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Monday, May 30, 2011

अचानक विचारों में प्रवाह बढ़ गया


जैसे सावन भादों में नदी का उफान

गर्मियों में हिमनदों का वेग बढ़ जाता है

उसी तरह मेरे अन्तस में एक विचार

कौंध गया, मैं सोये से जाग गया।

बहुत हो गईं अब बेकार बातें

बहुत कुछ जाया किया इन सबमें

खोया अधिक और, पाया शून्य।

इसलिए मैं आज से बल्कि अभी से

अवनि! अपने विचारों को, सोच को

अपने आवेग को नई धारा और

अपने स्वपनों को नई जमीन

देने की सोच रहा हूं।

जानती हो ये सब क्यों हो रहा है?

तुम्हारे कोमल भावों का स्पदन,

तुम्हारे पवित्र मन का और

तुम्हारी सोहबत का असर है

कि अनगढ़ आदमी बन रहा है।

बस गुजारिश है कि तुम यों ही

मुझे जगाती रहना,

मेरे सत्व का याद दिलाती रहना

मैं अनगढ़ तुम्हारे सहारे के बिना

न जाने कब फिर से राग, द्वेष और

बेकार की उलझन में न फंस आउूं

ये तुम्हारी जिम्मेदारी है अब क्यों कि

मैंने सर्व समर्पण किया है तुम्हारे आगे

इसलिए अवनि!अब तुम जानो

और तुम्हारा काम जाने।।... ध्यानी. 30 मई, 2011.

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