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Friday, October 25, 2013



 

चिन्ह ही बाकी सफर के

शेष हैं कुछ पल डगर के
पंथ जो तय कर चले तुम
राह पर चलते रहे  हम.

देव तुम मानव के तन में
जिंदगीभर सादगी में
जी चले जीवन सुहाना
हमको सदा आशीष देना.

दरश की दरकार तो थी
मार्ग दर्शन था कराना
थी बिधाता की ये मर्जी
बिन मिले यूँ ही था जाना.

भाव अपनों में सदा हैं
जिंदगी में जस उन्हीं से
आप की छाया है उनमे
अब ये जीवन जुड़ा उनसे.
 दिनेश ध्यानी.....२५/१०/१३.

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