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Tuesday, August 30, 2011


सच्चा प्यार 
अनुभूति है
समर्पण की
पराकाष्ठा है
जज्ब होने की।
चाहना है
अपने से बढ़कर
चाहने की
बस यों कहो
खुद को खोकर
पzेम पाने की।
सारे भावों में
अलग और
दीन दुनियां से विलग
उस पावस के पास
बस जीवन के
हर भाव में उच्छवास।
पागलपन है
सनकी मौज है
न हो पास तो
वेदना दिल में
तनमन की अगन
बस उसी की लगन।
पzेम प्यार नहीं
सबके नसीब में यार
जिसे मिले सच्चा प्यार
करो उसका ऐतबार
वर्ना जब नही होता पास
तब होता है
उसके महत्व का अहसास।
मत खोना गर मिला है
तुम्हें सच्चा प्यार
बमुश्कित मिलता है
जग में किसी-किसी को
सच्चा प्यार।
नसीब वाले होते हैं वे
अवनि! जिसे मिलता है
सच्चा प्यार।
मर्जी तुम्हारी रखो संभाल
करो ऐतबार या
फिर यों ही खो दो या
कर दो दरकिनार
लेकिन कभी कम या कभी
भुलता नही सच्चा प्यार।
प्यार करने वाला तो
सनकी होता है
अपने को जलाकर पेzेम की
लौ को जलाये रखता है
अपने प्यार की याद में
दिन रात जलता और
तड़पता रहता है
बहुत टूटता रहता है
जब उसे नही
समझता, नही मानता
उसका प्यार।
सुनो! हो सके तो रखो संभाल
और
अगर गंवा दिया तो फिर
कभी नही मिलेगा दुबारा
यह तो बस सिर्फ और सिर्फ
जीवन में मिलता है
एक बार।
तुम्हारी मर्जी करो ऐतबार
रखो उसे संभाल या
यों ही जाया कर दो उसे
समझकर बेकार और
वाहियात की बात।
तुम्हारी सोच और
तुम्हारा विचार
जिसने किया सच्चा प्यार
वह तो मरकर भी
करता रहेगा अवनि
तुम्हें प्यार।।... ध्यानी.... 30 अगस्त, 2011.





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