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Monday, September 26, 2016

शहीदों की कुर्वानी

शहीदों की कुर्वानी
दिनेश ध्यानी
पठान कोट के बाद उरी के
शहीदों की कुर्वानी पर
कुछ दिनों तक
लोग तिलमिलायेंगे,
जलेंगे-भुन्नायेंगे
पाकिस्तान को दुत्कारेंगे
श्रृद्धांजलियों का दौर चलायेंगे
शोक मनायेंगे
और फिर सब कुछ भूल
सामान्य होजायेंगे।
टीवी चैनलों पर
चेहरा पोते कुछ सेकुलर प्रजाति के
टीवी पत्रकार
आज की बड़ी बहस जुटायेंगे
मुस्कराते हुए
अपने खास मेहमानों का
रूबरू करायेंगे।
विभिन्न दलों के चुनिंदा वार्ताकार
सेकुलर गैंग के ठेकेदार
अपने-अपने
वोट बैंक और स्वार्थ को लेकर
अपने वक्तव्य सुनायेंगे
छद्म सेक्युलरिजम का
पाठ पढ़ायेंगे
सरकार को दुत्कारेंगे,
आतंकियों पुचकारेंगे
कश्मीर में पैलेटगन का विरोध कर
जिम्मेदारी से मुक्त हो
अपने घर को जायेंगे।
सरकारी खर्च पर
बडे़-बडे़ विश्वविद्यालयों में
मौज मना रहे देश विरोधी लम्पट
सोच के कुकर मुत्ते
देश के जवानों की
कुर्वानी को अपनी घिनौनी
वीभत्स सोच से हंसी में उड़ायेंगे।
देश समाज में
जब सब कुछ फिर से
सामान्य हो जायेगा
तब कहीं दूर किसी गांव में
शहीद के घर
चूल्हा-चैका चलाने का
अबोध बच्चों को पढाने का
बूढे सास-ससुर को ढांढस
बंधाने का
साहस उस विधवा के पास
कहां से आयेगा?
उसके जीवन की खुशियां
बच्चोें के सपनों की बगियां
कौन लौटायेगा?
संवेदना शून्य हो चुके
निष्ठुर समाज में
उसके जीवन विकट
वैधव्य कैसे कट पायेगा?
देश की सरहद पर
जवान अपनी जान की बाजी
कब तक लगाता रहेगा?
दशकों पूर्व की भयंकर राजनैतिक भूल
का खामियाजा जवानों का लहू
कब तक चुकाता रहेगा?