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Wednesday, May 18, 2011

अवनि! सुनो! तुमने मुझे
इतना कुछ दिया है
कि मेरा पूरा जीवन
तुम्हारी यादों के सहारे
गुजर जायेगा।
देह रूप से
साथ हो या न हो
मन और भावों में
एक दूसरे के
अन्तस में रहेंगे ही।
चाहकर भी हम
अलग-अलग नही
हो सकते हैं
क्यों कि हम और तुम
अन्तस में, भावों में
जीवन की हर विधा में
और पल-पल की
धड़कन में इस तरह
रच बस गये हैं कि
हमारा अलग-अलग
अस्तित्व बेमानी होगा।
तुम जानती हो अवनि!
तुमको पाने से पहले
मैं ऐ निर्जीव
र्निभाव एवं मात्र
एक मनुष्य मात्र था।
तुमने मेरे जीवन में
आकर मुझे सभी भाव
मान, सम्मान और
सबसे अहम
मेरी पहचान दी।
तुम कैसे मुझसे जुदा
मुझसे कैसे विलग
हो सकती हो?
तुम तो मेरी सांसों में
मेरी आस में
मेरे विश्वास में
और मेरे कल आज
और कल में बसी हो।
इसलिए तुम्हारे मेरे
भाव और हमारी
विगत की स्मृतियां ही
मेरा सर्वस्व है
तुम साथ हो तो
दुनियां में कुछ भी
असह~य या दुरूह नही
लेकिन तुम गर साथ न हो
तो फिर मैं
परिभाषा विहीन
भाव रहित और
अधूरा हूं।
लेकिन अगर तुम बिन
जीना भी पड़ा ना
तो तुम्हारी यादों को
तुम्हारे भावोें को
अपनी स्मृतियों को
अपने भविष्य
अपने जीवन का
सहारा बनाकर
आज की मानिंद
कल और अन्त तक
तुम्हारी पूजा करता रहूंगा
तुम्हें यों ही चाहता रहूंगा
क्यों कि तुमने जो भाव दिये हैं
तुमने जो मान और सम्मान दिया
तुमने जो मुझे पहचान दी
उसे कभी भुला नही सकूंगा।
इसलिए हे! मेरी अवनि!
मेरे जीवन में आकर
तुमने मेरा जीवन
सफल कर दिया है
अब यह तुम्हारा अनगढ़
तुम्हारी यादों के सहारे
जीवनभर तुम्हारी स्मृतियों में
खोया रहेगा और
तुम्हारी बाट जोहता रहेगा।।... ध्यानी 18 मई. 2011.





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