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Wednesday, December 15, 2010

सुबह की धूप


सुबह की धूप





सुबह की धूप


महकती दूब

सरोबर ताल तलैया

नीला अम्बर

गौरैया का घोसला

उमंग भरा नजारा।

सुबह की धूप

घर आंगन में

छंटती कुहास

पानी की फुहार

सीढ़ियों में बैठी

नाराज बिटिया खोई

बटि~टयों के लिए उदास।

सुबह की धूप

पानी की गागर

पनघट में रौनक

घसियारियों की दंराती

हल जोत की तैयारी

बैलों की घंटियां 

गीत सुनाती।

सुबह की धूप

तुम्हारी याद

दरवाजे से झांकती

धूप चुपके से

पूछती है हर बात

अलसाई गात

उठ चुकी होंगी तुम

हो चुका होगा

फिर वही

घर, आंगन काम

और फिर वही शुरूआत।

सुबह की धूप

अनुपम, अलबेली

अवनि का संदेश

दूर देश परदेश

जीवन का सम्बल

बहुत बड़ा साहस

तुम्हारा साथ

मेरा आलम्बन।

सुबह की धूप

जीवन का संदेश

देश रहें या परदेश

सदा तरो ताजी

साग और भाजी

हर सुबह एक नया

जोश जगाती

हर भाव में

तुम्हारी याद दिलाती।।
14/12/10

2 comments:

  1. आपकी कविता पढ़ यही सारांश निकाल पायी
    कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

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  2. really u r a great writer.............very nice poem..........thanks.

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