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Wednesday, May 18, 2011

तुम मेरा सर्वस्व हो
मैं हूं तुम्हारा ही प्रतिरूप
तुम रहती हो मेरे हिय में
बनकर मेरे भावों की धूप।
मुझमें तेरा प्यार भरा है
तुझमें मेरा स्पदन है
तुमसे मिलकर मैने जाना
सबसे बढ़कर हो तुम सच।
एक दिन अचानक तेरी माया
ने मुझको यों खींच लिया
सबकुछ तुझमें दिखता है अब
मेरा तो कुछ नही रहा।
मेरा हिय अरू मेरी चेतना
भावों की इस उसर धरा में
अवनि! सदा ही दिल में रहती।
तुम मेरे जीवन की परधि हो
तुम भावों की पुंज पल्लविका
अवनि! सुनो तुम खफा न होना
वरना मुश्किल मेरा जीना।
सच कहता हूं यों न समझना
वेशक अनगढ़ हूं मैं तेरा
लेकिन उर में हिय में तुम हो
और बताओं कौन है मेरा?
तुम रूठी क्यों जरा बताओं
थोड़ा तो चलता रहता है
तुमने इसपल सच ना सोचा
तुमबिन अनगढ़ का क्या होगा?
अवनि आजाओं मत तरसाओं
सब भावों में तुम ही तुम हो
कसम मुझे जो तुम्हें भुलादूं
तुम तो मेरी जीवन निधि हो।। ध्यानी. 18 मई, 2011.

























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