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Monday, June 13, 2011

एकं अधूरे गीत का
मुखड़ा मात्र
भाव रहित पंक्ति
छन्द, बन्द रहित,
तुमने छेड़कर
मधुर सुर तान
मधुर संगीत में
ढ़ाल दिया।
मेरा उर शुष्क
मरूस्थल पर
जमा पड़ा था
भावों का संसार.
अवनि! पाकर नाजुक स्पर्श
तुम्हारे अवचेतन का
पिघल गया गंगा की मानिंद
मेरा अन्तस पा गया
अमरत्व और
हो गया मैं धन्य।
तुमने मुझे, मेरे अस्त्त्वि को
नई जीवन की धारा
नया आयाम दिया
मैं अस्तित्व विहीन सा
तुम्हारे देवत्व रूपी
भावों की ओट पाकर सच
पूर्णत्व को प्राप्त हो गया।। ... ध्यानी 13 जून, 2011.

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