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Tuesday, July 12, 2011

रात ने पूछा चांद से
तू क्यों ड़ोले-ड़ोले
फिरता रहता?
कहा चांद ने
मेरे सपने कहीं
खो गये
उन्हें खोजता।
बंद आंखों से
जब भी घरों में
कोई सोता
तभी सोचता
काश कहीं
उनकी आंखों में
मेरे सपने
तैर रहे हों
उन्हें खोजने
ड़ोल रहा हूं।। ध्यानी 12 जुलाई, 2011

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