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Tuesday, October 25, 2011


एक साल कब बीत गया
देखो तो पता भी नहीं चला
कितने भावों अरू दुखों को
गया साल यह साल गया।
पापा जी के जाने का गम
सबको अन्दर से तोड़ गया
कैसी धारा को मोड़ गया
देखो तो कैसा समय रहा।
तनिक हमें तो पता न था
पल में ऐसा ही दिन आयेगा
जो हुआ अवनि! ने दृढ़ता से
सब फर्जों को अंगीकार किया।
बन बड़ी सयानी अरू पावस
सारे फर्जों को निभा दिया।
बेटा-बेटी में भेद नहीं
तुमने तो जग को दिखा दिया।
सच अवनि! हमारी देवी हो
दुख-सुख में जो सम रहती हो
बस चुप सब करती रहती हो
कुछ भी न किसी से कहती हो।---25 october..

Friday, October 21, 2011


रीति, नीति, समाज के सरोकार
निबाहना पड़ता है जग में
संबधों की परधि का रिवाज।
लेकिन इन सबके बीच जरा सा
वक्त खुद को भी देना होता है
खुद की  खातिर भी अवनि!
थोड़ा सा जीना तो होता है।
बोझ न बनें संबध और संबधी
अपनी बात भी रखना सीखो
सब की बात को मान तो दो
आत्मा की आवाज भी सुनो।
विचारों के प्रवाह को तुम
बेमन से नकारना छोड़ो
उचित का रखो तुम ध्यान
सबके भावों का लो संज्ञान।
अपनों की खातिर तुमने
जीवन अपना खपा दिया
पगली अपने हुनर को
क्यों ऐसा लुका दिया?
तुम गंगा सी पावन हो
यमुना सा तुममें है धीरज
पावन होती है वो धरा
जहां पड़े तुम्हारी चरण रज।
तुमसे एक निवेदन
तुम्हार अनगढ़ करता है आज
अपने हुनर और कला को
तुम दो फिर से आवाज।
तुम बढ़ो तुम पढ़ो
तुम्हारा हो जगत में नाम
तुम्हारे नाम से ही तो है
मेरे भावों का सम्मान।
रिश्ता नाता और संबध
तुमसे जैसा नहीं किसी से
बस तुम जानो या मैं जानूं
इक दूजे के भावों को पहचानें।...... 21.10.2011.

Tuesday, August 30, 2011


रास्ते का पत्थर
मैं रास्ते का
एक पत्थर हूं
कोई ठोकर मारता
कोई इधर कोई
उठाकर
उधर फेंकता।
जब जिसका
जी करता मेरे
आत्म सम्मान से
खेलता।
मैं चुपचाप
अपने भाग पर
आंसू बहाता
और कभी कभी
न चाहते हुए भी
यह सोचकर
मुस्कराता
कि चलो में राह में
पड़ा तो हूं
मुझे लोग
पटकते
उठाते हैं
और मेरे भावों से
खेलते हैं तो क्या
मैं उन पत्थरों से
बेहतर जो
दीवारों में चिने हैं
जो नींव में बुने हैं
और जो खुद को
खपाकर कितना
बोझ सहे हैं।
दुनियां की नजर में
मेरी कोई कीमत न हो
मेरा कोई मान न हो
लेकिन मैं जानता हूं
मैं दीवार से लेकर
ढ़ोर ड़ंगरों
और इधर उधर हांक
लगाने के लिए दुzत
गति से गोली की मांनिद
लपक जाता हूं
यह बात अलग है
कि मेरी भावना
और मेरे मान को
कभी मान नही मिला
जिसको जैसा
मौका मिला
सबने मेरा
उसी प्रकार से
प्रयोग किया।।....ध्यानी... 30 अगस्त. 2011

सच्चा प्यार 
अनुभूति है
समर्पण की
पराकाष्ठा है
जज्ब होने की।
चाहना है
अपने से बढ़कर
चाहने की
बस यों कहो
खुद को खोकर
पzेम पाने की।
सारे भावों में
अलग और
दीन दुनियां से विलग
उस पावस के पास
बस जीवन के
हर भाव में उच्छवास।
पागलपन है
सनकी मौज है
न हो पास तो
वेदना दिल में
तनमन की अगन
बस उसी की लगन।
पzेम प्यार नहीं
सबके नसीब में यार
जिसे मिले सच्चा प्यार
करो उसका ऐतबार
वर्ना जब नही होता पास
तब होता है
उसके महत्व का अहसास।
मत खोना गर मिला है
तुम्हें सच्चा प्यार
बमुश्कित मिलता है
जग में किसी-किसी को
सच्चा प्यार।
नसीब वाले होते हैं वे
अवनि! जिसे मिलता है
सच्चा प्यार।
मर्जी तुम्हारी रखो संभाल
करो ऐतबार या
फिर यों ही खो दो या
कर दो दरकिनार
लेकिन कभी कम या कभी
भुलता नही सच्चा प्यार।
प्यार करने वाला तो
सनकी होता है
अपने को जलाकर पेzेम की
लौ को जलाये रखता है
अपने प्यार की याद में
दिन रात जलता और
तड़पता रहता है
बहुत टूटता रहता है
जब उसे नही
समझता, नही मानता
उसका प्यार।
सुनो! हो सके तो रखो संभाल
और
अगर गंवा दिया तो फिर
कभी नही मिलेगा दुबारा
यह तो बस सिर्फ और सिर्फ
जीवन में मिलता है
एक बार।
तुम्हारी मर्जी करो ऐतबार
रखो उसे संभाल या
यों ही जाया कर दो उसे
समझकर बेकार और
वाहियात की बात।
तुम्हारी सोच और
तुम्हारा विचार
जिसने किया सच्चा प्यार
वह तो मरकर भी
करता रहेगा अवनि
तुम्हें प्यार।।... ध्यानी.... 30 अगस्त, 2011.





Wednesday, August 17, 2011


वाह! रे अन्ना हजारे ....


वाह! रे अन्ना हजारे
बहुत खूब किया प्यारे
बेईमानों की गाल पर
मारे तमाचे करारे....
वाह! रे अन्ना हजारे.
धरती के तुम बेटे
भारत की आत्मा हो
दीन हीन के हमदर्द
बेसहारो के हो सहारे....
वाह! रे अन्ना हजारे.
जन-जन चेत चुका
भारत अब जाग चुका
तुम्हारी एक आवाज ने
खोल दिये पट सारे.... 
वाह! रे अन्ना हजारे..
सूरत भी बदलेगी
सीरत भी बदलेगी
जन-गण-मन जागेगा
भारत भूमि से अब
बेईमानी का भूत भी भागेगा
सब जन हैं अब तुम्हारे सहारे...
 वाह! रे अन्ना हजारे.
तुमने दी आवाज
एकजुट भारत आज
एक और आज़ादी का
तुमने अलख जगाया
तुम्हारी सोच सभी पर भारी
हिला दी सत्ता सारी
मुहं चुराते है अब
चोर,गद्दार सारे......
वाह! रे अन्ना हजारे.
नमन तुम्हें भारत के सपूत
जन-जन के ह्रदय सम्राट
तुम हो हम सबके प्यारे..
वाह! रे अन्ना हजारे...

Stud Earring Holder Stand - Wooden Heart Shape (Earrings Not Included)

Thursday, August 11, 2011


समय का हिसाब
खुद से निसाब
कहाँ हो पाता है
किसी से भी ज़नाब?
कुछ गुनते हैं
कुछ बुनते हैं
सपनों की मीनार
बस यों ही चुनते हैं.
सोचा गर होता
क्यों फिर दिल रोता
तुम्हीं कहो अवनि !
हर सपना सच होता है?
कुछ मिलता है
बिन सोचे ही जब
बस जीवन तब
अवनि धन्य हो जाता है........ ध्यानी १२ अगस्त, २०११.

Tuesday, August 2, 2011


तीज का त्यौहार


आये अवनि बार बार
सदा ही रहे जीवन में
खुशियों का अम्बार.
जीवन की बगिया
हरदम रहे गुलज़ार
मुबारक हो आपको
ये तीज का त्यौहार.....ध्यानी..... २ अगस्त, २०११

Wednesday, July 20, 2011


मेरे अपने मेरे सपने


कल तक मेरी आंखों में
उनके सपने तैर रहे थे।
आज वे मेरे अपने
सपना सा हो गये हैं।
इसी रास्ते से गये थे
वे परदेश जाने वाले
जो अब खालिस
मेहमान बन गये हैं।
सोचा था अपनी धरती में
कुछ न कुछ हो जायेगा
अपनों को साया
अपनों को मिल पायेगा।
लेकिन नियति ने तो
अजीब खेल रचा ड़ाला
वे ही हमारे दूर हो गये
जिन्हें जान से अधिक पाला।
आखिर क्यों होता हो ये
क्या किसी का शाप है?
यहां की माटी, पानी की भांति
मनखी भी बाहर जाने का अभिशिप्त हैं।
सच अवनि! हमने तो यही देखा है
पहाड़ों से और जो गये
तो फिर मेहमान हो जाते हैं।। ध्यानी 20 जुलाई, 2011

Friday, July 15, 2011

समय की अपेक्षा


समय को लेकर
खींचतान सब
दिखते हैं परेशान।
किसके पास है?
कौन है इतना इजी?
सब अपने आप में
लगते हैं बिजी।
शिकवा शिकायत
समय को लेकर
तुम्हारी, हमारी
कुछ व्यस्तता
और कुछ लाचारी।
जानता हूं और
मानता भी हूं
लेकिन अवनि!
आशा, अपेक्षा
तो रहती ही है
कुछ इधर
कुछ उधर।
यह भी सच है कि
मेरे हिय में
आस,विश्वास
और भावनाओं की
परधि में
सिर्फ और सिर्फ
तुम ही तुम रहती हो
लाटी खफा क्यों होती हो?......ध्यानी 15 जुलाई, 2011.

Tuesday, July 12, 2011

रात ने पूछा चांद से
तू क्यों ड़ोले-ड़ोले
फिरता रहता?
कहा चांद ने
मेरे सपने कहीं
खो गये
उन्हें खोजता।
बंद आंखों से
जब भी घरों में
कोई सोता
तभी सोचता
काश कहीं
उनकी आंखों में
मेरे सपने
तैर रहे हों
उन्हें खोजने
ड़ोल रहा हूं।। ध्यानी 12 जुलाई, 2011

उदास क्यों होती हो

उदास क्यों होती हो
धीरज क्यों खोती हो
बड़े-बड़ों ने दुख झेले
तुम क्या अलबेली हो?
तुम इक बंूद नीर की
मैं भी तो अश्क ही हूं
तुम बहती नदिया में
मैं कपोलों में लुढ़कती हूं।
पल का ही जीवन है
फिर भी तो अच्छा है
भावों को प्रकटाते
जो भी है सच्चा है।
नदिया या सागर हो
हमसे ही तो वे हैं
हम है तो जीवन है
अवनि बिन सब सूना है।। ध्यानी 12 जून 2011

Wednesday, July 6, 2011

कभी अपनी लगती
कभी लगती परायी
कभी कच्ची अमिया
कभी फूल सी अमराई.
कभी ख्वाब लगती
कभी हकीकत से बात
कभी रूखे भाव और
कभी सच होते जज्बात.
कभी दिल के पास
कभी जीवन से दूर
कभी खुश मिजाज
कभी बेहद उदास
कभी रेत के लिखावट
कभी सपनों की सजावट
कभी अवनि लगे सुन्दर
कभी बेहद अकुलाहट.... ध्यानी. ७ जून, २०११.

Monday, July 4, 2011

कशमकश में रात भर
यों कुछ नहीं सूझा उसे
ज़िन्दगी की बेरुखी ने
खूब झकझोरा उसे.
बहुत सोचा कुछ न सूझा
अल सुबह फिर उठ गया
कुछ ना बोला चुपके उठकर
राह अपनी बढ़ गया.
बस जरा सी देर को वो
उस जगह फिर रुक गया
चूम कर ऱज उस धरा की
माथे अपनी रख लिया.
वो जगह जन्नत लगे
उसको बहुत थी पाक वो
सच अवनि आज़ाद ने भी
पग रखा था उस जगह.
सब उसे पागल हैं कहते
सच में पागल वो रहा...?
देश की सेवा में अपना
स्वाहा सबकुछ कर गया....ध्यानी. ४ जून.२०११
(दोस्तों चन्द्र शेखर आजाद के कोटद्वार गढ़वाल आगमन पर दुगड्डा में आज भी श्री भवानी सिंह रावत और आजाद जी के नाम से स्मारक है. वहां पर एक और दीवाना था आज़ादी का... जिसने अपना सबकुछ देश सेवा के लिए कुर्बान करदिया........ उस बीर को नमन.)

Friday, July 1, 2011

मेरी मनौती।


अल सुबह उठा
शंकराचार्य मंदिर गया
पावस परिवेश
भला माहौल रहा।
पूजा में उठे हाथ
तुम भीं थी साथ
मांगी मनौती हमने
बना विश्वास।
अपनों को सपनों का
होता रहे आगाज
न कभी दूर हो हमतुम
न कभी उभरे खटास।
शंकराचार्य के चरणों में
उनकी प्रार्थन कुटी में
धूप-दीप जब किया
तब भी अन्तस में
तुम्हारा अहसास रहा।
जानती हो अवनि!
तुम बिन कुछ भी
अस्त्तिव न कुछ बोध
तुम ही तो हो जिसने
किया भावों को विभोर।
तुम कल्पना में
सपनों में अभास
तुमसे से ही है
सपनों का आकाश।
दूर रहो या पास
हर भाव में रहतीं
सबकुछ सहती
न अकेले होने देती
न कभी भटकने दिया
तुम्हारा सम्बल और
तुम्हारा प्यार.........!
यही मांगा और यही
भोले ने दिया।। ..... ध्यानी... 1 जुलाई, 2011

Wednesday, June 22, 2011

लाटी...
जीवन का आधार
दिल को पांती
बहुत दूर तन से
दिल में ही समाती.
लाटी
भावों की महक
जीवन की खनक
गीतों का सुर
सपनों की सौगात.
लाटी
मेरी पहचान
मेरी जान
सबसे अजीज
सबसे खास..
लाटी मेरी
जीवन धारा
मेरा सहारा
मेरी नय्या
भरोसेमंद
किनारा.
लाटी मेरी जान
लाटी मेरी पहचान
अवनि मेरी लाटी
बहुत भली इंसान...ध्यानी....२२.जून, २०११.
2.
सामने पहाड़ था
झील में दिखता अक्ष
जैसे मेरे दिल में
मेरी अवनि की मूरत.
शंकराचार्य मंदिर की
घंटी सुनाई देती
अवनि बिन बाकी
बहुत ही सुनसान.
घूमा भी, देखा भी
मगर सच मानो
तुम बिन कुछ भी
सुहाता नहीं था.
तुम तन में
तुम जीवन में
तुम ही मेरी अवनि
मेरे मन अन्तश में....ध्यानी ... २२ जून, २०११.

रात का सन्नाटा
डल का किनारा
बहुत मन्दम था
लहरों में शिकारा.
गगन में मेघ बहुत
उमड़ घुमड़ जाते
घनघोर घटा में
"अवनि"...! याद आती.
बहुत दूर तन से
मन से पास ही था
सच मानो तुम बिन
बहुत ही उदास था....ध्यानी २२ जून. २०११.

Monday, June 13, 2011

एकं अधूरे गीत का
मुखड़ा मात्र
भाव रहित पंक्ति
छन्द, बन्द रहित,
तुमने छेड़कर
मधुर सुर तान
मधुर संगीत में
ढ़ाल दिया।
मेरा उर शुष्क
मरूस्थल पर
जमा पड़ा था
भावों का संसार.
अवनि! पाकर नाजुक स्पर्श
तुम्हारे अवचेतन का
पिघल गया गंगा की मानिंद
मेरा अन्तस पा गया
अमरत्व और
हो गया मैं धन्य।
तुमने मुझे, मेरे अस्त्त्वि को
नई जीवन की धारा
नया आयाम दिया
मैं अस्तित्व विहीन सा
तुम्हारे देवत्व रूपी
भावों की ओट पाकर सच
पूर्णत्व को प्राप्त हो गया।। ... ध्यानी 13 जून, 2011.

हाईकू


1.
तुम मिलीं
जीवन की
बगियां खिली।


2.
सिर पर
आसमान
तभी तक
मां-पिता का
साया जब तक।


3.
पzेम में
पूर्णत्व
अवनि संग
अपनत्व।


4.
तुम और मैं
न जानें
कब हम बनें
तब पता चला
जब भाव खिले।
5.


इन्तजार करना
भावों में उजास
भरना मैं आउंगा
लौटकर तुम
मेरी राह तकना।


6.
वाहियात की
बातों में तुम भी
ध्यान न धरना
तुम मुझसे और मैं
तुमसे बस विश्वास
बनाये रखना।


7.
तुम मेरी आत्मा
तुम मेरा सत्व
तुम बिन अवनि
मेरा क्या अस्तित्व?....ध्यानी.... 13 जून. 2011.





Thursday, June 9, 2011

तुम ऐसी क्यों हो...?


बहुत सरल
बहुत ही सीधी
अवनि सही में
सबसे अच्छी।
भाव तुम्हारे
पावन गंगा
तुम जीवन की
अनुपम निधि हो।
नहीं किसी से
जरा रंज है
नही किसी से
तनिक तंज है।
तुम मानव तन
में देवी हो
सच कहता हूं
तुम अनुपम हो।
संस्कारों की
तुम पांती हो
जीवन लौ की
तुम बाती हो।
तुम सच सब में
अलग बनी हो
कहो अवनि तुम
ऐसी क्यों हो...? .... ध्यानी 9 जून, 2011.





थोड़ा-थोड़ा करके...!


थोड़ा तुम सुनो
थोड़ा हम सुनें
आओ हम तुम
कुछ अलग गुनें।
थोड़ा तुम सहो
थोड़ा हम सहें
आओ हम तुम
कुछ अलग बनें।
थोड़ा तुम रचो
थोड़ा हम रचें
आओ हम तुम
कुछ अलग करें।
थोड़ तुम झुको
थोड़ा हम झुकें
आओ हम तुम
कुछ अलग चलें।
थोड़ा तुम कहो
थड़ा मैं कहूं
आओ हम तुम
इतिहास रचें।
थोड़ा तुम लिखो
थोड़ा हम लिखें
अवनि! हम तुम
कुछ विचार गढ़ें।।..... ध्यानी.... 9 जून, 2011.





















Monday, June 6, 2011

जीवन आधार
मां के बाद तुम्हें
इतने करीब से जाना है
जितना समझता हूं
उतना ही गूढ़ पाया है।
भावों की उदारता
दोनों में समानता
संस्कारों की धरा
अपर्ण की महानता।
अपनी सुध बुध
जीवन किया होम
बाहर से कठोर
अन्तस में मोम।
रचना बसना में
दूर दूर तक नहीं
जो भी रचा, बसा
अपनों की ही खातिर।
जानती हो अवनि!
मां बहुत उदार थीं
अपने हिस्से का गzास भी
औरों में बांट देती थीं।
और तुम...!!
तुम तो उनसे
दो कदम आगे हो
भूखों को भोजन
मायूसों को मुस्कराहट
बांटती हो।
तुमको पाकर सच मैं
पूर्णत्व को पा गया
मां ने दिया जीवन
अवनि! तुमने संवार दिया।।..ध्यानी... 07 जून, 2011.









Friday, June 3, 2011

तुम्हारा होना मेरे लिए
बहुत मायने रखता है
तुम्हारा कोमल स्पर्श
मेरे सपनों की बंदगी
तुम्हारी मुस्कराहट
अवनि! मेरी ज़िन्दगी....ध्यानी. ३/६/११

Wednesday, June 1, 2011

सम्मोहन


कभी जीवन का, कभी जीने का
कभी प्रेम का, कभी प्यार का
कभी लोकाचार का, कभी संसार का
कभी अपनों का, कभी सपनो का
कभी धन का, कभी मान का
कभी नाम का, कभी काम का
कभी राग का, कभी द्वेष का
कभी आज का, कभी कल का
कभी सदियों का, कभी पल का
जानते हुए भी कि सब छूटना
सब टूटना और बिखरना है
फिर भी जीब का, जगत का
सम्मोहन नहीं छूट रहा?...ध्यानी ०१ जून, २०११

Tuesday, May 31, 2011

विचार प्रवाह








विचारों के प्रवाह को रूकने न दो


देह को अपनी थकने न दो


अभी तो कदम बढ़े है राह में


हिय की अगन को बुझने न दो।


मिसाल बनानी है तो ड़र कैसा


इतिहास बनाना है तो वहम कैसा


बात को सिद~दत से रखो तुम


शर्मायेदारों से घबराना कैसा?


ठाना तो उत्तराखण्ड बनाया


गैरसैंण अब बारी समय है आया


जरा अपनी ताकत का इल्म करो


समय ने फिर तुम्हें है पुकारा।


समय की धारा में निर्भय बढ़ो


ग्ंागा-जमुना मुल्क के वाशिंदे हो


समय बाट जोहता है तुम्हारी


बस जरा तुम अड़िग तो रहो।.... ध्यानी. 30 मई, 2011.

अचानक विचारों में प्रवाह बढ़ गया


जैसे सावन भादों में नदी का उफान
गर्मियों में हिमनदों का वेग बढ़ जाता है
उसी तरह मेरे अन्तस में एक विचार
कौंध गया, मैं सोये से जाग गया।
बहुत हो गईं अब बेकार बातें
बहुत कुछ जाया किया इन सबमें
खोया अधिक और, पाया शून्य।
इसलिए मैं आज से बल्कि अभी से
अवनि! अपने विचारों को, सोच को
अपने आवेग को नई धारा और
अपने स्वपनों को नई जमीन
देने की सोच रहा हूं।
जानती हो ये सब क्यों हो रहा है?
तुम्हारे कोमल भावों का स्पदन,
तुम्हारे पवित्र मन का और
तुम्हारी सोहबत का असर है
कि अनगढ़ आदमी बन रहा है।
बस गुजारिश है कि तुम यों ही
मुझे जगाती रहना,
मेरे सत्व का याद दिलाती रहना
मैं अनगढ़ तुम्हारे सहारे के बिना
न जाने कब फिर से राग, द्वेष और
बेकार की उलझन में न फंस आउूं
ये तुम्हारी जिम्मेदारी है अब क्यों कि
मैंने सर्व समर्पण किया है तुम्हारे आगे
इसलिए अवनि!अब तुम जानो
और तुम्हारा काम जाने।।... ध्यानी. 30 मई, 2011

Monday, May 30, 2011

अचानक विचारों में प्रवाह बढ़ गया


जैसे सावन भादों में नदी का उफान

गर्मियों में हिमनदों का वेग बढ़ जाता है

उसी तरह मेरे अन्तस में एक विचार

कौंध गया, मैं सोये से जाग गया।

बहुत हो गईं अब बेकार बातें

बहुत कुछ जाया किया इन सबमें

खोया अधिक और, पाया शून्य।

इसलिए मैं आज से बल्कि अभी से

अवनि! अपने विचारों को, सोच को

अपने आवेग को नई धारा और

अपने स्वपनों को नई जमीन

देने की सोच रहा हूं।

जानती हो ये सब क्यों हो रहा है?

तुम्हारे कोमल भावों का स्पदन,

तुम्हारे पवित्र मन का और

तुम्हारी सोहबत का असर है

कि अनगढ़ आदमी बन रहा है।

बस गुजारिश है कि तुम यों ही

मुझे जगाती रहना,

मेरे सत्व का याद दिलाती रहना

मैं अनगढ़ तुम्हारे सहारे के बिना

न जाने कब फिर से राग, द्वेष और

बेकार की उलझन में न फंस आउूं

ये तुम्हारी जिम्मेदारी है अब क्यों कि

मैंने सर्व समर्पण किया है तुम्हारे आगे

इसलिए अवनि!अब तुम जानो

और तुम्हारा काम जाने।।... ध्यानी. 30 मई, 2011.

Thursday, May 19, 2011

स्वभावगत कुछ कमजोरियां हैं
जिन्हें हम सिद्दत से स्वीकारते हैं.
कुछ गलतियाँ होजाती हैं अक्षर
सुधरने की कोशिश भी करते हैं.
आपसे छुपा है जो झूट बोलेंगे?
समय की कसोटी पे हमे तोलेंगे
इंशान हूँ गलतियों का पुतला हूँ
माफ़ी की गुजारिश भी करता हूँ.
अवनि! अनुपम तुम अतुलनीय हो
हो सके तो हमे माफ़ तुम कर दो...... ध्यानी. १९/५/११.

Wednesday, May 18, 2011

इक लहर दिल में उठी है, जान लेके जायगी
हमको तो अब हर घड़ी तुम्हारी याद आयेगी
कैसे अपने दिल को जाने तुम तस्सली दे गए
हमको तो अब हर घड़ी याद तेरी रूलायेगी... Dhyani. 18/5/11

जब भी उदास होता था




दिल की गहराई से तब


तुम्हे अपने करीब पाता था


अवनि! आज तुम दूर हो


इस उदासी में क्या करूँ?


कहो किससे अपना दर्द


बयां करूँ?....ध्यानी. १८/५/११.
अवनि! सुनो! तुमने मुझे
इतना कुछ दिया है
कि मेरा पूरा जीवन
तुम्हारी यादों के सहारे
गुजर जायेगा।
देह रूप से
साथ हो या न हो
मन और भावों में
एक दूसरे के
अन्तस में रहेंगे ही।
चाहकर भी हम
अलग-अलग नही
हो सकते हैं
क्यों कि हम और तुम
अन्तस में, भावों में
जीवन की हर विधा में
और पल-पल की
धड़कन में इस तरह
रच बस गये हैं कि
हमारा अलग-अलग
अस्तित्व बेमानी होगा।
तुम जानती हो अवनि!
तुमको पाने से पहले
मैं ऐ निर्जीव
र्निभाव एवं मात्र
एक मनुष्य मात्र था।
तुमने मेरे जीवन में
आकर मुझे सभी भाव
मान, सम्मान और
सबसे अहम
मेरी पहचान दी।
तुम कैसे मुझसे जुदा
मुझसे कैसे विलग
हो सकती हो?
तुम तो मेरी सांसों में
मेरी आस में
मेरे विश्वास में
और मेरे कल आज
और कल में बसी हो।
इसलिए तुम्हारे मेरे
भाव और हमारी
विगत की स्मृतियां ही
मेरा सर्वस्व है
तुम साथ हो तो
दुनियां में कुछ भी
असह~य या दुरूह नही
लेकिन तुम गर साथ न हो
तो फिर मैं
परिभाषा विहीन
भाव रहित और
अधूरा हूं।
लेकिन अगर तुम बिन
जीना भी पड़ा ना
तो तुम्हारी यादों को
तुम्हारे भावोें को
अपनी स्मृतियों को
अपने भविष्य
अपने जीवन का
सहारा बनाकर
आज की मानिंद
कल और अन्त तक
तुम्हारी पूजा करता रहूंगा
तुम्हें यों ही चाहता रहूंगा
क्यों कि तुमने जो भाव दिये हैं
तुमने जो मान और सम्मान दिया
तुमने जो मुझे पहचान दी
उसे कभी भुला नही सकूंगा।
इसलिए हे! मेरी अवनि!
मेरे जीवन में आकर
तुमने मेरा जीवन
सफल कर दिया है
अब यह तुम्हारा अनगढ़
तुम्हारी यादों के सहारे
जीवनभर तुम्हारी स्मृतियों में
खोया रहेगा और
तुम्हारी बाट जोहता रहेगा।।... ध्यानी 18 मई. 2011.





तुम मेरा सर्वस्व हो
मैं हूं तुम्हारा ही प्रतिरूप
तुम रहती हो मेरे हिय में
बनकर मेरे भावों की धूप।
मुझमें तेरा प्यार भरा है
तुझमें मेरा स्पदन है
तुमसे मिलकर मैने जाना
सबसे बढ़कर हो तुम सच।
एक दिन अचानक तेरी माया
ने मुझको यों खींच लिया
सबकुछ तुझमें दिखता है अब
मेरा तो कुछ नही रहा।
मेरा हिय अरू मेरी चेतना
भावों की इस उसर धरा में
अवनि! सदा ही दिल में रहती।
तुम मेरे जीवन की परधि हो
तुम भावों की पुंज पल्लविका
अवनि! सुनो तुम खफा न होना
वरना मुश्किल मेरा जीना।
सच कहता हूं यों न समझना
वेशक अनगढ़ हूं मैं तेरा
लेकिन उर में हिय में तुम हो
और बताओं कौन है मेरा?
तुम रूठी क्यों जरा बताओं
थोड़ा तो चलता रहता है
तुमने इसपल सच ना सोचा
तुमबिन अनगढ़ का क्या होगा?
अवनि आजाओं मत तरसाओं
सब भावों में तुम ही तुम हो
कसम मुझे जो तुम्हें भुलादूं
तुम तो मेरी जीवन निधि हो।। ध्यानी. 18 मई, 2011.

























जरा से वेग से तटबंध नही टूटते
छोटी सी गलती से संबध नही छूटते।
मानता हूं गलती हुई मुझसे वेशक
जरा सी गलती पर यों नही रूठते।
मेरी तरह तुम भी परेशां हो रही हो
इत्ती सी बात को हिय पर नही लेते।
जरा सी रूसवाई से मौन नही धराते
अपनापन है हमारा फिर रूठ नही जाते।
अवनि! तुम अनुपम व्यथा नही छुपाते
जो भी हो मतांत्तर खुलकर है बताते।
तुम्हारे बिना कौन है हमारा इस जहां मंें?
जानती हो तुम फिर वहम नही पालते।। ध्यानी 18 मई, 2011.