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Tuesday, August 3, 2010



दिनेश ध्यानी
3, अगस्त, 2010,

मैंने देखा था
मन की आंखों से
अन्तस की गहराईयों से
महसूस किया बिन छुये।
अहा! कितना भला है
कितना सलौना है
और कितना प्यारा है
सच बहुत ही मनभावन है..।
स्वच्छ धवल हिमालय,
गौरी गंगा की मानिंद
कितना पुलकित है
कितनी दमकित आभा।
सुनो..!
एकपल तो निगाह रूक सी गई
चेतना सुन्न सी हो गई
सम्मोहन में खिंचा सा जा रहा
बस एकटक निहारता रहा।


2


बहुत मनभावन हैं आपकी
भाव और संस्कारों की पांती
स्नेह की थाती और
अनु की अनुपम छटा
अपनी सी अपने पास
दुनिया की सबसे अमूल्य
सबसे प्रिय और
सर्वाधिक चाहत भरी
अनुपम निधि हमारे
स्वपनों, सरोकारों की
हसरतों चाहतों की
सर्वाधिक स्नेहिल और
अवचेतन को आनन्दित
अवलोकित करने वाली
छटा सबसे प्रिय... सही में!।

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