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Friday, September 17, 2010

गजल


तुम्हीं तुम....


हमारी जज्ब में तुम हो
हमारी नज्+म में तुम हो
हमारी आस में तुम हो
हमारी सांस में तुम हो।
कहो फिर किस तरह कहते
तुम्हें हम भूल बैठे हैं..?
उन्हें हम याद करते हैं
जिन्हें बिसरा भी जाते हैं
हमारा साथ हर पल का
तो फिर कैसी शिकायत है?
सुनो तुम हर घड़ी हर पल
हमारे साथ रहती है
तुम्हीं तुम हो जिगर के पास
फिर काहे को ड़रती हो?

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