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Tuesday, April 26, 2011

कहां है भारत!..
Kanvashram, Kotdwara, Uttarakhand INDIA.
इस देश का नाम पड़ा था
भारत एक राजा के नाम पर
उसकी जन्मस्थली उपेक्षित है
हिमालय की वादियों में
गढ़वाल के द्वार कोटद्वार में
कलालघाटी में आज भी
बिराजमान है ऐतिहासिक
कण्व आश्रम अपनी आभा के साथ।
उस काल के शिलाखंड़ और
कण्व आश्रम के भग्नावशेष
पूछ रहे हैं इंड़िया वालों से
कि भारत कहां है?
मालिनी नदी अपने अस्तित्व के लिए
जिद~दो जेहद करती विवश लाचार।
मालिन नदी के किनारे बसा
कण्व आश्रम और भरत की
जन्मस्थली सदियो से यों ही
उपेक्षित और विकास विहीन।
किसी को नही पड़ी सुध लेने की
कोई नहीं चाहता उस राजा की
जन्म भूमि और देश को
सभी लगें हैं अपने जुगाड़ और
तंत्र में फिट होने के लिए
अगर ऐसा नही होता तो
राजा भरत का यह देश
भारत से इंड़िया न बना होता।
भू माफिया कब्जाता नही
राजा भरत की जन्मस्थली को
नही होती इतनी उपेक्षा उस काल
के शिलालेखों और पटि~टकाओं की
कोई तो सुध लेता इन बेशकीमती और
ऐतिहासिक धरोहर और वस्तुओं की
लेकिन जिस देश ने अपना नाम ही
बेच दिया हो, अपना ईमान ही
ड़िगा दिया हो वहां किससे और
कैसे उम्मीद की जा सकती है
भरत की जन्मस्थली और देश को
गौरव प्रदान करने और
सम्मान लौटाने की।


26 अपैzल, 2011. सांय: 4 बजकर, 26 मिनट।

सोच...




सोच बहुत मायने रखती है
जीवन में अहम होती है
सोच और हमारे विचार
उभारते और निखारते भी हैं।
आदमी को अलग करती है
औरों जैसा बनाती है सोच
आदमी की जय और पराजय
यश-अपयश सोच ही कारक।
आदमी की सोच ही तो उसे
आदमी से खुदा बनाती है
गलत हो सोच तो आदमी को
शैतान भी बना देती है।
सेचना बुरा नहीं बल्कि हर प्राणी
हमेशा कुछ न कुछ सोचता
विचारता, रचता, बुनता रहता है
फर्क इतना है कि हम किसे
प्राथमिकता और जरूरी मानते हैं।
हमारी नीति और नियति कैसी
और किस प्रकार की भावना है
यही सब तो सोच के द्वारा
मुखर होकर कार्यरूप में
प्रिलक्षित होती है हमारी
कथनी और करनी को तय करती है।
इसलिए सोचना और विचारना
जरूरी है अपने परिवेश, गरिमा
और औरों के मान सम्मान व
सरोकारों को रहे ध्यान तो
फिर हमारी सोच भी और
हम भी हो जायेंगे महान
काश! इसे अपनाता आज का
इंसान तो फिर क्यो न होता
देश अपना महान और संस्कारवान।


26 अप्रैल, 2011, दोपहर, 1 बजकर, 49 मिनट।

















Monday, April 25, 2011

तुम्हारा प्यार।




पूरी रात गूंजते रहे मेरे कानों में
तुम्हारे अल्फाज, एक एक शब्द
कचोटता रहा मेरे अन्तस को
तुमने ऐसा क्यों कहा होगा अवनि?
जानती हो तुम्हारा प्यार मेरा सम्बल है
तुम्हारा मेरे साथ होना मेरी ताकत हैै
तुम मुझसे अलग कब और किस भाव में थीं?
तुम तो मेरा हम साया हो।
मेरी आत्मा हो, मेरा सर्वस्व हो तुम
तुम मेरे अन्तस में युगों-युगों से बहती
गंगा, जमुना और सरस्वती की भांति
मेरी प्राण सरिता हो तुम मेरा सत्व हो।
जब हम मिले भी नही थे तब भी तुम हम
भावरूप में एक थे सदियों से युगों-युगों से
एक दिन या एक जन्म का साथ नही
पल भर की ये बात नही ये तो आत्मा का
संबधों की परधि से उठकर सत्व और एकरूप
समभाव और अपनेपन की अभिलाषा का मूर्त
रूप है तुम्हारा हमारा यों मिलना अन्यथा
हम अलग ही कब हुए थे? कब विलग रहे थे?
तुम्हारा हमारा तो जन्मजन्मातर का रिश्ता है।
जानती हो तुम्हारे प्यार ने मुझे
मैं पत्थर से पारस बना दिया
तमने मुझे अनगढ़ से मानव बना दिया
तुम्हारे बिना मेरा अस्तित्व न था न रहेगा
तुम हो तो मैं हूं अन्यथा तुम बिन मैं
किसी रूप में न तो परिभाषित हो पाउंगा
न किसी भी रूप में पूर्णत्व को प्राप्त कर सकंूगा।
हमारा स्नेह, प्यार और अपनापन स्थूल
मांसल और क्षणिक चाहत की परिणीतिभर नही
तुम अवनि हो मैं अम्ब हूं
तुम धरती हो मैं तुम्हारा अक्ष हूं
जानती हो तुमसे ही मेरी पहचान
तुममें ही मेरी जान
कभी कभ हम यों उथले स्वरूप में
हो जाते हैं अपने भावों से अनजान
अन्यथा तुममें और मुझमें फर्क क्या?
हम हैं दो जिश्म एक प्राण।
अवनि समय मिले तो जरा
सोचना मेरी बातों पर
सत्य जो लगा वह कह दिया तुम्हें
समझता हूं तुम मिलीं तो जैसे
सूखी ड़ाल पर फिर से जीवन
ठंूठ पर फिर से वसंत का आगाज
हो गया, सच तुम्हें पाकर मैं
फिर से जी गया तुमनें मुझे
पूणत्व और सत्व से जिला दिया
तुम्हारा प्यार मेरा सर्वस्व और
तुम ही हो मेरा आधार।।


25 अप्रैल, 2011. संाय: 4 बजकर 24 मिनट।





शब्द जुबां पर होंगे लेकिन
कलम साथ जब तज देगी
कैसे भाव जगेंगे तुम बिन
अवनि हमारी क्या गति होगी?
तुम बिन कैसे जी पाउंगा
सोच-सोच घबरा जाता हंूू
जब भी तुम मुझसे रूठी हो
अन्दर तक मैं हिल जाता हूं।
तुम भावों में, तुम जीवन में
प्रेम प्यार की परिभाषा में तुम
अवनि हमारी तुम से जीवन
पगली! तुम बिन क्या कुछ हैं हम?


25अप्रैल, 2011. 1 बजकर 34 मिनट।






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Friday, April 8, 2011

दूर कहीं से एक बात उठी है
गांव से सहर तलक बहस है
सायद हवा में कुछ गर्मी सी है
अन्ना हजारे ने आवाज दी है
धरती धरा पुकार रही है...
जागने की बेला आन पड़ी है
कुछ बिगत कुछ आगत की
सुध लेने की घड़ी आ गयी है
उठो नगर गांव से सब मिलकर
नये भारत की नीव डालनी है.
भ्रष्ट और चोरों को भागना है
साफ़ और सुथरा भारत बनाना है.
जन लोकपाल बिल भी लाना है
देश को खुशाल बनाना है.. ध्यानी. ८/४/११

तुम बिन जीवन कैसा?...


भाव बिना


भवसागर कैसा?


नेह बिना स्नेही कैसा?


रीती बिना निति कैसी?


प्रेम बिना प्रीत कैसी?


दिया बिना बाती कैसी?


माटी बिना थाती कैसी?


लय बिना छंद कैसा?


पिया बिना प्रियतम कैसा?


बोध बिना ज्ञान कैसा?


लक्ष्य बिना पंथ कैसा?


तुम बिना मै कैसा?


दिया बिन बाती जैसा?


आधार बिना तत्व कैसा?


तुम ही कहो.......


अवनि बिन आकाश कैसा?


दिन बिन रात जैसा....!!

Wednesday, April 6, 2011

भावों में सत्व होता है


बातों का महत्व होता है
हिल जाते हैं तख्तों ताज
बातों में तत्व होता है।


किसी के लिए वसन है बात
किसी के लिए अहम जज्बात
असर करती है दूर तलक
जब समझे कोई बात।


बात पर अड़िग रहे जो
बात-बात पर न ड़िगे वो
जिनके लिए बात का महत्व नही
बात को क्या समझेंगे वो?


07 अप्रैल, 2011. प्रात: 11:36