, लोक कथा अर लोकोक्तियों थैं अगनै सर~यां सकां। लोक का प्रति सजग रैंण परैं हि हर्चदु लोक की विधाओं थैं बचये सकेंद जो कि अमणि भौज जरूरी छ। उम्मीद कर्दां कि हम अपणु लोक थैं समाळि कि रखला अर औंण वळि पीढि यों विधाओं से न सिर्फ परिचित होलि बल्कि वों थैं अपणां लोक परैं गर्व बि होलु।। 
दिने”ा ध्यानी

Wednesday, July 8, 2015

गेड
गेड भली
नि होंदी
जिकडू म ,
दगडयु म,
समाज म,
अर
मन्ख्यों म।
खुमसा खुमस
भि
अच्छी नि होंदी
परिवार म,
घर गौ म,
समाज म,
अर
आपसदारी म।
सब्यों को
अपरू नसीब च,
अपरू भाग्य च,
अपरू काम अर
अपरू सागोर च
काम कन्नो,
बात ब्व्वनो।
इलै
समाज हो,
साहित्य हो,
घर हो चा
कखि बि होवन
मिलि की रवा
मिलि की चला
अर सब्यों तैं
ऐथर बढ़ौना
जतन करा.
नथर
कैन क्य स्वचण?
कि फलण बल
हमरा
बड़ा छाया
पर तौन
हमु थैं कब्बि
सै बाटु
नि बथाया। …दिनेश ध्यानी। ८/७/१५. १बजे दिन।

Thursday, November 20, 2014

कबूतरी देवी : उत्तराखण्ड की पहली लोक गायिका
By म्यर पहाड़ on March 11, 2010

kabootari devi
श्रीमती कबूतरी देवी (सफेद शाल में)
आप लोगों ने यदि ७०-८० के दशक में नजीबाबाद और लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित कुमांऊनी गीतों के कार्यक्रम को सुना होगा तो एक खनकती आवाज आपके जेहन में जरुर होगी। जो हाई पिच पर गाती थी, “आज पनि झौं-झौ, भोल पनि झौं-झौं, पोरखिन त न्है जूंला” और“पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी”। इस आवाज की मालकिन हैं, उत्तराखण्ड की तीजन बाई कही जाने वाली श्रीमती कबूतरी देवी जी। कबूतरी देवी मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की निवासी हैं। जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से ६ कि०मी० पैदल चलना पड़ता है। इनका जन्म काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार् में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता श्री रामकाली जी से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे। लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। ७० के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी।

श्रीमती कबूतरी देवी जी विशेषतः ऋतु आधारित गीत (ऋतुरैंण) गाया करती हैं, कबूतरी देवी जी ने जो भी गीत गाये वे दादी-नानी से विरासत में मिले प्रकृति से संबंधित लोकगीत थे। अर्थात पहाड के आम जनमानस में बसे लोकगीतॊं को पहली बार उन्होंने बाहर निकाला। उन्होंने आकाशवाणी के लिये लगभग १०० से अधिक गीत गाये, उनके गीत आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, नजीबाबाद और चर्चगेट, मुंबई के केन्द्रों से प्रसारित हुये। उन दिनों उन्हें इन केन्द्रों तक उनके पति लेकर जाते थे, जिन्हें वे नेताजी कहकर पुकारती हैं और एक गीत की रिकार्डिंग के उन्हें २५ से ५० रुपये मिलते थे। अपने पति की मृत्यु की बाद इन्होंने आकाशवाणी के लिये और समारोहों के लिये गाना बन्द कर दिया था।इस बीच इनका एक मात्र पुत्र पहाड़ की नियतिनुसार पलायन कर गया और शहर का ही होकर रह गया। लेकिन पहाड़ को मन में बसाये कबूतरी जी को पहाड से बाहर जाना गवारा नहीं था।

इस कारण उन्होंने अपने २० साल अभावों में गुजारें, वर्ष २००२ में नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र, पिथौरागढ़ ने उन्हें छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया तथा लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति ने अल्मोड़ा में सम्मानित किया। इसके अलावा इन्हें पहाड संस्था ने सम्मानित किया। अब उत्तराखण्ड का संस्कृति विभाग भी उन्हें १००० रुपये प्रतिमाह पेंशन दे रहा है। कबूतरी जी वर्तमान में पिथौरागढ़ में अपनी पुत्री के साथ रह रहीं है।



http://www.merapahad.com/kabootari-devi-first-folk-singer-from-uttarakhand/

Friday, October 25, 2013



 

चिन्ह ही बाकी सफर के

शेष हैं कुछ पल डगर के
पंथ जो तय कर चले तुम
राह पर चलते रहे  हम.

देव तुम मानव के तन में
जिंदगीभर सादगी में
जी चले जीवन सुहाना
हमको सदा आशीष देना.

दरश की दरकार तो थी
मार्ग दर्शन था कराना
थी बिधाता की ये मर्जी
बिन मिले यूँ ही था जाना.

भाव अपनों में सदा हैं
जिंदगी में जस उन्हीं से
आप की छाया है उनमे
अब ये जीवन जुड़ा उनसे.
 दिनेश ध्यानी.....२५/१०/१३.