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Thursday, August 11, 2011


समय का हिसाब
खुद से निसाब
कहाँ हो पाता है
किसी से भी ज़नाब?
कुछ गुनते हैं
कुछ बुनते हैं
सपनों की मीनार
बस यों ही चुनते हैं.
सोचा गर होता
क्यों फिर दिल रोता
तुम्हीं कहो अवनि !
हर सपना सच होता है?
कुछ मिलता है
बिन सोचे ही जब
बस जीवन तब
अवनि धन्य हो जाता है........ ध्यानी १२ अगस्त, २०११.

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर सारगर्भित,
    रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं तथा बधाई

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