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Thursday, June 9, 2011

तुम ऐसी क्यों हो...?


बहुत सरल
बहुत ही सीधी
अवनि सही में
सबसे अच्छी।
भाव तुम्हारे
पावन गंगा
तुम जीवन की
अनुपम निधि हो।
नहीं किसी से
जरा रंज है
नही किसी से
तनिक तंज है।
तुम मानव तन
में देवी हो
सच कहता हूं
तुम अनुपम हो।
संस्कारों की
तुम पांती हो
जीवन लौ की
तुम बाती हो।
तुम सच सब में
अलग बनी हो
कहो अवनि तुम
ऐसी क्यों हो...? .... ध्यानी 9 जून, 2011.





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