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Tuesday, February 14, 2012

तुम
तुम्हारा मुखमंड़ल
मेरे भावों की परधि
तुम्हारे दो नयन
मेरे सपनों की गहराई
तुम्हारी प्यारी सूरत
मेरे उर की परछाई
तुम्हारी सुन्दर दन्तपंक्ति
अवनि! मेरे हिय की अंगड़ाई।
तुम्हारे दो सुकोमल होंठ
मेरे भावों की निशानी
तुम ही तो हो
मेरे हिय में
मेरे जिय में
मेरे उर में
मेरे भावों में
और सबसे अहम
सबसे खास
सबसे खास
तुम्हें वैलेनटाईन
शब्द से क्यों नवाजूं?
तुम तो मेरी
आत्मा हो
जीवन की
परिभाषा हो
सब भावों में
तुम ही तुम हो।
फिर तुम ही कहो
सिर्फ एक
संबोधन से
तुम्हें क्यों बुलाउूं
सिर्फ एक दि नही
तुमसे प्यार कयों
जताउूं?
तुम मेरी अवनि!
हमेशा से ही
मेरी आत्मा हो
सदा सदा के लिए
जन्म जन्मांतर और
सदियों के लिए सदियों से।। ..... ध्यानी 14 फरवरी, 2012.

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