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Monday, July 4, 2011

कशमकश में रात भर
यों कुछ नहीं सूझा उसे
ज़िन्दगी की बेरुखी ने
खूब झकझोरा उसे.
बहुत सोचा कुछ न सूझा
अल सुबह फिर उठ गया
कुछ ना बोला चुपके उठकर
राह अपनी बढ़ गया.
बस जरा सी देर को वो
उस जगह फिर रुक गया
चूम कर ऱज उस धरा की
माथे अपनी रख लिया.
वो जगह जन्नत लगे
उसको बहुत थी पाक वो
सच अवनि आज़ाद ने भी
पग रखा था उस जगह.
सब उसे पागल हैं कहते
सच में पागल वो रहा...?
देश की सेवा में अपना
स्वाहा सबकुछ कर गया....ध्यानी. ४ जून.२०११
(दोस्तों चन्द्र शेखर आजाद के कोटद्वार गढ़वाल आगमन पर दुगड्डा में आज भी श्री भवानी सिंह रावत और आजाद जी के नाम से स्मारक है. वहां पर एक और दीवाना था आज़ादी का... जिसने अपना सबकुछ देश सेवा के लिए कुर्बान करदिया........ उस बीर को नमन.)

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