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Friday, March 5, 2010

मदन जोशी एक अद्भुत पत्रकार ..

उत्तराखण्ड की महान विभूतिः स्वर्गीय पत्रकार मदन जोशी दिनेश ध्यानी
नई दिल्लीः उत्तराखण्ड आन्दोलन के अग्रणी चिंतकों में से एक वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय मदन जोशी को उनके नौंवें निर्वाण दिवस के अवसर पर याद किया गया। बैठक का आयोजन मदन जोशी के पत्रकार साथियों ने वसुन्धरा इन्कलेव में किया। उत्तराखण्ड सरकार से मांग की गई कि मदन जोशी के नाम से उनके गांव सैंधार से वेदीखाल तक की रोड़ का नामकरण मदनजोशी मार्ग किया जाए। दूसरे प्रस्ताव मंे यह पारित हुआ कि स्वर्गीय जोशी की स्मृति में एक मदन जोशी स्मृति गं्रथ का प्रकाशन किया जाए। ज्ञातव्य हो कि मदन जोशी एक अग्रणी आन्दोलनकारी एवं चिंतक रहे हैं। श्री जोशी ने अपने सम्पूर्ण जीवन को उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्पित कर दिया था। मदन जोशी का जन्म 10 फरवरी 1955 को गढ़वाल के वीरौंखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत सैंधार ग्राम में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके गांव के स्कूल एवं वेदीखाल से 12वीं पास किया उसके बाद अपने पिताजी के साथ हिमाचल चले गये। वहीं से बीए पास किया। सरकारी नौकरी में आने के बाद भी स्वच्छन्द स्वभाव के जोशी सरकारी सेवा से त्यागपत्र देकर 1977 में देहरादून आ गये। देहरादून में एमए करने के साथ ही पत्रकारिता से जुड गये। यहंा इन्हौंने अपना टंकण एवं शार्टहैंड़ इस्टिट्यूट भी खोला लेकिन स्वचछन्दता के कारण एवं खोजी पत्रकारिता में व्यस्त रहने एवं उत्तराखण्ड आन्दोलन में रहने के कारण व्यवसाय पर ध्यान नही दे पाये।स्वर्गीय मदन जोशी ने दूनदर्पण से अपनी पत्रकारिता की पारी की शुरूआत की और नियति की विडं़बना देखिये कि जीवन के अन्तिम पड़ाव में श्री मदन जोशी दून दपणर््ा में ही आ गये थे। दून दर्पण में श्री मदन जोशी 1986 से बतौर उप सम्पादक के तौर पर कार्य किया इस दौरान आपने दून दर्पण को नया कलेवर और तेवर दिये। समाचार पत्र के मालिकान से मतभेद होन के कारण आपने 1985 में दून दर्पण से त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद श्री सी. एम. लखेड़ा द्वारा सम्पादित जनलहर, दैनिक में आपने बतौर उप सम्पादक कार्य किया। इस बीच आप स्वतंत्र रूप से भी लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। इस बीच आपने एमएस में दुबारा एडमीशन लिया और एसएफआई से जुड़कर आप बामपंथ की राजनीति के माध्यम से डीएवी कॉलेज में भी छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। जल, जंगल और जमीन के सरोकारों से बढ़ते हुए आप अस्सी के दशक में उत्तराखण्ड राज्य की मांग और इसके औचित्य को जन-जन तक पहुंचाने के उदे्श्य से दिल्ली प्रवास पर आये और सन् 1986 में आप दिल्ली के होकर ही रह गये। दिल्ली से प्रकाशित तत्कालीन प्रसिद्ध पाक्षिक पर्वतीय टाईम्स में आप बतौर सहायक सम्पादक जुडे़। इस बीच उत्तराखण्ड से आये कनकटे बैल जो कि पहाड़ के विकास एवं लोन के नाम पर निरीह जानवर के बार-बार कान काटकर उसे मृत घोषित कर दिये जाने के गंभीर षड़यंत्र को उजागर करने के लिए अल्मोड़ा से भवदेव नैनवाल द्वारा दिल्ली लाया गया था। कनकटा बैल प्रकरण ने सड़क से संसद तक काफी धूम मचाई थी और पहाड़ में बढ़ते भ्रष्टाचार की पोल खाली थी। इस प्रकरण में मदन जोशी जी का योगदान ऐतिहासिक रहा है। प्रकरण मे आपका सहयोग अविस्मरणीय रहा। पौड़ी से शराब माफिया द्वारा मारे गये पत्रकार उमेश ड़ोभाल हत्याकांड़ को आपने अपनी लेखनी और खोज परक पत्रकारिता के बल पर काफी हद तक लोगों के सामने रखा और शराब माफिया मनमोहन सिंह नेगी का फोटो पहली बार पर्वतीय टाईम्स में छापकर आपने काफी नाम कमाया। यह वह दौर था जब कोई भी मनमोहन का फोटो नही खींच सकता था और अगर खींच लिया तो किसी की हिम्मत नही थी कि उसका फोटो छाप सके लेकिन आपने पर्वतीय टाईम्स के माध्यम से पत्रकारिता को नया आयाम दिया। पर्वतीय टाईम्स में कार्य करते हुए आपने दिल्ली में उत्तराखण्ड के लोगों एवं प्रवासी संगठनों को एक मंच पर लाने का कार्य किया। तत्कालीन उत्तराखण्ड युवा शक्ति मंच, उत्तराखण्ड प्रगतिशील मंच जैसे सामाजिक संगठनों को एक मंच पर लाकर आपने आने वाले समय के उत्तराखण्ड आन्दोलन की जमीन दिल्ली में तैयार की। इसी बीच आप भवन मजदूरों के आन्दोलनों से लेकर हर उस आन्दोलन में अपनी भागीदारी निभाते रहे जो जन सरोकारों से जुड़ा हुआ था। फरवरी 1987 में दिल्ली में उत्तराखण्ड आन्दोलन के लिए जमीन तैयार करने के लिए उत्तराखण्ड एकता सम्मेलन का आयोजन करवाने में श्री मदन जोशी का योगदान अविस्मरणीय रहा। उक्त सम्मेलन में देश के कौने -कौने से उत्तराखण्ड के संगठनों एवं आन्दोलनकारी संगठनों को बुलाया गया था और यह उत्तराखण्ड आन्दोलन में एक मील का पत्थर साबित हुआ। श्री मदन जोशी ने सितम्बर 1991 से अगस्त 1992 तक आकाशवाणी दिल्ी में उप सम्पादक के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद आप पुनः देहरादून चले गये। मई 1995 से 1996 तक दैनिक हिमालय दर्पण में उप सम्पादक के रूप में कार्य किया। 1868-87 के दौरान आप पुनः दिल्ली आ गये तथा दैनिक जागरण में बतौर उप सम्पादक कार्य किया। इसके अतिरिक्त जनसत्ता, चौथी दुनिया, गंगा रविवार, संचेतना, अवकाश आदि पत्र, पत्रिकाओं में लिखते रहे। हिन्दी से अंग्रेजी एवं अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद एवं शोधपरक लेख भी आपने लिखे। श्री मदन जोशी का वैवाहिक जीवन सफल नही रहा। आपने अपनी पत्नी से मनमुटाव होन के कारण सहमति के आधार पर तलाक ले लिया। श्री जोशी किसी पर अपनी भावनाओं और इच्छा को नही थोपना चाहते थे और वे यह अपने लिए भी नही चाहते थे कि कोई उनकी आजादी या विचारों से समझौता करने को कहे। शायद असफल वैवाहिक जीवन का यह भी एक पहलू रहा हो। श्री मदन जोशी एक खुद्दार किस्म के व्यक्ति थे। उन्हौंने कभी भी अपने उसूलों से समझौता नही किया। यही कारण था कि उनके विचार अपने पिता श्री उमानन्द जोशी से कभी नही मिले। वे परिवार में दो बहन और दो भाईयों में से सबसे बड़े होने के बावजूद भी सामाजिक सरोकारों से आजीवन जूझते रहे और परिवार की जिम्मेदारी उनके पिता ने बाखूबी निभाई। उनके पिता हिमाचल सरकार में सेवारत थे। श्री मदन जोशी समाजिक सरोकारों के लड़ते हुए अचानक 29 जुलाई, 2000 को सदा के लिए हमसे विदा हो गये लेकिन उनके विचार और कार्य सदा ही हमें सम्बल देते रहेेंगे। श्री मदन जोशी का इन्तकाल देहरादून में हुआ तब वे दून दर्पण मंे उप सम्पादक के पद पर कार्यरत थे। श्री मदन जोशी को जानने वाले लोग जानते हैं कि वे किस उच्च कोटि के विचारक और आन्दोेलनकारी थे। श्री जोशी पूरी दुनिया के किसी भी विषय पर अपने सटीक विचार और राय देने के लिए मशहूर रहे है। उनके निजी मित्र उन्हें बूबू यानि कि दादा जी करकर बुलाते थे। लेखक को भी श्री जोशी के सानिघ्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। दिल्ली में इनके निजी मित्रों में पत्रकार उमाकान्त लखेड़ा, सुरेश नौटियाल, वेद प्रकाश भदौला, दाताराम चमोली, हरिपाल रावत, अनिल पंत, बृजमोहन उप्रेती, उदयराम ढ़ौड़ियाल, राजेन्द्र शाह, रामप्रसाद ध्यानी, संयोगिता ध्यानी, दिनेश ध्यानी, ड़ीडी पाण्डेय, प्रताप शाही आदि थे। श्री मदन जोशी का निधन उत्तराखण्ड समाज के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। आज आवश्यकता है कि उनके विचारों को हम जिन्दा रखें और इस दिशा में कार्य करेे।

1 comment:

  1. ए़क दोस्त को मेरा यादगार सलाम

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