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Tuesday, November 2, 2010

भाव

मेरा एक भाव



अपने जेहन के


स्पदन में रहने देना


ताकि सनद रहे


कि कभी हम-तुम


मिले थे।


भावों में ही सही


स्पदनों मे ही सही


विवेचना मत करना


नही तो भाव


विखर जायेंगे मेरी तरह।


तुम बस मेरे भाव


जहां पड़े हैं


तुम्हारे आंगन में


बाहर कबाड़ के पास


या कहीं तुम्हारे करीब


प्लीज उनको रहने देना


मैं जान लूंगा कि


तुम आज भी


मेरे साथ हो।


सुनो इतना तो करोगी ना मेरे लिए..?


जानती हो


तुमसे मिलकर


मैंने सोचा कि


मुझे सच जीवन की


अपार निधि


मिल गई है


तुमसे मिलकर मैंने


समझा कि मेरा स्वपन


जी उठा।


मुझे विश्वास होने लगा था


भगवान पर


क्यों मैं मान बैठा था


कि भगवान


इतना निरंकुश कैसे


हो सकता है?


मैं मान बैठा था कि


बसंत जाने के साथ भी


सूखी बेल फिर से


अपनी रंगत और


रौ में आसकती है।


जीवन में जो न मिला


वो कभी तो मिलता है


जो सुमन मुरझा गया


वो जीवन में एक बार


जरूर खिलता है।


लेकिन आज


जानती हो


फिर से मैं उसी धरातल पर


उसी पटल पर पटक दिया


गया हूं बहुत ही जोर से


पहले तो उठ उठ जाया करता था


लेकिन अब तो न


उठने की हिम्मत है


और न उठना चाहता हूं।


क्यों कि आज जिस


आसमान से गिरा हूं


उसके बाद उठने या


संभले की लालसा मर चुकी है


देह है लेकिन सदेह नही है


जीवन है लेकिन जीव नही है


जानती हो क्यों..?


क्यों की वो सब तो मैं तुम्हें


पहले ही समर्पण कर चुका था।


सुनो! मैंंने तुमसे जो कहा था


वो सब अक्षरक्ष: आत्मा से कहा था


इसलिए अब फिर से


न उठूंगा, न संभलूगा


क्योंेकि अब और सहन नही होगा


मेरा अन्तस


मेरी आत्मा अब और


बोझ नही उठा पायेगी


मेरा सत्व अब मुझे


कभी माफ नही कर पायेगा


जानती हो क्यों


तुमसे मिलने से पहले


ये सब मुझे दुत्कार चुके थे


बता चुके थे कि


दुनियां अनगढ़ नही है


दुनियां सपाट नही है


दुनियां में हैं कुछ अनुपम औ


अनिकेत लेकिन


उनकी परधि में


कुछ बंधन भी हैं जो


उनकी न चाहते हुए भी


जबरन उनके सत्व को


कभी भी एक न होने देंगे


तुम्हारे सत्व से।


इसलिए बे वजह क्यों


जाया करते हो


अपने जीवन को


अपने जीवट को


मत पड़ो फिर से


किसी झंझट में


लेकिन मैं मानता हूं


तुम आज भी वही अनु पम हो


वही हो स्वच्छ धवल हिमवतं की


मानिंद निष्कपट


सुनो..! एक निवेदन है


मुझे अगर जिला सकती हो


मुझे अगर उठा सकती हो


मुझे अगर दे सकती हो तो


तुम ही मुझे दे सकती हो


फिर से जीने का सम्बल।


इसलिए प्लीज  मेरे अनुरोध को


स्वीकारो, मुझे स्वीकारो और


अपने भावों को मेरे


सत्व से मिलने दो और


अगर ऐसा न कर पाओ तो


फिर मेरे भावों को अपने


करीब रहने देना


मेरे सत्व को अपना


स्पदन देती रहना


दूर से ही सही


थोड़ा मुझे भी


अपने भावो में जगह दे देना


दोगी ना ..??






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