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Friday, September 17, 2010

गजल



बड़ी बेदर्द है दुनियां


बड़ी बेदर्द है दुनियां
कहीं टिकने नहीं देती।
हर अपनी शर्त थोपे है
हमें कहने नही देती।
सलीकों की कसम देकर
कुछ करने भी नहीं देती।
हंसने पर भरम करती
हमें रोने नही देती।
मिलते हैं जो छुप-छुपकर
उन्हें मिलने नहीं देती।
किसी से नेह हो जाए
मुई करने नहीं देती।
रश्मों के बंद दरवाजें
हवा आने नहीं देते।
जी करता उजासों का
मगर पाने नहीं देती।
बड़ी मगरूर है दुनियां
हमें जीने नहीं देती।

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