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Tuesday, May 31, 2011

विचार प्रवाह








विचारों के प्रवाह को रूकने न दो


देह को अपनी थकने न दो


अभी तो कदम बढ़े है राह में


हिय की अगन को बुझने न दो।


मिसाल बनानी है तो ड़र कैसा


इतिहास बनाना है तो वहम कैसा


बात को सिद~दत से रखो तुम


शर्मायेदारों से घबराना कैसा?


ठाना तो उत्तराखण्ड बनाया


गैरसैंण अब बारी समय है आया


जरा अपनी ताकत का इल्म करो


समय ने फिर तुम्हें है पुकारा।


समय की धारा में निर्भय बढ़ो


ग्ंागा-जमुना मुल्क के वाशिंदे हो


समय बाट जोहता है तुम्हारी


बस जरा तुम अड़िग तो रहो।.... ध्यानी. 30 मई, 2011.

अचानक विचारों में प्रवाह बढ़ गया


जैसे सावन भादों में नदी का उफान
गर्मियों में हिमनदों का वेग बढ़ जाता है
उसी तरह मेरे अन्तस में एक विचार
कौंध गया, मैं सोये से जाग गया।
बहुत हो गईं अब बेकार बातें
बहुत कुछ जाया किया इन सबमें
खोया अधिक और, पाया शून्य।
इसलिए मैं आज से बल्कि अभी से
अवनि! अपने विचारों को, सोच को
अपने आवेग को नई धारा और
अपने स्वपनों को नई जमीन
देने की सोच रहा हूं।
जानती हो ये सब क्यों हो रहा है?
तुम्हारे कोमल भावों का स्पदन,
तुम्हारे पवित्र मन का और
तुम्हारी सोहबत का असर है
कि अनगढ़ आदमी बन रहा है।
बस गुजारिश है कि तुम यों ही
मुझे जगाती रहना,
मेरे सत्व का याद दिलाती रहना
मैं अनगढ़ तुम्हारे सहारे के बिना
न जाने कब फिर से राग, द्वेष और
बेकार की उलझन में न फंस आउूं
ये तुम्हारी जिम्मेदारी है अब क्यों कि
मैंने सर्व समर्पण किया है तुम्हारे आगे
इसलिए अवनि!अब तुम जानो
और तुम्हारा काम जाने।।... ध्यानी. 30 मई, 2011

Monday, May 30, 2011

अचानक विचारों में प्रवाह बढ़ गया


जैसे सावन भादों में नदी का उफान

गर्मियों में हिमनदों का वेग बढ़ जाता है

उसी तरह मेरे अन्तस में एक विचार

कौंध गया, मैं सोये से जाग गया।

बहुत हो गईं अब बेकार बातें

बहुत कुछ जाया किया इन सबमें

खोया अधिक और, पाया शून्य।

इसलिए मैं आज से बल्कि अभी से

अवनि! अपने विचारों को, सोच को

अपने आवेग को नई धारा और

अपने स्वपनों को नई जमीन

देने की सोच रहा हूं।

जानती हो ये सब क्यों हो रहा है?

तुम्हारे कोमल भावों का स्पदन,

तुम्हारे पवित्र मन का और

तुम्हारी सोहबत का असर है

कि अनगढ़ आदमी बन रहा है।

बस गुजारिश है कि तुम यों ही

मुझे जगाती रहना,

मेरे सत्व का याद दिलाती रहना

मैं अनगढ़ तुम्हारे सहारे के बिना

न जाने कब फिर से राग, द्वेष और

बेकार की उलझन में न फंस आउूं

ये तुम्हारी जिम्मेदारी है अब क्यों कि

मैंने सर्व समर्पण किया है तुम्हारे आगे

इसलिए अवनि!अब तुम जानो

और तुम्हारा काम जाने।।... ध्यानी. 30 मई, 2011.

Thursday, May 19, 2011

स्वभावगत कुछ कमजोरियां हैं
जिन्हें हम सिद्दत से स्वीकारते हैं.
कुछ गलतियाँ होजाती हैं अक्षर
सुधरने की कोशिश भी करते हैं.
आपसे छुपा है जो झूट बोलेंगे?
समय की कसोटी पे हमे तोलेंगे
इंशान हूँ गलतियों का पुतला हूँ
माफ़ी की गुजारिश भी करता हूँ.
अवनि! अनुपम तुम अतुलनीय हो
हो सके तो हमे माफ़ तुम कर दो...... ध्यानी. १९/५/११.

Wednesday, May 18, 2011

इक लहर दिल में उठी है, जान लेके जायगी
हमको तो अब हर घड़ी तुम्हारी याद आयेगी
कैसे अपने दिल को जाने तुम तस्सली दे गए
हमको तो अब हर घड़ी याद तेरी रूलायेगी... Dhyani. 18/5/11

जब भी उदास होता था




दिल की गहराई से तब


तुम्हे अपने करीब पाता था


अवनि! आज तुम दूर हो


इस उदासी में क्या करूँ?


कहो किससे अपना दर्द


बयां करूँ?....ध्यानी. १८/५/११.
अवनि! सुनो! तुमने मुझे
इतना कुछ दिया है
कि मेरा पूरा जीवन
तुम्हारी यादों के सहारे
गुजर जायेगा।
देह रूप से
साथ हो या न हो
मन और भावों में
एक दूसरे के
अन्तस में रहेंगे ही।
चाहकर भी हम
अलग-अलग नही
हो सकते हैं
क्यों कि हम और तुम
अन्तस में, भावों में
जीवन की हर विधा में
और पल-पल की
धड़कन में इस तरह
रच बस गये हैं कि
हमारा अलग-अलग
अस्तित्व बेमानी होगा।
तुम जानती हो अवनि!
तुमको पाने से पहले
मैं ऐ निर्जीव
र्निभाव एवं मात्र
एक मनुष्य मात्र था।
तुमने मेरे जीवन में
आकर मुझे सभी भाव
मान, सम्मान और
सबसे अहम
मेरी पहचान दी।
तुम कैसे मुझसे जुदा
मुझसे कैसे विलग
हो सकती हो?
तुम तो मेरी सांसों में
मेरी आस में
मेरे विश्वास में
और मेरे कल आज
और कल में बसी हो।
इसलिए तुम्हारे मेरे
भाव और हमारी
विगत की स्मृतियां ही
मेरा सर्वस्व है
तुम साथ हो तो
दुनियां में कुछ भी
असह~य या दुरूह नही
लेकिन तुम गर साथ न हो
तो फिर मैं
परिभाषा विहीन
भाव रहित और
अधूरा हूं।
लेकिन अगर तुम बिन
जीना भी पड़ा ना
तो तुम्हारी यादों को
तुम्हारे भावोें को
अपनी स्मृतियों को
अपने भविष्य
अपने जीवन का
सहारा बनाकर
आज की मानिंद
कल और अन्त तक
तुम्हारी पूजा करता रहूंगा
तुम्हें यों ही चाहता रहूंगा
क्यों कि तुमने जो भाव दिये हैं
तुमने जो मान और सम्मान दिया
तुमने जो मुझे पहचान दी
उसे कभी भुला नही सकूंगा।
इसलिए हे! मेरी अवनि!
मेरे जीवन में आकर
तुमने मेरा जीवन
सफल कर दिया है
अब यह तुम्हारा अनगढ़
तुम्हारी यादों के सहारे
जीवनभर तुम्हारी स्मृतियों में
खोया रहेगा और
तुम्हारी बाट जोहता रहेगा।।... ध्यानी 18 मई. 2011.





तुम मेरा सर्वस्व हो
मैं हूं तुम्हारा ही प्रतिरूप
तुम रहती हो मेरे हिय में
बनकर मेरे भावों की धूप।
मुझमें तेरा प्यार भरा है
तुझमें मेरा स्पदन है
तुमसे मिलकर मैने जाना
सबसे बढ़कर हो तुम सच।
एक दिन अचानक तेरी माया
ने मुझको यों खींच लिया
सबकुछ तुझमें दिखता है अब
मेरा तो कुछ नही रहा।
मेरा हिय अरू मेरी चेतना
भावों की इस उसर धरा में
अवनि! सदा ही दिल में रहती।
तुम मेरे जीवन की परधि हो
तुम भावों की पुंज पल्लविका
अवनि! सुनो तुम खफा न होना
वरना मुश्किल मेरा जीना।
सच कहता हूं यों न समझना
वेशक अनगढ़ हूं मैं तेरा
लेकिन उर में हिय में तुम हो
और बताओं कौन है मेरा?
तुम रूठी क्यों जरा बताओं
थोड़ा तो चलता रहता है
तुमने इसपल सच ना सोचा
तुमबिन अनगढ़ का क्या होगा?
अवनि आजाओं मत तरसाओं
सब भावों में तुम ही तुम हो
कसम मुझे जो तुम्हें भुलादूं
तुम तो मेरी जीवन निधि हो।। ध्यानी. 18 मई, 2011.

























जरा से वेग से तटबंध नही टूटते
छोटी सी गलती से संबध नही छूटते।
मानता हूं गलती हुई मुझसे वेशक
जरा सी गलती पर यों नही रूठते।
मेरी तरह तुम भी परेशां हो रही हो
इत्ती सी बात को हिय पर नही लेते।
जरा सी रूसवाई से मौन नही धराते
अपनापन है हमारा फिर रूठ नही जाते।
अवनि! तुम अनुपम व्यथा नही छुपाते
जो भी हो मतांत्तर खुलकर है बताते।
तुम्हारे बिना कौन है हमारा इस जहां मंें?
जानती हो तुम फिर वहम नही पालते।। ध्यानी 18 मई, 2011.

Wednesday, May 11, 2011

Tuesday, May 10, 2011

बहुत वेदना दिल में होती
जब अपने गुमसुम होते हैं.
भाव शून्य तब हो जाता जब
उनकी आंखें नम होती हैं.
बहुत वेदना दे जाता हूँ
अनजाने कुछ कर जाता हूँ
उनका हिय जब भर जाता है
अंतस में फिर पछताता हूँ... 
ध्यानी. १०/५/११
तुम




तुम मुझे
पानी की एक बूंद
सी लगती हो
जीवन दायिनी
हर भाव में,
रूप रंग में मिलकर
अपने स्वत्व को
औरों की खातिर
न्योछावर करती.
न कुछ लोभ
न लालच और
ना ही कुछ अहं
बस जिधर भी
रहा मिली, अपने
बेग से बढ़ चली.
कभी गंगा
कभी यमुना
कभी सरस्वती
कभी काबेरी
कभी नर्मदा और
ताप्ती न जाने
कौन कौन से रूप
तुम में देखता हूँ
तुम्हें हरपल
कुछ रचती
बसती रहती हो
सच कहूँ अवनी!
तुम मुझे गंगा
का प्रति रूप लगती हो... ध्यानी. १०/५/११.


.

Friday, May 6, 2011

माँ




जीवन दाता


भाग्य बिधाता


दुःख पाकर


हम को सुख देती


माँ सब भावों


में खुश रहती.


माँ


जीवन की


अनुपम थाती


माँ हम को


जीना सिखलाती.


सब रिश्तों में


बढ़कर माँ है


बड भागी वो


जिनकी माँ है..ध्यानी ६/५/११

Thursday, May 5, 2011

शतरंज की बिसात पर
हम सब मोहरे हैं
क्या फर्क पड़ता है
काले हैं या गोरे हैं.
कभी ओसामा
कभी ओबामा
पाक, अफगान तो
हैं बस बहाना.
हमारी दुनिया का
एक थानेदार है
मर्जी का मालिक
वो ताकत वाला है.
नचाता है वो
नाचती दुनिया है
बड़ी बड़ी सल्तनतें
उसके पर की जूती हैं.
ओसामा को मारा
पाला भी तो उसीने था
मर्ज बढ़ाता वो पहले
फिर दवा खोजता है.
उसमे भी अपना फायदा
अपने हक की सोचकर
आगे कदम रखता है
वो मदारी बहुत होशियार है.. ध्यानी ५ मई, २०११.

Tuesday, May 3, 2011

आज अचानक इन आँखों ने
नमी और गीलापन ओढा
बिन बोले ही समझ गया तब
तेरी याद में हिय था डोला.
आज बहुत कुछ बोल गए ये
नयनों से झरते निर्झर सब
समझ सको इन की भाषा को
अवनि! बिकल अंतस अरु चितवन.


४ मई, २०११.
जिस और भी देखता हूँ




तुम ही तुम नजर आती हो


हिय में भी जिया में भी


सास आस में भी तुम ही हो.


तुमको जबसे हमने पाया


अवनि! ये मानो तुम ही तुम हो


मेरी धड़कन अरु हर पल में


बस तुम ही तुम रची बसी हो.


तुम सा कोई मिला नहीं था


तुम सा कोई सुना नहीं था


तुमको पाकर अब लगता है


जीवन का धन मिल ही गया है.
3 May, 2011.
कशमकश मे
दिन बीत रहे
अनिश्चित राहो में
सपने छीज रहे.
बात-बे बात पर
अपने रूठ रहे
अधिक की चाह
ये पल छूट रहे.
अवनि! तुम ही कहो
कैसे हिय को
जिय को और
भावों को समझायें?


3 May, 2011.





तुम्हारी भोली सूरत
तुम्हारा ये बांकपन
बहुत भा गया हमे
अवनि! मेरी तुम्हारा
ये अपनापन.
तुम जबसे मिली
अपनी सी लगती
सच तुम्हे पाकर
हमारी ज़िन्दगी
संवर गई.
तुमने आकर
अनगढ़ को जिला दिया
अवनि! तुमने ही
मेरे भावों को
अपने नेह से सजा दिया.
3rd May, 2011.

Monday, May 2, 2011

अपने आप से लड़ता हूं मैं
अपनी भाषा गढ़ता हूं मैं
कुछ कहती हैं तेरी आंखें
उनकी बोली पढ़ता हूं मैं।
तू क्या जानें मेरे हिय में
कितने तूफां उमड़ रहे हैं
एक सुनामी की खबरों को
बड़े गौर से पढ़ता हूं मैं।
दुनियां की क्या बात है करनी
अपने में ही रहता हूं मैं
और किसी की चाह नही है
तेरी चाह में पगला हंू मैं।
तू मेरे मन के भावों को
जान सकी तो धन्य हुआ मैं
तेरे हिय की परिभाषा को
पढ़ने की कोशिश करता मैं।।


2 मई, 2011.





मेरा सत्व, मेरा अस्तित्व
मेरा आज मेरा कल
मेरा हर भाव
और पल-पल
तुमसे ही है तभी
तो हूं विकल।
तुम जानती तो हो
मानती भी हो फिर
क्यों समझती नही हो?
तुम्हारा हूं तुमसे
कम अलग और कब
विलग था मैं
बस जरा मेरे भावों को
मेरे ख्वाबों को
मेरे आज और कल को
अपने स्पदन से
अपने नेह से
अपने स्नेह से
भाव दे दो
मेरी अवनि
तुम मुझे कुछ पल
उधार दे दो।।


2 मई. 2011
मेरे हिय अरू मेरे उर में
तुम रहती है जीवनधन बन
तुमसे ही अब भाव हमारे
तुम बिन क्या है मेरा जीवन?
अवनि तुम्हें हमने पाया है
सबसे अनुपम अरू प्रिय हो तुम
कैसे अपने भाव बतायें
मेरी खातिर क्या क्या हो तुम।
बस यों जानो अरू ये मानो
तुम आगम अरू अगत विगत में
मेरे हिय अन्तस में तुम हो
तुम ही भाव और धड़कन में।


2 मई, 2011.













Sunday, May 1, 2011

तटस्थ रहना अब
मुनासिब नही
कुछ कहना भी
तो ठीक नही।
हमारी बातों को
किस तरह से लेते हैं
अनुमान लगाना
आसां तो नही।
उनकी सोच और
दायरे उनके
हमारी परधि में हैं
कि नही ये समझना
मुश्किल तो नही।
औरों की क्या कहें
हम तो अपनी जानें
हम तो उनको ही
अपना मानें
वे माने या न मानें
ये जरूरी तो नही।


2 मई, 2011.