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Sunday, May 1, 2011

तटस्थ रहना अब
मुनासिब नही
कुछ कहना भी
तो ठीक नही।
हमारी बातों को
किस तरह से लेते हैं
अनुमान लगाना
आसां तो नही।
उनकी सोच और
दायरे उनके
हमारी परधि में हैं
कि नही ये समझना
मुश्किल तो नही।
औरों की क्या कहें
हम तो अपनी जानें
हम तो उनको ही
अपना मानें
वे माने या न मानें
ये जरूरी तो नही।


2 मई, 2011.





















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