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Monday, June 17, 2013

उत्तराखण्ड में बाढ़, भूस्खलन और तबाही का मंजर
कहीं जानकर अनजान बने रहने की सज़ा तो नहीं ये..



दिनेश ध्यानी.
इस देश में जितने भी अपराध हो रहे हैं उनमें से अधिकाशं के मूल में या यूँ कहें की  ९५ प्रतिशत अपराधों  के पीछे किसी न किसी तरह शराब की भागीदारी होती है. लेकिन जागरूक जनता  और सरकारें कभी भी इस और ध्यान इंगित नहीं करती, कारण लोगों में ९५ प्रतिशत से अधिक लोग शराब का सेवन करते  हैं और सरकारों को सर्बाधिक रेवेन्यू (पैसा) इसी शराब से मिलता है. इसलिए कोई भी इस बुराई को बंद करने की बात नहीं करता.
वहीं उत्तराखण्ड में हो रही तबाही पर आंसू तो सभी बहा रहे हैं लेकिन सच का सामना करने की हिम्मत किसी की नहीं. यहाँ टिहरी बाँध सहित नदियों पर बन रहे सैकड़ों बाधों के कारण यहाँ मौसम में बदलाव तेजी से आ रहा है, पहाड़ कमजोर पर रहे हैं और जगह-जगह बाँध बनने से गर्मियों में बहुत तेजी से वाष्पीकरण होने के कारण बादल बहुत अधिक पानी सोख रहे हैं जिस कारण वे बहुत भरी हो रहे हैं, इतनी भारी बादल कहाँ बरसेंगे? और उसी का नतीजा है उत्तराखण्ड सहित सम्पूर्ण हिमालय छेत्र में बादल फटना, भू स्खलन, और बाढ़ का ताण्डव हर साल विकराल से विकराल रूप में सामने आ रहा  है. बिकास के नाम पर अपनी पीठ थपथापने वाले नेता हों या पर्यावरण के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले अधिसंख्य लोग कोई भी इस और ध्यान नहीं देता, ना इस बारे में बात करते हैं.
उत्तराखण्ड के तथा कथित पर्यावरण विद भी अपनी अपनी डफली लेकर चल रहे हैं, कोई भी इस बारे में बात नहीं करता की टिहरी बाँध बनने के बाद हो हालत बने हैं उनसे कैसे निपटा जाए? नेता हवाई यात्रा करके बयान जारी करके अपना फर्ज पूरा समझते हैं, आलीशान घरों में रहने वाले, जनता पा पैसा फुकने वाले नेता क्या जाने बदल फटने, बाढ़ और भू स्खलन से क्या तबाही होती है... दूसरों के दर्द से अगर इन्हें कुछ लेने देना होता तो पिछले साल के हादसे से सबक लिया होता, लेकिन किसी ने भी कुछ सबक नहीं लिए और यही कारण है की इस साल शुरू में ही तबाही का मंजर खौफ़नाक रूप इख्तियार कर गया. जिसमे जान माल का बहुत नुकसान हुआ है.
      इस बरबादी का खामियाजा जनता भी ही भुगतना पड़ रहा है. जिनके घर बह गये, जिनके अपने पराये बह गये हैं उनसे पूछो क्या होता है तबाही का दर्द. अगर यही सोच और नजरिया रहा तो साल दर साल यही दुहराया जायेगा और जनता को यूँ ही खामियाजा भुगतना होगा....
     अभी समय सरकार उत्तराखण्ड के बारे में कुछ सटीक रणनीति बनाकर यहाँ हो रहे एक पक्षीय विकास की गाथा पर पुनर्विचार करे और विकास का विश्व रिकार्ड बनाने से पहले यहाँ की जनता के हितों और उनके जीवन के बारे में भी सोचे. अन्यथा आने वाले कल में क्या होगा इसका आकलन करना मुश्किल होगा... सरकार जन सरोकारों को अपनी जूठी तुष्टि और थोथे बिकास के नाम पर दर किनार नहीं कर सकती हैं... देश का सीमांत इलाका अगर हर साल इस प्रकार की  आपदा खामियाजा भुगतता रहेगा तो ये शुभ संकेत कदापि नहीं हैं.


Tuesday, June 11, 2013





















जरा सी भूल

दिनेश ध्यानी

इस शहर में कमरा मिलना कितना मुश्किल हो गया है। अब तो मकान मालिक एक कमरा किराये पर देने के लिए भी हजारों नखरे दिखाते हैं। असल में मकान मालिक भी क्या करें, जमाना ही इतना खराब हो गया है कि किसी को किसी पर विश्वास ही नही रहा।
राकेश को इस शहर में दो साल हो गये हैं। सरकारी विभाग में सेवारत हैं, लेकिन सरकारी मकान नही मिला। किरायेदार को कितनी परेशानियों का सामना करना पडता है, अगर देखना हो तो महीने की आखरी तारीख के करीब किसी प्राइवेट काWलोनियों की तंग गलियों मंे आकर देखो। सामान लादे टzक और रिक्शा कैसे घूमते रहते हैं। उनके पीछे बेहताशा परेशान किरायेदार, कोई हाथ में छोट, मोटा सामान लिये कोई बच्चों को गोदी में उठाये रिक्शे के पीछे तेज-तेज कदमों से दौडते हुए कमरा बदलने के लिए।
कमरे में सामान रखकर राकेश आलमारी खोली तो उसमें एक बडा सा लिफाफा रखा हुआ मिला। राकेश ने लिफाफे को खोला तो उसके अन्दर एक पत्र रखा हुआ था। पहले उसने सोचा कि रहने दे, क्या पता किसका पत्र है नही पढता, लेकिन फिर जिज्ञासावश उसने पत्र को पढना शुरू किया तो उसमें डूब सा गया । पत्र पढकर राकेश का मन भारी हो गया। उसे लगा कि उसने इस पत्र को पढकर कहीं कोई गलती तो नही की। क्या ऐसा भी होता है दुनियां में? लोग जरा-जरा सी बात में अलग हो जाते हैं। जरा सी बात में प्यार को कुर्वान करना और जीवन की दिशा और धारा बदल देते हैं? सोचकर ही राकेश पसीना-पसीना होया। पत्र का मजबून इस प्रकार से था।
मेरी प्यारी लाटी! कैसी हो तुम। आशा है तुम कुशल होंगी। लाटी अचानक ये क्या हो गया? हमारा इतने दिनों का संबध पल में ही छिटक गया। तुम्हें पता है कि जब तुम बात नही करती हो, तो फिर कैसा हो जाता हूं। जानता हूं मुझसे अधिक परेशान तुम भी होंगी। लाटी क्या मेरी जरा सी भूल के कारण सच में हमारा रिश्ता समाप्त हो जायेगा? कभी सोचा भी नही था कि तुम अचानक इतने दिनों तब बात ही नही करोगी।
तुम मेरा जीवन, मेरा संबल और मेरी आशा, अभिलाषा, और परिभाषा हो। तुम्हारे बिना तो मैं जीने की कल्पना भी नही कर सकता हूं। तुम मेरी आत्मा हो और आत्मा के बिना क्या शरीर का कोई अस्तित्व होता है? तुम्हें पाकर में पूर्णता को प्राप्त हो गया हूं। मुझे जीवन में अगर मेरी मां के बाद किसी ने प्रभावित किया है तो वो तुम हो मेरी लाटी। मां ने मुझे जन्म दिया और तुमने मुझे जीना सिखाया, जीवन संर्घष में कैसे धैर्य बनाये रखना है और सदा ही आगे बढने के लिए सदा ही प्रेरित किया है।
जानता हूं तुम क्यों नाराज हो। तुम्हारी नाराजगी अपनी जगह जायज है, लेकिन इस तरह चुप्पी साधने से अच्छा होता बात करतीं। जीवन में कभी-कभी अचानक कुछ ऐसा भी घटित हो जाता है, जिसकी कल्पना भी हम नही करते। और आपसी संबधों की धरा चरमराने लगती है, सामने वाले के प्रति हमारा अनुराग और विश्वास डिगने लगता है। जब कि हकीकत में असलियत कुछ और ही होती है। मैं खुद को पाकसाफ कदापि नही बताता क्यों कि आखिर मैं भी इंसान हूं लेकिन इतना जानता हूं कि जब से तुम मेरे जीवन में आई हो तब से किसी और के बारे में सोच भी नही सकता। तुम मेरे लिए क्या हो इसे शब्दों में परिभाषित करना मेरे बूते की बात नही है।
किसी और पोस्ट को फेस बुक में शेयर करके मैंने नाहक तुम्हारा दिल दुखाया, जब कि तुम भी जानती हो कि मेरा उससे कोई सरोकार नही है।यों समझ लो कि हमें परेशान करने का सबब था। लेकिन तुम्हें इससे से शक हुआ होगा, जो कि लाजमी है। लेकिन मैं कसम से कहता हूं कि ऐसा कुछ नही जिस कारण हमारा संबध बिगडे या अविश्वास का माहौलन बने। दूसरी बात अप्रैल को जोे आगzह था, उसने भी तुम्हें आहत किया होगा। इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूं। अच्छा होता कि अगर आपको किसी भी प्रकार की शंका होती या परेशानी होती तो मुझसे शेयर करती। अच्छा होता कि हम बात करके सारे मामले को सुलटा लेते।
तुम्हें याद है मैने तुम्हें कहा था कि मेरा तुम्हारे आगे पूर्ण रूप से समर्पण है और मैं आंख बंद करके तुम पर खुद से अधिक विश्वास करता हूं। क्योंकि तुम मेरा संसार हो जीवन हो और सत्व हो। लाटी मुझे तुम्हारा साथ चाहिए और सिद~दत से चाहिए। तुम्हारे बिना मैं जीने की कल्पना भी नही कर सकता। तुम जो बोलोगी वही करूंगा और किसी प्रकार तुम्हारा मन नहीं दुखाउंगा।  मेरे मन में जीवन में और हर भाव में लाटी तुम ही थीं और जीवन पर्यन्त रहोगी, कामना है कि तुम बस मुझसे जुडी रहना। सुनो! अगर पुर्नजन्म होतो है तो मैं हमेशा भगवान से हुआ करूंगा कि मुझे हर जन्म में मेरी ही लाटी मिले।
पत्र में आगे लिखा था कि........
बीते दिनों की हर बात जब याद आती है तो अतंस को झकझोर देती है। किस प्रकार से हम तुम मिले और जन्म जन्मातर एक रहने की कसम खाई थी। वो दिन याद करो जब हम तुम पहली बार मिले थे। तुम्हें याद है ना हम दोनों को कुछ कदम साथ-साथ चलना और दो अजनबियों का दो जिस्म एक जान होने तक का सारा मंजर कितना सुखद और भावपूर्ण था। सच तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गया। जब भी मुझे कोई कष्ट हुआ तो दर्द तुम्हारी आंखों में छलका और जब तुम उदास होती हो तो तडप मेरे दिल में उठती है। लाटी तुमने कैसे हर भंवर से मुझ उबारा क्या वो भुला सकता हूं? मेरे लिए तुमने जो कष्ट सहे हैं, जो परेशानियां उठाई हैं, उनको कैसे भुला सकता हूं? मैं हां नादान जरूर हूं लाटी,  लेकिन किसी प्रकार से अहसान फरामोश या दगाबाज नही हूं।
हमारा प्यार सतही नही है। ये दो आत्माओं का संगम और भावनओं की गंगा का मूर्तरूप है। तुमने ही तो कहा था उस दिन कि मैं जल्दबाज हूं कोई भी फैसला लेने से पहले सोचता नही हूं। सुनो एक बार फिर से मुझे उन्हीं संबोधनों से पुकारो ना मेरी लाटी। जब तुम हंसकर मुझे उक्त संबोधनों से बुलाती हो तो बहुत अच्छा लगता है। चिडचिडे, चिडंगे और बेचैन आत्मा कहो ना प्लीज।
मैं आज भी वहीं खडा हूं तुम्हारी बाट जोह रहा हूं और हर पल, हर घडी, हर भाव में और आती जाती सांसों मंे सिर्फ तुम्हारा नाम ही आता है। आज भी हर पल इंतजार रहता है कि तुम कभी न कभी तो अपनी चुप्पी तोडोगी। लेकिन कभी डर भी लगता है कि अगर तुमने ये चुप्पी न तोडी तो मेरा क्या होगा? लेकिन दूसरे पल अन्दर से एक अटूट विश्वास भी सहारा देता कि, नहीं मेरी लाटी ऐसा नही कर सकती। यही विश्वास मुझे सुबह से दिन, दिन से शाम, शाम से रात और फिर रात से नई सुबह की प्रतीक्षा करने का संबल देता, कि कभी न कभी मेरे प्यार की नई सुबह होगी और हमारा छोटा सा संसार फिर से गुलजार होगा।
सोचा मकान बदल दूं। यहां हर कोने में तुम्हारे साथ फोन पर की गइz बातों की यादें अब मुझे चैन से नही रहने दे रही हैं। बाWलकानी हो या कमरा या नीचे बागीचा कहीं भी मन नही लग रहा है। हर जगह तुमसे जुडी यादें हैं इसलिए असहनीय पीडा में जी रहा हूं। यह गलत है अपने दुख से भागना नही सामना करना चाहिए लेकिन लाटी जब दर्द भंयकर बढ जाऐ  तो उससे फौरी तौर पर राहत जरूरी है। मैं भगोडा नही हूं लेकिन सच लाटी तुम्हारी यादें इतना तडपारही हैं कि असह~य दर्द क्या होता है आज पता चला।
लाटी बहुत लिख दिया है। कम लिखा अधिक समझना और भूलचूक माफ करते हुए अपने लाटे से बात करना, मैं प्रतीक्षा में हूं कि तुम कब लौटोे। काश तुम अपना मौन तोडती और बात करती। लाटी अपना खयाल रखना तुम भी मेरी तरह अपने प्रति बहुत लापरवाह हो और जरा भी अपना खयाल नही रखती हो। पहले ही जीवन में अपनी लापरवाही करके बहुत कुछ खो चुकी हो और अब और लापरवाही ठीक नही। अपना खयाल रखना और लाटी याद रखना तुम ही मेरा जीवन हो, तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में सोचना भी पाप है। तुम्हारा लाटा।
राकेश ने पूरा पत्र एक ही सांस में पढ दिया। इन दो प्रेमियों के वियोग और वेदना का दस्तावेज है यह पत्र। उस पागल प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को लिखा होगा, लेकिन कमरा बदलने की जल्दबाजी में इसे यहीं छोड गया होगा। राकेश ने उस पत्र को संभाल कर रख दिया। उसने सोचा कि उन पागल प्रेमियों में से क्या पता कभी कोई अपना खत लेने आ जाए। राकेश की समझ में भी नही आ रहा था कि जरा सी गलती पर उस लडकी ने अपने प्रेमी से बात बंद क्यों कर दी होगी? ऐसा तो नही करना चाहिए था उसे। कम से कम बात तो करती, शिकवा शिकायत करती। गलती तो हर किसी से भी हो सकती है। लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नही कि तुम चुपमार कर बैठ जाओ। यह भी सच है कि प्यार जितना गहरा और पाक होगा उसमें एक दूसरे के हाव भावों पर एक दूसरे की पैनी नजर होगी। और एक दूसरे के प्रति समर्पण और न्यौछावर होने का जज्बा ही तो प्यार को आकार देता है। अच्छा यही होता है कि जब आपस में संदेह, शक या कोई शंका उत्पन्न हो जाए तो उसका समाधान वार्ता से होना चाहिए। एक पक्षीय फैसला अक्सर बाद में गलत साबित होते हैं लेकिन बाद में फिर उस गलती को सुधारने का मौका नही मिलता दूसरी बात अगर प्रेम सच्चा हो तो उसे कोई दूसरा कैसे चुरा सकता है? खुद पर और अपने प्रेम पर विश्वास होना चाहिए। जरा-जरा सी बातों पर संबध समाप्त करने की नादानी नही करनी चाहिए।
राकेश भी पत्र पढकर और उन दोनों के बारे में सोचकर भावुक हो गया। उसे पता ही नही चला कब नौ बज गये। उसने अभी सामान भी नही लगाया था और खाने पीने का भी कोई ठिकाना नही था। आज तो उसे होटल में ही खाना होगा। राकेश ने  पत्र उसी लिफाफे में रखते हुए कहा मन ही मन कहा हे भगवान कितना चाहता है वो अपनी प्रेमिका को काश ऐसा प्यार सभी को मिलता। इन दोनो प्रेमियों की सुलह करा दो ओर फिर से इनके पुराने दिन लौटा दो।
















प्रेम कि गूल में
नेह के फूल से
भावों का स्पन्दन
हौले से देती हो.
हर्षित मन
खिलता तन
नेह थाप पाकर
पुलकित है रोम-रोम
कैसा अवनि प्रेम है...दिनेश ध्यानी...११/६/१३