Pages

Wednesday, August 4, 2010


विरासत

दिनेश ध्यानी
4 अगस्त, 2010.


विरासत में छोड़े जा रहे हैं
तुम्हारे लिये बंजर धरती
सूखी नदियां, वन विहीन जंगल
प्लास्टिक से अटी धरती
बंजर धरा, उजड़े मकां
यूरिया और रसायनों पटी जमीन
तपती धरती, लुप्त हिमवंत
और समवेत प्रचण्ड विनाश।
तुम्हारे लिये छोड़े जा रहे हैं
विरासत में कश्मीर समस्या
बोड़ो लैंड़ और असम समस्या
तुष्टीकरण की बयार बोये जा रहे हैं
ताकि किसी प्रकार से अक्लियतों को
मजलूमों को लड़ाने के रास्ते
बंद न हों।
दिये जा रहे हैं तुम्हें नक्सलवाद
जातिवाद और क्षेत्रवाद
धर्म और सम्प्रदायवाद
नशा और बेरोजगारी।
ऐसे समाज की नींव ड़ाले जा रहे हैं
जिसमें काबलियत से अधिक
जोड़तोड़ से काम बनता हो
रिश्तों का गुलशन चन्द सिक्कों
की खातिर बिखरता हो।
किये जा रहे हैं सिद~दत से
कन्याओं का सफाया ताकि
तुम्हें दिक्कत न हो अपनी
बेटियों को ब्याहने की दहेज और
उन पर लाखों बहाने की
इसलिए उनका काम तमाम
उनकी नश्लों को ही मिटाये जा रहे हैं।
ताकि सनद रहे हमारी विरासत
हमारी पीढ़ियों, हमारे नौनिहालों के
मानस पटल पर हमारी स्मृति की
अमिट छाप बनी रहे
संभाल कर रखना हमारी इस
विरासत को हमारे बच्चो
तुम भी क्या याद करोगे
हमने कितना परिवर्तन कर दिया
सारे जहां में कुछ ही सालों में
जमींदोज कर दिया धरती के
सौन्दर्य और सरोकारों को
यही है हमारी विरासत तुम्हारे लिये।।

4 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा है आपने

    ReplyDelete
  2. Kranti tin tarah ki hoti hai jaisa subash chandra bosh ne ki thi,jaisa mahatma gandhi ne ki thi,aur tisari kalam se kranti hoti hai jo aap kar rahe hai kripya aise hi dharti maa ki sundrata ko rudane wale kaputo ko samjhane ke liye ye silsila jari rakhe ishwar aap jaise logo ke sath hai...OM

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत सुंदर - समसामयिक, सार्थक तथा मार्मिक रचना - बधाई ध्यानी जी

    ReplyDelete