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Wednesday, July 20, 2011


मेरे अपने मेरे सपने


कल तक मेरी आंखों में
उनके सपने तैर रहे थे।
आज वे मेरे अपने
सपना सा हो गये हैं।
इसी रास्ते से गये थे
वे परदेश जाने वाले
जो अब खालिस
मेहमान बन गये हैं।
सोचा था अपनी धरती में
कुछ न कुछ हो जायेगा
अपनों को साया
अपनों को मिल पायेगा।
लेकिन नियति ने तो
अजीब खेल रचा ड़ाला
वे ही हमारे दूर हो गये
जिन्हें जान से अधिक पाला।
आखिर क्यों होता हो ये
क्या किसी का शाप है?
यहां की माटी, पानी की भांति
मनखी भी बाहर जाने का अभिशिप्त हैं।
सच अवनि! हमने तो यही देखा है
पहाड़ों से और जो गये
तो फिर मेहमान हो जाते हैं।। ध्यानी 20 जुलाई, 2011

Friday, July 15, 2011

समय की अपेक्षा


समय को लेकर
खींचतान सब
दिखते हैं परेशान।
किसके पास है?
कौन है इतना इजी?
सब अपने आप में
लगते हैं बिजी।
शिकवा शिकायत
समय को लेकर
तुम्हारी, हमारी
कुछ व्यस्तता
और कुछ लाचारी।
जानता हूं और
मानता भी हूं
लेकिन अवनि!
आशा, अपेक्षा
तो रहती ही है
कुछ इधर
कुछ उधर।
यह भी सच है कि
मेरे हिय में
आस,विश्वास
और भावनाओं की
परधि में
सिर्फ और सिर्फ
तुम ही तुम रहती हो
लाटी खफा क्यों होती हो?......ध्यानी 15 जुलाई, 2011.

Tuesday, July 12, 2011

रात ने पूछा चांद से
तू क्यों ड़ोले-ड़ोले
फिरता रहता?
कहा चांद ने
मेरे सपने कहीं
खो गये
उन्हें खोजता।
बंद आंखों से
जब भी घरों में
कोई सोता
तभी सोचता
काश कहीं
उनकी आंखों में
मेरे सपने
तैर रहे हों
उन्हें खोजने
ड़ोल रहा हूं।। ध्यानी 12 जुलाई, 2011

उदास क्यों होती हो

उदास क्यों होती हो
धीरज क्यों खोती हो
बड़े-बड़ों ने दुख झेले
तुम क्या अलबेली हो?
तुम इक बंूद नीर की
मैं भी तो अश्क ही हूं
तुम बहती नदिया में
मैं कपोलों में लुढ़कती हूं।
पल का ही जीवन है
फिर भी तो अच्छा है
भावों को प्रकटाते
जो भी है सच्चा है।
नदिया या सागर हो
हमसे ही तो वे हैं
हम है तो जीवन है
अवनि बिन सब सूना है।। ध्यानी 12 जून 2011

Wednesday, July 6, 2011

कभी अपनी लगती
कभी लगती परायी
कभी कच्ची अमिया
कभी फूल सी अमराई.
कभी ख्वाब लगती
कभी हकीकत से बात
कभी रूखे भाव और
कभी सच होते जज्बात.
कभी दिल के पास
कभी जीवन से दूर
कभी खुश मिजाज
कभी बेहद उदास
कभी रेत के लिखावट
कभी सपनों की सजावट
कभी अवनि लगे सुन्दर
कभी बेहद अकुलाहट.... ध्यानी. ७ जून, २०११.

Monday, July 4, 2011

कशमकश में रात भर
यों कुछ नहीं सूझा उसे
ज़िन्दगी की बेरुखी ने
खूब झकझोरा उसे.
बहुत सोचा कुछ न सूझा
अल सुबह फिर उठ गया
कुछ ना बोला चुपके उठकर
राह अपनी बढ़ गया.
बस जरा सी देर को वो
उस जगह फिर रुक गया
चूम कर ऱज उस धरा की
माथे अपनी रख लिया.
वो जगह जन्नत लगे
उसको बहुत थी पाक वो
सच अवनि आज़ाद ने भी
पग रखा था उस जगह.
सब उसे पागल हैं कहते
सच में पागल वो रहा...?
देश की सेवा में अपना
स्वाहा सबकुछ कर गया....ध्यानी. ४ जून.२०११
(दोस्तों चन्द्र शेखर आजाद के कोटद्वार गढ़वाल आगमन पर दुगड्डा में आज भी श्री भवानी सिंह रावत और आजाद जी के नाम से स्मारक है. वहां पर एक और दीवाना था आज़ादी का... जिसने अपना सबकुछ देश सेवा के लिए कुर्बान करदिया........ उस बीर को नमन.)

Friday, July 1, 2011

मेरी मनौती।


अल सुबह उठा
शंकराचार्य मंदिर गया
पावस परिवेश
भला माहौल रहा।
पूजा में उठे हाथ
तुम भीं थी साथ
मांगी मनौती हमने
बना विश्वास।
अपनों को सपनों का
होता रहे आगाज
न कभी दूर हो हमतुम
न कभी उभरे खटास।
शंकराचार्य के चरणों में
उनकी प्रार्थन कुटी में
धूप-दीप जब किया
तब भी अन्तस में
तुम्हारा अहसास रहा।
जानती हो अवनि!
तुम बिन कुछ भी
अस्त्तिव न कुछ बोध
तुम ही तो हो जिसने
किया भावों को विभोर।
तुम कल्पना में
सपनों में अभास
तुमसे से ही है
सपनों का आकाश।
दूर रहो या पास
हर भाव में रहतीं
सबकुछ सहती
न अकेले होने देती
न कभी भटकने दिया
तुम्हारा सम्बल और
तुम्हारा प्यार.........!
यही मांगा और यही
भोले ने दिया।। ..... ध्यानी... 1 जुलाई, 2011