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Thursday, April 15, 2010

कहानी
रिश्ता
दिनेश ध्यानी
दफ~तर से घर पहुंचने के बाद श्रीधर बाबू हाथ मुंह धोये, पत्नी ने रोज की तरह चाय लाकर दी। चाय पीने के बाद टेबल पर पड़े अखबार को टटोलते हुए उन्हौंने पत्नी को वहीं से आवाज लगाई। सुनती हो सीमा की मां।किचन में खाना पका रही पत्नी ने कहा क्या हुआ क्यों चिल्ला रहे हो?अरी जरा यहां तो आओआई.......।पत्नी के आने के बाद श्रीधर बाबू ने अपने बैग से कुछ कागज निकालते हुए कहा भगवान ने आज हमारी सुन ली है।क्या हुआ? कुछ बताओ भी।अपने आफिस में रमेश दत्त बाबू हैं न वे अपने साले के बेटे की जन्म पत्री लाये थे, मैने अपनी सीमा की जन्म पत्री के साथ द्विवेदी जी से मिलवाई तो 36 गुण मिल गये हैं। सुना है कि लड़का इंजीनियर है तथा अच्छा पढ़ा लिखा है। उसके पिता सरकारी विभाग में अफसर हैं। एक लड़का एक लड़की हैं। अपनी जात के हैं और सबसे बड़ी बात अच्छे लोग हैं रमेश बता रहा था। अजी हमारे कहने से क्या होता है तुम्हारी लाड़ली का पसंद आये तब ना। मुझे तो इस लड़की से ड़र लगता है कि यह क्या चाहती है? देखा नही पीछे दो रिश्ते आये थे लेकिन इसने मना कर दिया। आप ऐसा करें पहले एक दो और पण्डितों से पत्री मिला लें तब ही बात आगे बढे तो अच्छा रहेगा।अरी भागवान बच्ची को ऐसा दोष क्यों देती हो? उसने मना क्यों किया किया जरा इस बात पर तो गौर करो। पहले वाले रिश्ते की जहां बात हो रही थी वह लड़का तो फौज में था। तुम्ही बताओ फौजी के साथ हमारी सीमा की कैसे निभती? वह यहां काWलेज में प्रवक्ता और वह फौज में, आखिर उसकी भी तो जिन्दगी है। दूसरा रिश्ता जो कानपुर से तुम्हारी बुआ के माध्यम से आया था उसके बारे में तुम भी जानती हो किस तरह के लालची लोग थे वे। तुम्हें पता है कि हमें लालची लोग पसन्द नही हैं जो लोग लड़की देखने वाले दि नही कहें कि सगाई में हमें पूरे परिवार के लिए कपड़े चाहिए अच्छा सामान चाहिए, तथा हमारे घर-बार तथा पूरी बिरादरी के बारे में व उनके ओहदों व व्यापार के बारे में पूछ रहे थे तथा अपनी बड़ाई करते हुए शेखी बघार रहे थे उन लोगों से हमारी कैसे निभती? जो आग ही इतने दांत दिखा रहे थे वे वे शादी के बाद क्या करते? हमारी सीमा ने ठीक किया कि उनसे रिश्ता जोड़ने से मना कर दिया। मुझे अपनी बेटी पर गर्व है। मुझे विश्वास है कि यह रिश्ता हमारी सीमा को भी पसंद आयेगा और वे लोग भी हमारी सीमा को जरूरी पसंद करेंगे। रही जन्म पत्री मिलाने की बात तो मैं कल ही एक दो जगह पत्री मिला लेता हWंू।काश यह रिश्ता तय हो जाये, मुझे तो ड़र सा लगने लगा है अगर एक दो रिश्ते वापस हो जायें तो लोग अपनी-अपनी समझ से नाम देते हैं उन्हें क्या पता किस असल बात क्या है लोग तो हमें व हमारी बेटी को ही दोष देंगे। पत्नी की बातें सुनकर श्रीधर बाबू ने कहा,अरे इसमें दोष देने की क्या बात है? हमने अपनी मर्जी से रिश्ता वापस किया है हम जान बूझकर अपनी बेटी को किसी मुसीबत में तो नही धकेल सकते हैं। रिश्ता होता है दिल से किसी प्रकार की सौदे बाजी या जानबूझकर किसी को फंसाने को रिश्ता नही कहा जाता है। आप ठीक कहते हो लेकिन फिर भी समाज में ऐसी बातें कौन सोचता है। लोग लड़की वालों पर ही दोष देखते हैं। देखते रहें दोष। हमारे घर और हमारी बच्चों की जिन्दगी के बारे मंे हमने सोचना है अस वह जमाना नही रहा कि लोग गाय-भैंस की तरह किसी भी खूंटे पर लड़की को बांध दे और लड़की भी जीवनभर अपना नसीब मानकर भोगती रहे दुख, दर्द। अरे हमारी बेटी में क्या कमी है उसने पढ़ाई की है अपने पैरों पर खड़ी है, होनहार है, देखने में सुन्दर है और क्या चाहिए?आप ठीक कह रहे हैं लेकिन फिर इस बार आप सोच समझकर फैसला करना। देखिये रिश्ते रोज-रोज नही मिलते कहीं-कहीं समझौता भी करना पड़ता है। देखो सीमी की माWं मैं जिन्दगी के बारे में किसी भी तरह से अनावश्यक समझौते के पक्ष में नही हूWं। बच्चों के नसीब में कल क्या है मैं नही जानता, लेकिन मैं अपनी तरफ से अपने बच्चों को खुश देखना चाहता हूWं। तुम क्या समझती हो तुम्हें की फिकर है बेटी की मुझे नही है? अरे मैं भी तो बाप हूWं और मैं भी तो चाहता हूं कि जितना जल्दी हो हमारी बेटी अपने घर जाये।दोनों पति-पत्नी ने तय किया कि अपनी बेटी से इस रिश्ते के बारे में संजीदगी से सोचने व विचार करने के बाद ही कुछ कहने को कहेंगे। शाम को सीमा काWलेज से घर आई उसकी मां ने उसे इस रिश्ते के बारे में बिस्तार से बता दिया। साथ ही कहा बेटी जरा देखभाल व सोच समझकर ही फैसला करना। हमारी तो यही कोशिश है कि तुम खुश रहो।सीमा ने कुछ नही कहा बस नीचे मुंह किए मां की बातें सुनती रही। अगले दिन श्रीधर बाबू ने टिपड़ा एक दो पंड़ितो से और मिलवाया और पत्नी से पूछकर तथा बेटी की सलाह से अगले दिन दफ~तर जाकर श्रीधर बाबू ने रमेश दत्त के हाथों लड़के वालों को कहलवा दिया कि वे लोग चाहें तो लड़की देख जायें उनके देखने के बाद ही हम लड़के के घर आदि देखने आयेंगे। एक सप्ताह बाद लड़के के घर वाले श्रीधर बाबू के घर सीमा को देखने आये। आपसे में मेल मिलाप तथा लड़का-लड़की की बातें व रजामंदी होने के बाद उन लोगों ने घर-परिवार देखकर श्रीधर बाबू से हां कर दी। सब इस रिश्ते से खुश थे। विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि अगले माह बैशाखी के दिन सगाई होगी। श्रीधर बाबू ने फिर शाम को अपनी बेटी सीमा पत्नी बेटे अभिषेक से पूछा कि किसी को इस रिश्ते के बारे मंे कुछ कहना है या किसी प्रकार की शिकायत या कोई बात कहनी हो तो बता दें, बाद में किसी प्रकार की शिकायत न हो खासकर सीमा से कहा कि बेटी तुमने जीवनभर साथ निभाना है इसलिए अभी भी सोच लो मैं ऐसा बाप नही हूं जो अपनी मर्जी बच्चों पर लादे और वह भी तुम जैसी होनहार व समझने वाली लड़की पर मैं किस प्रकार का दबाव नही चाहता हूWं। सीमा ने पिता को कोई जबाव नही दिया, उसकी मां ने उससे पूछा तो उसने यही कहा कि माWं जो आप लोगों ने किया है वह ठीक ही होगा। बेटी व परिवार की तसल्ली होने के बाद श्रीधर बाबू ने एक दो दिन शहर जाकर लड़के वालों के घर-परिवार के बारे में पता किया। इधर-उधर से जो जानकारी मिली उसके अनुसार घर-परिवार ठीक है तथा किसी प्रकार की समस्या नही है। श्रीधर बाबू को पूरी तसल्ली होने के बाद वे बेटी की सगाई में जुट गये। अगले दिन दफ~तर जाकर रमेश दत्त से सगाई आदि के बारे में जरूरी बातें व सलाह करके श्रीधर बाबू सामान आदि जोड़ने में मशगूल हो गये। आखिर वह दिन भी आया घर परिवार के लोग व रिश्तेदारों से घर भर गया सब आपस में मस्त। सगाई के दिन लड़के वाले आये और हंसी खुशी के माहौल में सगाई हो गई। सगाई में सबको जिस बात ने अधिक प्रभावित किया वह थी लड़के की नब्बे वर्ष की दादी का बढ़ चढकर भाग लेना। वे अपने पोते की शादी देखने के लिए काफी लालायित थी। जबसे बुढ़िया दादी आई थी वे सीमा से ही चिपटी रहीं। बार-बार उसके मुंह चूमती व उसे ढे+रों आशीष देतीं। सगाई की रश्म पूरी होने के बाद मेहमानों को खाना आदि खिलाया गया। दादी ने सीमा और सागर के साथ ही खाना खाया। सब खुश थे कि मेहमानों को विदा करने से पहले लड़के के पिता ने श्रीधर बाबू को अलग कमरे में बुलाया कि कुछ खास बातें करनी है। सबको लगा कि अब वे किसी मांग या किसी फरमाईश की बात तो नही करने वाले हैं? सीमा की मां को इस बात की शंका होने लगी कि यदि लड़के वालों की तरफ से किसी प्रकार की ड़िमांड़ रखी गई तो हो न हो उसी तरह फिर सीमा इस रिश्ते के लिए भी मना न कर दे। श्रीधर बाबू लड़के के पिता की पीछे कमरे में गये उनके माथे पर भी पसीना आ गया था। कमरें में पहुंचकर लड़के के पिता ने कहा कि साहब हम आपसे रिश्ता करके काफी खुश हैं हमें आपका घर व आपकी बेटी बहुत पसंद हैं। लेकिन हम आपसे कुछ निवेदन करना चाहते हैं यदि आपको हमारी बात मंजूर हो तो हां कहें अन्यथा अब जैसा आप कहेंगे।श्रीधर बाबू ने कहा आप आदेश तो करें मैं तो लड़की वाला हूWं अब आपसे रिश्ता हो गया ही समझो तो आप जो भी कहेंगे हमें मानना ही होगा।लड़के के पिता ने कहा नही साहब मैं किसी भी तरह से आप पर दबाव नही बनाना चाहते हैं लेकिन हमारी एक समस्या है। आप लड़की वाले हैं आपकी परेशानी मैं समझता हूWं। लेकिन क्या करूं समय की नजाकत तथा हमारी हालात को देखते हुए मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूWं आप जितनी जल्दी हो सके हमें हमारी बहू दे दें। हम शीघz ही शादी करना चाहते हैं।श्रीधर बाबू ने कहा इस बारे में मैं अभी कैसे बता सकता हूWं मैं अपने भाईयों तथा घर-परिवार से बात करके आपको बता दूंगा वैसे आप इतनी जल्दी क्यों कर रहे हैं? आज तो सगाई हुई है कमसे कम मुझे छ: माह का समय तो दीजिए। मैं लड़की वाला हूWं और घर का अकेला आदमी हूWं इसलिए मुझे थोड़ा समय तो दीजिए।लड़के के पिता ने कहा साहब आप सही कह रहे हैं मैं भी इसी पक्ष में था इसीलिए मैंने सगाई की लेकिन जैसा कि मैनें आपको बताया कि समय की नजाकत है जिस कारण मैं चाहता हूWं कि शादी जल्दी हो।आखिर बात क्या है जो आपको इतनी जल्दी हो रही है कमसे कम हमंे पता तो चले। लड़के के पिता ने कहा कि साहब क्या बताउूं जब आदमी का नसीब खराब होता है तो वह सोचता कुछ और है और नियति कुछ और मंजूर होता है। असल में बात यह है कि मेरी पत्नी को छाती में दर्द की शिकायत पिछले दो साल से थी उसका इलाज भी चल रहा था। ड़ाक्टरों ने कहा था कि किसी प्रकार की परेशानी नही है, लेकिन पिछले हफ~ते नियमित चेकअप के दौरान पता चला कि उसकी बीमारी काफी बढ़ गयी है ड़ाक्टरों को शंका है कि हो सकता है कि उसे कैंसर हो। ड़ाक्टरों का कहना है कि अभी कुछ कहा नही जा सकता है। उसके टेस्ट बाहर भेजे हैं वहां से पन्दzह दिनों में रिर्पोट आयेगी। अगर कहीं कछ गड़बड़ हुई तो फिर हमें समय नही होगा। इसलिए जितनी जल्दी हो सके मैं अपनी बहू को अपने घर ले जाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि अगले पांच-छ: महिनों में अपनी बेटी आशा के हाथ भी पीला कर दूं। श्रीधर बाबू सुनकर सन्न रह गये। उन्हौंने कहा अरे साहब ये क्या कह रहे हैं। भगवान करें ऐसा कुछ भी न हो। जैसा आप कहें मैं तैयार हूं। कहते हुए श्रीधर बाबू का गला रूंध गया।थोड़ी देर बात करके श्रीधर बाबू और लड़के के पिता बाहर आये श्रीधर बाबू की नम आंखें देखकर उनके घर वाले तथा नाते रिश्तेदार काफी परेशान हो गये। वे समझ नही पा रहे थे कि अचानक क्या हो गया। श्रीधर बाबू ने मेहमानों को बिदा किया और चुपके से अपने कमरे में चले गये। उनकी पत्नी उनके पीछे-पीछे आई और उनसे पूछने लगी कि अचानक क्या बात हो गई जो आपकी आंखें नम हो गईं? श्रीधर बाबू ने कहा कि क्या बताउूं लड़के के पिता शादी जल्दी चाहते हैं। कितनी जल्दी?अरे जल्दी का मतलब एक महिने के अन्दर।अरे ये क्या बात हुई इतनी जल्दी थी तो उन लोगों को पहले बताना चाहिए था हम सगाई में इतना खर्च नही करते सीधे शादी कर देते।अरी भागवान उनकी भी तो कोई मजबूरी होगी।ऐसी भी क्या मजबूरी है?है कोई मजबूरी। अरे क्या मजबूरी है? हो न हो उनकी कुछ मांग या ड़िमांड़ हो। अरी भागवान सबको एक की तराजू में क्यों तौलती हो। कम से कम आदमी का स्वभाव और व्यवहार तो देखा कर।अजी रहने दो। तुम तो रहे सीधे के सीधे। अगर कुछ जल्दी थी तो हमें सगाई के लिए नही कहते और आज शादी हो जाती।तुम ठीक कहती हो लेकिन दुनियां में और भी तो कई प्रकार की परेशानियां हैं जिनको वही जानता है जो भुगत रहा होता है।पत्नी की जिद करने पर श्रीधर बाबू ने अपनी पत्नी व बेटे, बेटी से पूरी बात बिस्तार से बताई। सब सुनकर चुप हो गये। श्रीधर बाबू ने कहा कि आखिर वे अब हमारे रिश्तेदार हैं उनकी परेशानी हमारी परेशानी है। इसलिए उनकी सुविधानुसार शादी जल्दी की जायेगी।अभी सब लोग बातें कर रही रहे थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी।श्रीधर बाबू ने फोन उठाया तो उधर से श्री कैलाश जी उनके समधी ने फोन पर दुवा सलाम के बाद बताया कि मान्यवर आप बच्चों की शादी को लेकर परेशान न हों मैं कल परसों में पड़ित जी से दिन कराकर आपके पास हाजिर होता हूWं। आपको सिर्फ पचास सौ आदमियों के खाने की व्यवस्था करनी है बाकी हमें किसी प्रकार का सामान या दहेज नही चाहिए। आपकी दुवा से हमारे पास सबकुछ है बस हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमारे घर आ जाय।श्रीधर बाबू ने कहा जैसा आप चाहें, हम तैयार हैं जी। फोन रखने के बाद श्रीधर बाबू ने अपनी पत्नी को फोन पर हुई बात का शारांस बताया और बोले।सच कहूं सीमा की मां, भगवान ने हमें ऐसे लोगों से मिलाया है जैसे हम चाहते थे। मैं समझता हूं हमारी सीमा वहां सुखी रहेगी। तकलीफ बस इसी बात की है कि कैलाश जी की पत्नी की तबियत खराब है। भगवान करें उनकी तबीयत ठीक रहे। सच सीमा की मां आज मुझे अपने बाबू जी की एक बात याद आ रही है वे हमेशा कहते थे कि बेटा यदि आदमी की नियत सही है तथा उसके कर्म यदि सही हैं तो भगवान देर से ही सही उसकी सुनता है। सच में आज हमारे पितरों का आर्शीवाद हमारे लिए फलीभूत हो रहा है। हो भी क्यों नही उनके ही आर्शीवाद से तो हमारा अस्तित्व है। बस मलाल इस बात का है कि सीमा की सास की तबीयत खराब है।सीमा ने कहा बाबू जी मेरा मन कहता है कि भगवान की कृपा से मेरी सास ठीक हो जायेगीं। भगवान इतने निर्दयी नही हैं। अभिषेक ने कहा हां बाबू जी दीदी ठीक कहती हैं।अगले दिन कैलाश जी का फोन आया कि हैदराबाद से रिर्पोट आ गई हैं ड़ाक्टरों का कहना है कि छाती में परेशानी तो हैं लेकिन बीमारी पहली स्टेज में पकड़ी गई है। उन्हौंने दवाई शुरू कर दी हैं,एक-दो माह में सब ठीक हो जायेगा।

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