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Tuesday, November 2, 2010

बस्ती में अब बीराने हैं


गलियों में हैं सूनापन

रिश्तों में है बहुत छलावा

अपनों में बेगानापन।

उनको हमने अपना समझा

पाया भी तो था बढ़कर

लेकिन उनकी बस्ती में भी

गैरों के ही हैं रहबर।

कितने ताले कितने परचम

दर्द का तुम अब फहराओगी

किसी ठिकाने तो अब हमको

ठौर बिठाओ ऐ..! जीवन।

1 comment:

  1. तोहरे ताल मिले नदी के जल में
    फिर भी प्यास अधूरी
    यही निष्कर्ष

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