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Thursday, August 5, 2010


बदलता मौसम

गाती है अमिया की ड़ाली
बैठी कोयल गीत निराली
आती है भुट~टे पर बाली
फैली धरती में हरियाली।

उमड़-घुमड़ घन आ जाते हैं
थोड़ा सा जल बरसाते हैं
पहले जैसी बात नही है
सावन भादो रात नही है।

सर्दी, ठिठुरन, वर्षा, कोहरा
नदियाWं, नाले ताल तलैया
रिमझिम-रिमझिम दसियों दिन की
पहली सी बरसात नही है।

बदल रहा है अब मौसम भी
मानव बदला भाव है बदले
पहले जैसी बात नही है
सावन भादो रात नही है
सच अब वह बरसात नही है।।

3 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. prakirti ka sundar varnan.....aur haan sach kaha aab aise baat nahi......bahut acchi rachna

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  3. बदल रहा है अब मौसम भी
    मानव बदला भाव है बदले
    पहले जैसी बात नही है
    सावन भादो रात नही है
    सच अब वह बरसात नही है।।


    badlaw ka ye saleeka bahut achcha hai

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