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Tuesday, August 30, 2011


रास्ते का पत्थर
मैं रास्ते का
एक पत्थर हूं
कोई ठोकर मारता
कोई इधर कोई
उठाकर
उधर फेंकता।
जब जिसका
जी करता मेरे
आत्म सम्मान से
खेलता।
मैं चुपचाप
अपने भाग पर
आंसू बहाता
और कभी कभी
न चाहते हुए भी
यह सोचकर
मुस्कराता
कि चलो में राह में
पड़ा तो हूं
मुझे लोग
पटकते
उठाते हैं
और मेरे भावों से
खेलते हैं तो क्या
मैं उन पत्थरों से
बेहतर जो
दीवारों में चिने हैं
जो नींव में बुने हैं
और जो खुद को
खपाकर कितना
बोझ सहे हैं।
दुनियां की नजर में
मेरी कोई कीमत न हो
मेरा कोई मान न हो
लेकिन मैं जानता हूं
मैं दीवार से लेकर
ढ़ोर ड़ंगरों
और इधर उधर हांक
लगाने के लिए दुzत
गति से गोली की मांनिद
लपक जाता हूं
यह बात अलग है
कि मेरी भावना
और मेरे मान को
कभी मान नही मिला
जिसको जैसा
मौका मिला
सबने मेरा
उसी प्रकार से
प्रयोग किया।।....ध्यानी... 30 अगस्त. 2011

4 comments:

  1. bahut hi sartak bhav ............

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  2. यह बात अलग है
    कि मेरी भावना
    और मेरे मान को
    कभी मान नही मिला
    जिसको जैसा
    मौका मिला
    सबने मेरा
    उसी प्रकार से
    प्रयोग किया।।....

    sundr bhaav mn ko chhoo lene vale
    nvratri kee shubh kaamnaayen

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  3. uff aant tak padhte padhte tis uthti hai...bahut umda likha hai...shubhkamnayein apko

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  4. आत्म सम्मान से
    खेलता।
    मैं चुपचाप
    अपने भाग पर
    आंसू बहाता
    और कभी कभी
    न चाहते हुए भी
    यह सोचकर
    (पत्थर मारने वालों की दीवारें कच्चे मिटटी के घरंधो से भी कच्ची हैं )

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