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Friday, July 1, 2011

मेरी मनौती।


अल सुबह उठा
शंकराचार्य मंदिर गया
पावस परिवेश
भला माहौल रहा।
पूजा में उठे हाथ
तुम भीं थी साथ
मांगी मनौती हमने
बना विश्वास।
अपनों को सपनों का
होता रहे आगाज
न कभी दूर हो हमतुम
न कभी उभरे खटास।
शंकराचार्य के चरणों में
उनकी प्रार्थन कुटी में
धूप-दीप जब किया
तब भी अन्तस में
तुम्हारा अहसास रहा।
जानती हो अवनि!
तुम बिन कुछ भी
अस्त्तिव न कुछ बोध
तुम ही तो हो जिसने
किया भावों को विभोर।
तुम कल्पना में
सपनों में अभास
तुमसे से ही है
सपनों का आकाश।
दूर रहो या पास
हर भाव में रहतीं
सबकुछ सहती
न अकेले होने देती
न कभी भटकने दिया
तुम्हारा सम्बल और
तुम्हारा प्यार.........!
यही मांगा और यही
भोले ने दिया।। ..... ध्यानी... 1 जुलाई, 2011

2 comments:

  1. यही मांगा और यही
    भोले ने दिया।। in do panktiyo ne sab kahediya ..

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