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Monday, June 6, 2011

जीवन आधार
मां के बाद तुम्हें
इतने करीब से जाना है
जितना समझता हूं
उतना ही गूढ़ पाया है।
भावों की उदारता
दोनों में समानता
संस्कारों की धरा
अपर्ण की महानता।
अपनी सुध बुध
जीवन किया होम
बाहर से कठोर
अन्तस में मोम।
रचना बसना में
दूर दूर तक नहीं
जो भी रचा, बसा
अपनों की ही खातिर।
जानती हो अवनि!
मां बहुत उदार थीं
अपने हिस्से का गzास भी
औरों में बांट देती थीं।
और तुम...!!
तुम तो उनसे
दो कदम आगे हो
भूखों को भोजन
मायूसों को मुस्कराहट
बांटती हो।
तुमको पाकर सच मैं
पूर्णत्व को पा गया
मां ने दिया जीवन
अवनि! तुमने संवार दिया।।..ध्यानी... 07 जून, 2011.









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